Wednesday, September 30, 2020

पदचिह्न

प्रथम स्थान
नमन मंच
महाराष्ट्र क़लम की सुगंध
विषय ....पदचिन्ह
29-09-20 मंगलवार

पदचिन्ह हैं ये शुभ संस्कृति के ,
  जिनका मूल्यांकन लुप्त हुआ ।
    इन पद चिन्हों का संस्कार ,
       आधुनिकता सेज पर सुप्त हुआ ।

इन चरण बिंदु पर नहीं कोई ,
  अब ध्यान केंद्रित करता है।
    ये मार्ग तो अब है शून्य हुआ ,
        हो धूल धूसरित रोता है।

ये है धर्म राह परमार्थ मार्ग ,
   सजते थे किसी जमाने में।
     मेले लगते थे इन राहों पर ,
       सुनसान है अब गतिमानों में ।

बुजुर्गो के ये पद रज कण ,
    इनका अनुकरण ना कोई है।
      पाश्चात्य गति की कलई पुती ,
        अब प्रतिबंध ना कोई है।

अब मार्ग सभी बदचलन के हैं ,
    इनकी भाषा कोई क्या जाने ।
     .इनका बंधन चन्दन शीतल ,
         इन्हें उग्रवाद क्या पहचाने ।

स्वरचित सुधा चतुर्वेदी मधुर
                    मुंबई
🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼
द्वितीय स्थान
नमनमंच संचालक ।
महाराष्ट्र कलम की सुगन्ध।
विषय - पदचिन्ह।
विधा - कविता।
स्वरचित।


मशाल थाम हाथ में
बढ चलो संघर्ष मैदान में।
रोशनी करते चलो
अंधेरे काले साये में।।

चलो ऐसी राह कि बन जाये
अनुकरणीय संसार में।
बनाओ ऐसी प्रेरणा
कि ना मिटे समय के फेर में।।

छोडते चलो निशां
अपने पदचिन्हों के।
मिटा ना सके जिन्हें कोई लहर
या ढक जायें धूल की परत से।।

प्रीति शर्मा"पूर्णिमा"
29/09/2020
🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼
तृतीय स्थान
महाराष्ट्र कलम की सुंगध
विषय - पदचिह्न

मैं इतना कमजोर नही कि तेरे दर तक नही आऊँगा।
ठोकरों की परवाह नही मैं गिरकर संभल जाऊँगा।

लाख बंदिशें हो मग़र इसकी परवाह नही मुझको,
संघर्षो से लड़कर कामयाबी हासिल कर पाऊंगा।

पथ पे चाहे कांटे मिले या फिर मिल जाये मुझे शूल,
चाहे मुश्किल डगर हो, मैं अपना फर्ज निभाऊंगा।

पा ही लूँगा मंजिल अब मंजिल हमसे ज्यादा दूर नही,
हौसला बुलन्द हो सीढ़ियाँ-दर-सीढ़ियाँ चढ़ जाऊंगा।

रेत पर चलते-चलते हमारे पैरों के निशान बन जाते हैं,
फिसलते रेत पर चलकर आगे-आगे कदम बढ़ाऊंगा।

सुमन अग्रवाल "सागरिका"
        आगरा
🌷 तृतीय स्थान 🌷
मंच व मां सरस्वती को नमन
महाराष्ट्र कलम की सुगंध मंच
विषय :पदचिन्ह
२९-९-२०२०
पदचिन्ह पावन व प्रेरक हो तो जीवन
बन जाये मुल्यवान
पर इस संभावना को संभव करने
में  पार करने पडते है कई
पडाव तब हासिल होते मुकाम!!
दाम खर्चने से नहीं मिलता
 हर किसी को हर सम्मान
उसके लिए देना पडता है तन मन से
त्याग और बलिदान!!!
इन सीमित संभावना असामान्य अर्पण में नहीं
सामान्य का काम
कुछ विरले व विरल व्यक्तित्व ही बन पाते है महान!!
जो छोड़ जाते यादगार निशांन!
जिनके पदचिन्हों से जो प्रेरित होते है
आम इंसान
पर परख कसौटी पे खरे उतरते है
वे ही बना पाते अपना स्थान !!!

अशोक दोशी
सिकन्दराबाद
🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼
सराहनीय प्रस्तुति
1️⃣
नमन मंच
महाराष्ट्र कलम की सुगंध
दिनांक :- 29/09/20
विषय :- पद चिन्ह
विधा :- दोहा गीत
************************
सब चलते परिवार में, बड़े बडो के साथ ।
उनके ही पद चिन्ह से, मिलता सबका साथ ।।

जैसी बनी परिवार की, वैसी बनी बनाव ।
पुरखन की चलती रहे, निशदिन उन्हें मनाव ।।
उनके ही पद चिन्ह से, सभी झुकाते माथ ।
उनके ही पद चिन्ह से,मिलता सबका साथ ।।

हिन्दू संस्कृति मे बसी, पद चिन्हों की सलाह ।
वैसे चलती है सदा, नही रहे परवाह ।।
मात पिता की लीक से, होते सभी सनाथ ।
उनके ही पद चिन्ह से, मिलता सबका साथ ।।
********************
रचयिता :- सीताराम राय सरल
टीकमगढ मध्यप्रदेश
2️⃣
नमन मंच
29/09/2029
विषय-पदचिन्ह
तुम्हारा पदचिन्ह
************
करो जगत में तुम कुछ ऐसा काम
चले तुम्हारे पदचिन्हों पर आम।
तुम्हारे पदचिन्ह बनाते है आदर्श
जिसको थाम लोग बढ़ते हैं आगे।
तुम्हारे पदचिन्ह ही बनाते हैं रास्ता
जग में बनती फिर तुम्हारी दास्ताँ।
ये पदचिन्ह ही बताते किस तरफ
बढ़ रहा है ,,,,,अच्छा या बुरा रास्ता।
दुनिया में लोग करें तुम्हारा अनुसरण
तब भी जब जग से हो तुम्हारा गमन।

स्वरचित
अनिता निधि
जमशेदपुर,झारखंड
🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼
महाराष्ट्र कलम की सुगंध द्वारा आयोजित विषय आधारित लेखन में उत्कृष्ठ सृजन के लिए आपको ढेर सारी बधाई व शुभकामनाएं। महाराष्ट्र कलम की सुगंध परिवार आपके उज्ज्वल भविष्य की मंगल कामना करता है।

अनुराधा चौहान 'सुधी'
सचिव (महाराष्ट्र कलम की सुगंध)
चित्र गूगल से साभार

Tuesday, September 29, 2020

मानव और प्रकृति

प्रथम स्थान
महाराष्ट्र की कलम सुगंध
28 सितंबर 2020
विषय- मानव और प्रकृृति
विधा-कविता
***********
ख़बरों से अख़बार भरा है
लो ज़मीर फिर आज मरा है

फिर कलियाँ मुरझाईं असमय
फिर बाड़ी ने खेत चरा है

      नफ़रत का दावानल दहका
       ढाई आखर मान घटा है

फिर टिड्डी दल है मंडराया
फिर कोई खलिहान जला है

     फिर चुनाव का मौसम आया
    फिर उनका ईमान मरा है

फिर मस्ती में गरजे बादल
बस्ती में कुहराम मचा है

   फिर मरकज़ में लापरवाही
    कोरोना शैतान मिला है

फिर चैनल में तू-तू,मैं-मैं
फिर विवेक बीमार मिला है

   फिर से धनिया सदमे में है
    फिर से होरी डरा-डरा है

फिर सीमा पर इक सैनिक ने
माँ-चरणों में शीश धरा है

    नहीं मरा आँखों का पानी
     ज़ख्म हमारा हरा-भरा है

हर घातक विपदा से हरदम
अपना हिन्दुस्तान लड़ा है

   बाद मिरे जाने के कहना
    जज़्बातों से भरा भरा है

प्रतिभा पाण्डेय
प्रयागराज उत्तर प्रदेश
🌷प्रथम स्थान🌷
नमन मंच 🙏
महाराष्ट्र क़लम के सुगंध

28-09-20 सोमवार
विषय ...मानव और प्रकृति

(मेरी कविता का आशय जब वृक्ष कटता है तब मानव को उसकी पुकार है़

हे निर्दयी मानस !
ये तूने क्या करके दिखलाया ?
मेरे ही तन से मेरे अंगों को काट गिराया
मुझे काटने को तुमको मेरी ही जाति मिली थी।
कभी कुल्हाड़ी को देखा क्या पीछे वो ही लगी थी ।

पत्थर मारो तो फल देता ,
  क्या मेरा अपराध यही ?
    थके हुए को राहत देता ,
      क्या मेरा विश्वास यही ?

अरे ओ मानव !
कभी सोचता में अन्नों का भंडार बना,
मेरे बिन क्या तू जी लेगा भूखा ये संसार रहा ।
अपना वंश बढ़ाते रहते मेरे वंश का नाश किया,
पर तू नहीं कभी समझेगा अपने हाथों ही विनाश किया।

मेरे बिन वर्षा नहीं होगी,
  फसलें किससे सींचेगा ?
    तेरी आँखों में ना पानी ,
       बूँद बूँद को तरसेगा ।

मेरे बिन लकड़ी कागज तू मधुर कहां से लाएगा ?
खून के आँसू मुझे रुलाया क्या तू पाप न पाएगा ?
सावन सूने धरती बंजर हरियाली को कूच दिया ,
अरे निर्दयी ! तरसेगा, तूने फुलवारी को मैंट दिया ।

धरती माँ के रक्त अश्रु,
  क्या तुझको नजर नहीं आते ?
    छाती फटी पड़ी है उसकी ,
     क्या रिश्ते और क्या नाते ?

अरे नासमझ !
धरती माँ हा! हा! करके सिसकी लेती,
जब तू वृक्षों को उखाडता अपना नाश समझ लेती ।
चेत अभी तू .....
पृथ्वी माँ का आदर करना सीख जरा ,
उसका मत श्रंगार बिगाडे उसमें कर तू जरा हया ।

स्वरचित सुधा चतुर्वेदी ' मधुर '
                  भायन्दर मुंबई
🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼
द्वितीय स्थान
महाराष्ट्र कलम की सुगंध
जय-जय श्री राम राम जी
28/9/2020/सोमवार

*मानव और प्रकृति*
काव्य

आज अनवरत रो रही मां वसुंधरा।
सोच रही क्यों कर मैंने मौन धरा।
सब मेरी छाती पर मूंग दलते हैं,
फिर क्यों लगे राज काज मुझको गहरा।

प्रकृति ने सबको ताल‌ तलैयां सरिता दी।
सभी सुन्दर बाग बगीचे बगियां दी।
फैला दी हरियाली सुखद चहुंओर,
इस जग को सुख मनोरंजन खुशियां दी।

फिर भी लूट रहा मानव निशदिन मुझको।
यहां खोद रहा पर्वत नदिया सबको।
मैं ही धरनी,धरती, वसुधा,वसुंधरा,
तुम्ही सब नोंच रहे नित मेरे तनको।

इस प्रकृति से करो छेड़छाड़ जितनी,
तुम सारे उतने ही कष्ट उठाओगे।
तुम देख रहे मानव देखोगे जब,
इस रोग से तड़प-तड़प मर जाओगे।

मेरा मानव तुझसे गठबंधन है।
मेरी माटी रज चंदन है।
आदर कर तू सदा मेरा,
वरना अब क्रंदन ही क्रंदन है।

स्वरचित,
इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
गुना म प्र
🌷द्वितीय स्थान🌷
नमन मंच
दिनांक - २८/०९/२०२०
दिन - सोमवार
विषय - मानव और प्रकृति
विधा - कविता
----------------------------------------------
जल रही है सारी धरती हो रहा सब-कुछ धुआं।
खून के आंसू बहा कर रो रहा है आसमां।।

धूप में जलकर लहू जो बादलों में उड़ गया।
बन के फिर बारिश वही धरती पे अंबर से गिरा।।

बह रहा है खून ही नदियों में पानी की जगह।
आदमी ने काट डाले पेड़ सारे बेवजह।।

आदमी अपनी लगाई आग से बचता फिरे।
जल रहा फिर भी चिता में आदमी अब क्या करे।।

मूक और बेबस प्रकृति है बंधी जंजीर से।
कोसती है भाग्य अपने लड़ रही तकदीर से।।

पांव पर अपने कुल्हाड़ी हमने ख़ुद मारी यहां।
अपने हाथों कब्र की हमने की तैयारी यहां।।

बस बचे चट्टान पत्थर मिट गई हरियालियां।
आदमी ने है निभाई ख़ुद से ही अय्यारियां।।

काट कर पेड़ों को धरती सूनी कर दी आप से।
कौन अब रक्षा करेगा प्राकृतिक संताप से।।

जो है बोया आदमी ने बस वही तो पाएगा।
प्रकृति के न्याय से बच कर कहां तक जाएगा।।

रिपुदमन झा 'पिनाकी'
धनबाद (झारखण्ड)
स्वरचित


🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼
तृतीय स्थान
नमन मंच
महाराष्ट्र कलम की सुगंध
दिनांक २८/०९/२०


मेरी नई कविता
"मानव और प्रकृति"

मृदु छाया तरु की जो देती
वसुधा की है प्यारी बेटी
प्रकृति का कुछ मान करो तुम
मानव मत अपमान करो तुम।

कस्तूरी की गंध जो आती
मलय हवा सौरभ जो लाती
इत्र तुम्हारा कहां टिकेगा?
इतना तो बस ध्यान धरो तुम।

कोयल की मीठी सी बोली
कानों में मिसरी सी घोली
शोर मचाते ध्वनि यंत्रों से
इतना मत धनवान बनो तुम।

दिनकर की रश्मि को पाकर
देखो किसलय मुड़ जाते हैं
बड़े उड़ाए द्रोण है तुमने
बिन विद्युत कुछ काम करो तुम।

मनु के सुत दानव‌ बन बैठे
ज्ञान बढ़ा अज्ञान हुआ है
इसी प्रकृति से है जीवन
जान के मत अनजान बनो तुम ।

मधुकर वनमाली
मुजफ्फरपुर बिहार
स्वरचित एवं मौलिक
🌷 तृतीय स्थान 🌷
1️⃣
महाराष्ट्र कलम की सुगंध
28/9/2020
विषय   मनुष्य  व प्रकृति ।
प्रकृति व मनुष्य  का अटूट बंधन
सदियों से चलतें आया है ।
मानव के जीवन में यारों
हर पल साथ निभाया है।।
जब इस श्रृष्टि का जन्म हुआ
तू प्रकृति के गोद में आया था।
मानव तू अपना आदि सदा ही
प्रकृति के संग ही बिताता था।।
जब तू प्रकृति को पूजता था
पेड़  पौधें सब लहलहाते थे।
दोनों की बोली जाहिर थी
दोनों में रक्त का बंधन था।।
जैसें हमदुख दर्द  समझते रहे
वैसे ही वे उत्तर देते रहे ।
आनंद खुशी दुख पतझड़ का
अनुभूति वे करतें कराते रहें ।।
आयुर्वेद प्रगतिविज्ञान सदा ही
वृक्षों नदियों को पूजनीय कहा।
औषधियों के उपयोग हेतु ही
शाश्वत श्रद्धा का भाव रक्खा।।
जैसें जैसें  मानव बदला
सभ्यताएं नयी नयी आई।
प्रकृति के संसाधनों का दोहन
बिकराल रूप में वह लाई।।
पहलें  हम प्रकृति की  गोदी में
खुशहाल  आनंदित रहते थे।
मोर पपीहा कोयल के  संग
गीत मधुर धुन गढते थे।।
उजड़ गये सब बाग बगीचे
ऊँची ऊँची अट्टालिकाएं आई।
जंगल-जंगल सब काट डाले
प्रकृति संतुलन सब बिगाड़ डाले।
भूकंप बाढ़  सूखे का प्रकोप
पूरे ब्रह्माण्ड को बिगाड डाले।।
हें मानव आधुनिकता  की दौड़ में
इंसानियत को तू भुला बैठा।
इसीलिए  मनुष्य  प्रकृति की यहीं
खाईं  चौड़ी से चौडी कर डाली ।।।
डा के एन सिंह कल्याण
मुंबई-महाराष्ट्र
🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼
सराहनीय प्रस्तुति
1️⃣
नमनमंच संचालक।
महाराष्ट्र कलम की सुगंध।
विषय-मानव और प्रकृति।
विधा-कविता।
स्वरचित।

बसंत आ गया और
सारे जहां पर छा गया।
वसुंधरा को सतरंगी
सुंदर चुनरी पहना गया।।

श्वेत-जामुनी रंग सुनहरे
लाल-गुलाबी,नीले-पीले
हरियाली इसके कण-कण में
महके सुमन खिले खिले।।

सबको धारण करती है
सबका पोषण करती है।
सितम सह रही सबके हंसकर
फिर भी शिकायत ना करती।।

हे इंसा! तुम क्यों हो
इतने संवेदना विहीन।
जिस डाल पर बैठे सुरक्षित
उसको काट रहे मतिहीन।।

भौतिक सुख-सुविधा में खोए
फैला रहे कचरा प्रदूषण दीन।
मां जब रूठेगी कोप करेगी
समझोगे शायद उस दिन।।

निकल चुकेगा समय हाथ से
तुम पर फिर तुम पछताओगे।
देर हो चुकी होगी तब तक
कुछ ना कर तुम करपाओगे।
अपने ही पैर पर मार कुल्हाड़ी
पीढ़ियों तक संभल ना पाओगे।।
****

प्रीति शर्मा"पूर्णिमा"
28/09/2020
2️⃣
महाराष्ट्र कलम की सुगंध,
संचालिका आदरणीय अनुराधा नरेन्द्र चौहान जी
प्रकृति और मानव,
-------------------------/
प्रकृति और मानव,
एक के बिना अधूरा,
माँ-बाप,
शिशु को जन्म देते,
परवरिश करते,
उसके कल्याण हेतु,
सारी व्यवस्था करते,
और,
बच्चों को ,
अपने पैरोंपर खड़ाकर देते,
उसी प्रकार,
जग नियंता,श्रेष्ठ शिल्पी,
ये सारी प्रकृति,
सारी सृष्टि,
सारे चौरासी लाख जीवों के लिए,
श्रेष्ठ शिल्पी, जगनियंता ने बनाई,
परम ब्रम्हकी,
संचेतना, संवेदना से,
येसारी सृष्टि, प्रकृतिबनी,
ये प्रकृति,
परम ब्रम्ह की,
माया योग है,
सारे जीवों को,
अपने माया में बांध रखे है।।
लेकिन
मनु शतरुपा के संतान,
मानव,
परम पिता का,
श्रवण कुमार नही बना,
और
स्वार्थ मे अंधा होकर ,
अपनी जननी प्रकृति का दोहन,
हर पल कर रहाहै,
वनों की कटाई,
सारी प्रकृति निशुल्कदेती,
अपने मानव पुत्र को,।ः
श्रेष्ठ शिल्पी,
बनाई प्रकृति,
सारे जीवों को,
अपनी ममता लुटाती है,
देवेन्द्र नारायण दासबसना छ,ग,।।
स्वरचित मौलिक रचना।।
🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼
महाराष्ट्र कलम की सुगंध द्वारा आयोजित चित्र आधारित कविता लेखन में उत्कृष्ठ सृजन के लिए आपको ढेर सारी बधाई व शुभकामनाएं। महाराष्ट्र कलम की सुगंध परिवार आपके उज्ज्वल भविष्य की मंगल कामना करता है।

अनुराधा चौहान 'सुधी'
सचिव (महाराष्ट्र कलम की सुगंध)
चित्र गूगल से साभार

Sunday, September 27, 2020

तूफान

प्रथम स्थान
नमन मंच
महाराष्ट्र कलम  के सुगंध
विषय .....तूफ़ान
26-09-20    शनिवार

तूफ़ान भरा ये जीवन है़ ,
   अनगिनत तूफानें आते हैं ।
      मानव की जड़ें हिलाते ये ,
         जीवन में व्यथा बढ़ाते हैं ।
               साहस और धैर्य परीक्षा में,                   
           हर बार सफलता नहीं मिलती।
        व्याकुलता अंतर्मन बढ़ती ,
       हृदय में शांति  नहीं बनती।
तूफ़ान कभी परिवार को घेरे ,
   प्रतिवाद का रूप दिखाता है।
      संवाद विषम बन जाते हैं, 
         रिश्तों में कुटिलता लाता है।
                कहीं निर्धनता तूफ़ान बने,
             अति धन व्यथा भी बन जाये।                       
           बे मौत का मंजर जब घेरे, 
         मानव को घायल कर जाये। 
तूफ़ान कहीं बिगड़ी पीढ़ी ,
  कहीं बेटी का वो दर्द बने।
     बिगड़ा है़ स्वास्थ बीमारी से ,
        कहीं बेटी का वो दर्द बने।
तूफ़ान जहर हैं जीवन के ,
    पर  जहरॉ को पीने पड़ते ।
       तूफानों से मत विचलित हो,
          ये जीवन के हिस्से बनते ।

स्वरचित       सुधा चतुर्वेदी मधुर
                            मुंबई
🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼
द्वितीय स्थान
नमन मंच
विषय-तूफान
दिनांक-26/9/20

प्रकृति के इशारे।
फैलाये मुँह पसारे।
तिमिर तूफान लेकर।
हास परिहास बनकर।
प्रलय का ले ववण्डर
वायु प्रतिकूल होकर।
ह्रदय का शूल बन।
राह वीरान कर।
उभरती टीस बन।
दुःखत तरंगे आई।
मुश्किलें कम न थी।
विपत्ति जो फिर आई।
बवण्डर बन झोंके।
सुनाते प्रलय हरहर।
कपन्तित सभी दिशाएं।
धरा भी थरथराई।
टूटे वृक्ष लताये।
रजत कण बिखराये।
मिटे है अनगिनत घरौंदे।
जगत से गए है कितने।
अजब सा फैला मंजर।
लुटा सा प्रकृति बवण्डर।

स्वरचित
मीना तिवारी
🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼
तृतीय स्थान
२६/९/२०२०
शनिवार
नमन मंच
महाराष्ट्र कलम की सुगंध
विषय-तूफान
विधा-कविता
- - - -
         * द्रौपदी *
द्रौपदी के मन में,भीषण तुफ़ान था
 सरल जीवन में व्यवधान था।
 भरी सभा में,द्रौपदी का मिटा
       मान-सम्मान था।
धृतराष्ट्र-दरबार में दुर्योधन ने
     किया अपमान था।
धूर्त दुशासन ने चीर हरण कर
    सम्मान,हनन किया था।
अनाथिनी द्रौपदी के आर्त कंठ
   लज्जा,घृणा,से व्यथित था।
दुष्ट दुशासन द्रौपदी को केश
    खीचभरी सभा में लाया।
वस्त्र खीचकर द्रौपदी का मन
         ही मन हर्षाया।
पंच-पांडव एक दूसरे का मुँह 
   देखते रहे सर झुकाये।
अपमान का तुफा़न मन में
  ,द्रौपदी ने प्रतिज्ञा ठानी।
दुशासन के खून से बाल धोने
    की,मन में प्रण ठानी।
  हुआ परिणाम भयानक
   महाभारत छिड़ गया।
कौरवों का दुनिया से नामों
   निशान मिट गया ।
*"नीलम पटेल" *प्रयागराज *
(स्वरचित,मौलिक, अप्रकाशित रचना)
🌷तृतीय स्थान🌷
नमन मंच
विषय - तूफान
दिनांक -26/09/2020

तूफान आया और चला गया
एक तूफान घर के बाहर है
और एक मेरे मन के भीतर
जो बरसों से चल रहा है
आंधी और तूफान
बहुत कुछ उड़ा कर ले जाते है
अस्त ध्वस्त कर देते है
पीछे बस अपनी निशानियां
छोड़ कर जाते है
मेरे मन के भीतर का
तूफान भी किनारा की
तलाश में भटक रहा
उसे उसका किनारा मिल जाए
बस तूफान के बाद की
शांति और बारिश की
शीतल हवा मेरे
मन मस्तिष्क में रह जाए
मेरे भीतर उस तूफान की
कोई भी निशानी शेष ना रहे
मन में बस रह जाए
शांत बहता पानी,
एक सुकून और
बरसों बाद टूटी हुई खामोशी

स्वरचित
जया वैष्णव
जोधपुर राजस्थान
🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼
सराहनीय प्रस्तुति
🌷1️⃣🌷
महाराष्ट्र कलम की सुगंध
जय-जय श्री राम राम जी
26/9/2020/शनिवार
*तूफान*
काव्य

तूफान में मन में उमड़ते।
संघर्ष की याद कराते।
जिंदगी में आते रहेंगे,
सचेत हमें कराने आते।

जीवन जीना सरल नहीं,
बाधाओ से जूझना हमें।
पतझड तो होता रहेगा,
इससे नहीं डरना हमें।

साहस सदैव हिम्मत रखें।
धैर्यवान बनकर हम रहें।
अंतस में तो भगवान बैठे,
तैयार लडने‌ को हम रहें।

पतझड़ बसंत आऐं जाएं।
तूफानों से नहीं घबराऐ।
सामना दुनिया से करना पड़े
सुख दुख संसार में मिल जाएं।

स्वरचित
इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
गुना म प्र
🌷2️⃣🌷
तूफान भी तरह तरह के होते है
अगर भयंकर उफान पर होते है
तो कर लेते है सर्व तहस नहस !!!

तूफान महज न केवल प्राकृतिक बाढ बरसाती या रेतीले जिससे की
हम सब परिचित है
वे जो भौगोलिक कारण से स्वभाविक और सहज !!

ये तूफान वैचारिक भी होते है बहुत बार
कुछ सहज और कुछ होते
है असहज !

नहीं रहता वश मन पर और
आवेश में जाता
आदमी पथ भटक!!

अगर गुबार बना आक्रोश रोष का 
उमड कर
अप्रिय परिणाम की रहती दहशत!!

इस लिए गुणिजन कहते है अगर यह दुर्भाग्य से हो तूफानी आवेगों की विवशता तो ध्यान ज्ञान से करे वश!!!

स्वरचित::अशोक दोशी
🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼
महाराष्ट्र कलम की सुगंध द्वारा आयोजित चित्र आधारित कविता लेखन में उत्कृष्ठ सृजन के लिए आपको ढेर सारी बधाई व शुभकामनाएं। महाराष्ट्र कलम की सुगंध परिवार आपके उज्ज्वल भविष्य की मंगल कामना करता है।

अनुराधा चौहान 'सुधी'
सचिव (महाराष्ट्र कलम की सुगंध)

चित्र गूगल से साभार

Saturday, September 26, 2020

चित्र लेखन

प्रथम स्थान
नमन मंच
महाराष्ट्र क़लम के सुगंध
विषय ....चित्र लेखन
25-09-20   शुक्रवार

सूर्य का अब अवसान समय ,
   चन्द्रोदय गतिशील हुआ
      दोंनों प्रहर का संगम सुन्दर ,
          विधना का विधि रूप खिला ।

नभ में घोर कालिमा छाई ,
  सूर्य छिपा पश्चिम दिशि पर ।
     उसी तरह चन्द्रोदय होता ,
        शुभ पूर्व दिशा के ही अंदर ।

सूर्य अस्त और चन्द्र उदय की ,
   गति   हमको  अवगत करती ।
       सृष्टि के ये नीति  नियम हैं ,
          जीवन  राह है आनी जानी ।

तपन सूर्य की तुमने देखी ,
   चन्द्र की शीतलता   देखो।
      वक्त वक्त का फेर है मानव ,
          दुःख सुख की झांकी देखो।

सूर्य अस्त  के बाद मान लो ,
   चन्द्रोदय सम्भव नहीं होता ।
       बिना चाँदनी मानव कैसे ,
          सुखमय जीवन को जीता
                       
 उदय अस्त का नियम यही है,
   जन्म के बाद मृत्यु सम्भव ।
      मानव सफल वही ही होगा ,
        जो इस नियम का ले संबल।

स्वरचित ....सुधा चतुर्वेदी मधुर
                        मुंबई
🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼
द्वितीय स्थान
नमन मंच
तिथि-25/09/2020
विषय-चित्र लेखन

ओ मेरे चाँद
*********
मेरी खिड़की से झांकता चाँद
आज फिर बहुत कुछ याद दिला गया
कहाँ हो तुम?
आज तन्हा हूँ मैं
कभी साथ गुजारा हुआ वक्त
तुम्हारे साथ याद आता है
तब ये चाँद
हमारे दरम्याँ हुआ करता था
हमारा हमदम, हमारा हमराज चाँद
कर देता था हमें चाँदनी से सराबोर
आज चाँद तो है
पर तुम नहीं हो
देती हूँ आवाज तुम्हें
पर एकान्त से टकरा कर
लौट आती है मेरी हर एक सदा
मेरी हर उम्मीद,मेरा हर सपना
होकर मायूस।
कभी इनके साथ तुम भी
लौट आओ ना!
देखो,,,आसमां पर टिकी है मेरी नजर
खोजती तुम्हें इन चांद तारों की झुरमुटों में
कुछ तो मुझे ढाढ़स बाँधा जाओ।
प्रिये,,,तुम हो कहाँ?
खोजती है तुम्हें मेरी नज़र
इन चांद तारों के झुरमुटों में!

अनिता निधि
जमशेदपुर,झारखंड
🌹 द्वितीय स्थान 🌹
नमन मंच
महाराष्ट्र कलम की सुगंध
विषय - चित्रलेखन
________________
आसमाँ पे छाई लालिमा स्याह रात का अंधियारा
सूर्य अस्त तारों की रोशनी गगन पर चाँद चमकेगा

नई सुबह नई किरणें लेकर कल भी सूरज उगेगा।

सूर्य की बिखरती रश्मियाँ करती है अठखेलियाँ
आशा ही जीवन है मन में सद्भाव जरूर जगेगा

नई सुबह नई किरणें लेकर कल भी सूरज उगेगा।

बागों में छाई हरियाली महक रही हर डाली-डाली
कली खिल रही पौधों में खुशबू से उपवन महकेगा

नई सुबह नई किरणें लेकर कल भी सूरज उगेगा।

झील-नदी तालाब-तलैया मछली करें ता-ता थैया
लहलहाती जल की लहरें कमल का फूल खिलेगा

नई सुबह नई किरणें लेकर कल भी सूरज उगेगा।

पूर्ण लगन मेहनत करना कभी नही किसी से डरना
कामयाबी मिलेगी तुम्हें, किस्मत का द्वार खुलेगा

नई सुबह नई किरणें लेकर कल भी सूरज उगेगा।

जीवन में संघर्ष बहुत है तुम कभी नही घबराना
निरंतर करें अपना काम तुम्हें हौसला जरूर बढ़ेगा

नई सुबह नई किरणें लेकर कल भी सूरज उगेगा।
सुमन अग्रवाल "सागरिका"
         आगरा
🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼
तृतीय स्थान
नमन मंच
विषय-चित्र लेखन
दिनांक-25/9/20

साँझ की बेला
मिलन अलबेला
निशा दिवस का
रंग रंगीला
ढलता सूरज
धरा गगन का
रूप सजीला
घूंघट ओढे
निशा अलबेली
ओढ़ नारंगी
प्यारी चुनर
इश्क की खुसबू
फैले जग में
पलके झुकाकर
नयन लड़ाए
तीर नजर के
है चलाये
साँझ शरमाये
देख लालिमा
प्रेम मिलन का
दृश्य सुनहरा
प्रतिदिन होता
निशा दिवस का
दीदार मिलन का
रहा अधूरा
रहता अधूरा
रहेगा अधूरा
राज घूंघट का

स्वरचित
मीना तिवारी
🌹तृतीय स्थान🌹
२५/९/२०२०
शुक्रवार
नमन मंच
"महाराष्ट्र कलम की सुगंध
विषय-चित्र -लेखन
विधा-कविता
-          -         -         -       -
            *प्रतीक्षा *
हे वीर वधु ! तू स्तब्ध खड़ी 
 क्या देखती नभ में चंदा !
यूँ विस्मय व्यग्र सी निहारती 
   तू  क्या ,सोच  रही।
वह तो बादलों में छुपकर 
  लुका छिपी खेल रहा। 
 शायद द्वारपर है,तेरा सुहाग
     इंतज़ार, कर रहा।
निर्जला व्रत रक्खा,कुछ खा 
     ले,उद्यापन कर ले।
बहुत हुआ व्रत उपवास,प्रभु ने
     तेरी प्रार्थना सुन ली।
बदली में छुपता फिर निकलता
      चाँद,तुझे सता रहा।
निश्छलआँखें इसकी,मत सता
     विरहणी मन,न जला।
येशांत,मधुर,गम्भीर,सौम्य खड़ी
      तुझे  निहारती सदा।
अपने चंद्र सुधा से इस विरहणी
       के संताप मिटा।
पति इसका हिन्द की सीमा पर
       दुश्मन से लड़ रहा।
अक्सर इसने पति दीर्घायु के
        लिए,व्रत रक्खा।
गुहार लगातीअन्तर्मन ही कुछ
      तुझसे कह रही।
सुन लेना दुखियारिन की पुकार
    यह आषीश मांग रही।
            *  *   *
*"नीलम पटेल"*प्रयागराज *
(स्वरचित,मौलिक, अप्रकाशित रचना)
🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼
सराहनीय प्रस्तुति
🌹1️⃣🌹
नमन मंच
महाराष्ट्र क़लम के सुगंध
विषय ....चित्र लेखन
25-09-20 शुक्रवार

रात पर बोझ बढ़ गया होगा
चांद के घर बड़ी उदासी है!!
   चांदनी गांव तक गई होगी
   आज कुछ घरों की तलाशी है!!
 दर्द से टूटता बदन क्यों है
 मूर्ति किसने यहां तराशी है !!     
बादलों को कहां पता होगा
आत्मा और एक प्यासी है !!
     रूप तो ज्ञान का पड़ोसी है
     सच कहूं वह बड़ा सियासी है!!
वक्त को बांध लो भुजाओं में
बात बिगड़ी अभी जरा सी है!!

स्वरचित :प्रतिभा पाण्डेय ,
गोरखपुर ,उत्तर प्रदेश
🌹2️⃣🌹
देख लो सोच लो मनन और मंथन भी कर लो जी भर
सूरज का साम्राज्य भी सदंतर नही चलता
कभी पूरी धरा पर
आना जाना लुकना छिपना लगा रहता है
और कम हो जाता है उसका अस्त काल में
बल जोर!!

चाहे वो कितना विशाल व सक्षम है
फिर भी
लेनी पड़ती है बहुत बार बादलों की
शरण पनाह और उसकी आगोश
तो फिर हम किस खेत की मूली है
जो चलेगा किस संजोग में
हमारा रूतबा समृद्धि और
सामाजिक साम्राज्यिक दबदबा दंभ
और निरंतर रौब !!

चाहे कितने भी कामयाब हो जीवन में
पर नहीं चलती किसी की जीवन भर
चाहो तो इस दृश्य पर कर लो जब मन चाहे
कभी भी गौर!

स्वरचित :अशोक दोशी
सिकन्दराबाद
🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼
महाराष्ट्र कलम की सुगंध द्वारा आयोजित चित्र आधारित कविता लेखन में उत्कृष्ठ सृजन के लिए आपको ढेर सारी बधाई व शुभकामनाएं। महाराष्ट्र कलम की सुगंध परिवार आपके उज्ज्वल भविष्य की मंगल कामना करता है।

अनुराधा चौहान 'सुधी'
सचिव (महाराष्ट्र कलम की सुगंध)

चित्र गूगल से साभार

Friday, September 25, 2020

बदली/घटा

प्रथम स्थान
नमन मंच
विषय-घटा /बदली
विधा- कविता
दिनांक- 24-09/2020
✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️
घनघोर  घटा  नभ  पर छाये,
बरसे सुख तन-मन छा जाये,
वन - उपवन  सारा झूम उठे,
हरियाली  चहुँदिश हो  जाए ।।

घूमड़-घूमड़  घन  घूम  रहा,
अपनी  बरखा को ढूंढ रहा,
नीर  भरा  निज  आँखों  में,
हौले-हौले  से  पिघल  रहा।।

दामिनी भी ऐसे चमक रही,
जैसे अन्दर  कुछ  टूट  रही,
छन-छन तन जब बूँद पड़ी,
एक अन्दर शोला भड़क रही।।

घन देख मोर वन नाच उठे ,
पायल छन-छन बाज उठे,
ठिठक गयी वो चौखट पर ,
लखि साजन मन चहक उठे।।

नैना  से  नैना  जब  टकराये,
आँखों में  तब  बदली  छाये,
जब  प्रेमपाश में  बाँध लिया,
एक मदहोशी  मन पर छाये।।

नयनों  ने बातों सब कर लीं,
बाहों   ने  मुलाकातें कर लीं,
सासों  ने   बाँधा  सांसों  को,
अंगो   ने  अँगड़ाई  भर  ली।।

नभ पर दामिनी थी दमक रही,
मन   में   प्रेमाग्नि भड़क  रही,
नभ  पर   बदली   छाई  जैसे,
मदहोशी  तन  पर  छाई जैसे।।

नभ   बरस  रहा    है  उपर  से ,
तन    सरस  रहा   है   उपर से,
हौले  - हौले   छँट   गयी   घटा,
मन खिला मिला जब साजन से।।
✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️
✍️🏻कुमार@विशु
✍️🏻बीकानेर ,राजस्थान
✍️🏻स्वरचित मौलिक रचना
🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼
द्वितीय स्थान
नमन मंच
दिनांक 24 09 20
विषय बदली
मेरी नई कविता
"बदली"

बदली है जो नभ पर छाई
आज हुई मतवाली सी
शीतल सा मधुरस बरसाती
नील गगन में आली सी।

विद्युत के तारों को छेड़े
भीषण सा जो राग बजाती्
सौदामिनी गर्जन करती
अग्नि रेखा को भू पर लाती।

सूने आंगन में फिर मेरे
बूंदों की ये कैसी टप टप
कौन है मीठे स्वर में गाता
किसकी पायल बजती छन!

घायल सा मन अपना लेकर
घन-वर की करता अगुवानी
ज्वर जो मन के भीतर मेरे
शांत करे यह ठंडा पानी

बूंदों के मोती भर आते
मै भी चुन लेता कुछ अपने
कहां से आई हो तुम लेकर
बदली इतने सुन्दर सपने?

मधुकर वनमाली
मुजफ्फरपुर बिहार
स्वरचित एवं मौलिक
🌷द्वितीय स्थान 🌷
नमन मंच 🙏
महाराष्ट्र क़लम की सुगंध
विषय ....घटा / बदली
24 -09-20 गुरुवार
.. ओ बरसो काले बदरा
***************************
ओ बरसो काले बदरा ,
   बरसा झूम झूम के आये ।
      तपन से ये मानव अकुलाया ,
          कब से आस लगाए ।

ओ बरसो काले बदरा ,
बरसा झूम झूम के आये ....

कैसी तपन सूर्य की बाहर ,
   वदन चिपचिपा करता आहत ।
      ऐसी अभिलाषा है तुझसे ,
         तू घनघोर मचाये।

ओ बरसो काले बदरा ,
बरसा झूम झूम के आये ....

कलुष कालिमा है नभ छायी ,
    घोर निराशा मन भर आयी ।
       झर झर की अब ध्वनि सुना तू ,
           मत इतना तरसाये।

ओ बरसो कारे बदरा,
बरसा झूम झूम के आये ....

मनहर नृत्य मयूर दिखाये ,
    ये समीर मद चाल दिखाये ।
       कोकिल के पंचम को तरसै ,
          मत तू अब इतराये ।

ओ बरसो काले बदरा ,
बरसा झूम झूम के आये .....

हे बदरा ! मानव की अब सुनि '
    अपने तन की हम बिसरे सुधि ।
       'मधुर' 'गति से आ बदरा तू ,
          मत इतना उमगाये ।

ओ बरसो काले बदरा ,
बरसा झूम झूम के आये ....

स्वरचित .....सुधा चतुर्वेदी ' मधुर '
                     मुंबई
🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼
तृतीय स्थान
नमन मंच-महाराष्ट्र कलम की सुगंध
तिथि-24/09/2020
वार-गुरुवार
विषय-घटा/बदली

सावन आया
**********

छायी घटा घनघोर आसमान में
गरजत बरसत आई बरखा रानी
चम चम चमक रही है बिजुरी
डर लागे मोहे कांपे जिया मोर।

बीत गया है दुखों का पतझड़
आ गया है खुशियों का सावन
सब के मन में उमंग है छायी
बरसे प्रेमधार सब का हर्षाया मन।

धरती ने ओढ़ी धानी चुनरिया
धरती का भी गदराया बदन
कृषकों ने छेड़ी कजरी की तान
हो रहा है धरती-गगन का मिलन।

तन-मन पर पड़ रही है रस की फुहार
प्यार का सन्देशा लाई है बरखा बहार
साड़ी भींगी,अलकों से टपके बुन्दियन
पिया मिलन आकुल मन गाये मल्हार।

दादुर, मोर, पपिहा, झिंगुर बोले
चमके चपला जियरा मोरा डोले
पड़ गये अमवा के डार पर झूले
सावन की बरसात में हम भी झूले।

राधा कृष्ण की मनभावन छवि शोभती
वो भी हो रहे मुदित संग राधा गोरी
दोनों संग-संग झूला झूल रहे हैं
यूँ लगे सावन में सब गाये हैं होरी।

पुलकित धरती गा रही है होकर मगन
बर्षा की बूंदें मन में लगाती अगन
रिमझिम की तान पर मोर भी नाचे
आम्र के पेड़ पर आम्रगुच्छे साजे।

स्वरचित अनिता निधि
साहित्यकार जमशेदपुर,झारखंड
🌷तृतीय स्थान🌷
२४/९/२०२०
गुरुवार
नमन मंच
"महाराष्ट्र कलम की सुगंध"
विषय-घटा/बदली
विधा-कविता
- - - - -
         *विरह वेदना *
घिर-घिर कर छाई,घटा 
     काली -काली
डर लागे पिया आजा ,
         हूँ मैं बांवरी
मेघ-मंडल को बेंध विद्युत
         कौंध रही।
मन क्लान्त है विरह वेदना
          झेल रही।
मन क्रंदन अनिद्रित नयन 
         तुम्हें ढ़ूँढ़ रही।
प्रेमाभिसार हृदय,तेरा पंथ
           जोह रही।
हृदय मेघ रूप बन,घनघोर
        नैनों मे छाया।
रिमझिम बूंदन बरस रही 
       नैनो से,आजा।
दिल मे बेचैनी घबराहट 
         पैदा होती।
रह-रह कर नभ में बिजली
         चमकती।
तड़ित हृदय पर आआकर
            गिरती
दिल की धड़कन ही थम
           जाती।
पिऊ पिऊकहाँssकी रटन
      लगाया पपिहा।
सुनकर मनतड़प उठा दिल
       तुम्हें पुकारा।
इन्द्रधनुषित स्निग्ध मेघखिला
         आकाश में ।
पर विरह असह्य है,नहीं भाता
          हृदय प्राण को
घनन -घनन -धन गरजे घन
             नभ में।
चमक -चमक चम चमके
       बिजुरी घन में।
दादुर,झिंगुर,मेंढ़क गाये सब
       अपनी धुन में।
मोर -मोरनी झूमझूम के नाचें   
          मधुबन में।
देखो पगली है सरिता कितनी
          प्रखर वेग में।
हतप्रद निकल पड़ी मिलने
            सागर से।
            * * *
*नीलम पटेल" *प्रयागराज *
(स्वरचित,मौलिक, अप्रकाशित रचना)
🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼
सराहनीय प्रस्तुति
नमन मंच
महाराष्ट्र कलम की सुगंध
दिनांक-24/9/20
विषय-घटा/बदली

आसमान में छाई काली घटा झूमे तन मेरा,
बादल गरजे बिजली चमके धड़के मन मेरा!!

झूला झूले सखियां बागों में हवा है मतवाली,
मोर भी नाचने लगा गीत गाए कोयल काली!!

अब कोई प्यासा नहीं धरा पर सब शान्त दिखने लगा,
देखकर खुश धरती को आकाश भी हँसने लगा!!

तृप्त होकर धरा यूँ शर्म से पानी हुई,
धानी चूनर से सुशोभित कैसी बेगानी हुई!!

स्वरचित/मौलिक
आभा सिंह लखनऊ उत्तर प्रदेश
(2)
नमन मंच
दिनांक-24/9/20
विषय-घटा
जब पड़ी पावस की
प्रथम बूँद
धरा कर बैठी तरुण
नवयौवना सृंगार
मन मस्त हुआ
देख पावस फुहार
धूल गए वृक्षो के पात पात
नन्हे पौधे ले अंकुरण भाव
बाल सुलभ
शिशु लीला अपार
धानी चूनर ओढ़ धरा
चमके कैसी बूंदों की ले थाह
इठलाती आनन्दित
जब चली बयार
छाई कैसी घनघोर घटा
दे रही धरा को
अनगिनत उपहार
दादुर ,कोयल,मोर,चकोर
नाच रहे बन चित चोर
रवि छिप कर बैठा
करता विश्राम
बादल गरजे विजली चमके
श्यामल वर्ण में ज्यो
दतिया चमके
तड़तड़ छनछन,पट पट
धुन बजती ले संगीत अपार
विरहन तरसे परदेसी पिया
व्याकुल मन से
खड़ी ताके द्वार
हर्षित जन मानस और संसार
जब पड़ी
पावस की बूंद बन फुहार

स्वरचित
मीना तिवारी
🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼
महाराष्ट्र कलम की सुगंध द्वारा आयोजित चित्र आधारित कविता लेखन में उत्कृष्ठ सृजन के लिए आपको ढेर सारी बधाई व शुभकामनाएं। महाराष्ट्र कलम की सुगंध परिवार आपके उज्ज्वल भविष्य की मंगल कामना करता है।

अनुराधा चौहान 'सुधी'
सचिव (महाराष्ट्र कलम की सुगंध)

चित्र गूगल से साभार

Thursday, September 24, 2020

स्नेह/प्रेम

प्रथम स्थान
नमन महाराष्ट्र क़लम की सुगंध मंच
दिनांक - २३/०९/२०२०
दिन - बुधवार
विषय - स्नेह/ प्रेम
विधा - कविता
---------------------------------------------

भेज रहे उम्मीद से तुमको प्रेम गुलाब।
तुमको है स्वीकार क्या देना मुझे जवाब।।

फूल नहीं मन है मेरा कर लो तुम स्वीकार।
प्रियतम इस दीवाने पर करो तनिक उपकार।।

बदले में दे दो मुझे प्रीत का तुम उपहार।
महका दो जीवन मेरा करो सुखी संसार।।

इतनी सी है कामना पाऊं तेरा प्यार।
तेरे दिल में मैं रहूं ओ मेरे दिलदार।।

हाथ थामकर हाथ में चलें साथ हम राह।
बंधन बांधूं प्रीत की यही प्रेम की चाह।।

धूप-छाँव हो या रहे सुख-दुख की बरसात।
बीते तेरे संग में अपने दिन और रात।।

मरते दम तक हम रहें एक जान एक तन।
मर कर भी टूटे नहीं रिश्तों का बंधन।।

सरिता सागर की तरह अपना हो संगम।
धारा की तरह चलें एक साथ हमदम।।

ईच्छा है जीवन जियें सदा तुम्हारे संग।
हर मौसम हर रंग में रंगें तुम्हारे रंग।।

रिपुदमन झा 'पिनाकी'
धनबाद (झारखण्ड)
स्वरचित
-------------------------
🌷प्रथम स्थान 🌷
महाराष्ट्र कलम की सुगन्ध
नमन मंच 🙏💐
दिनांक-23/09/2020
विषय-प्रेम

नयनो से दर्शन हो वह प्रेम नहीं,
नित बदलते भाव का नाम प्रेम नहीं।

मन को सुभाषित कर जाता है प्रेम,
हठ नहीं वरन साधना है प्रेम।

उन्मुक्त होकर भी स्वच्छंद नहीं प्रेम,
निर्विकार डूब जाना ही है प्रेम।

अनुभूतियों को लिए संग,
प्रेम तो है मन में उठती मृदु तरंग।

इंसानियत की नई राहें दिखाती,
प्रेम है ईश्वर की लिखी सर्वोत्तम पाती।

निर्मल निर्झर प्रवाह है प्रेम,
अंतर्मन की ज्योति बना है प्रेम।

प्रेम नहीं अश्रु की माला का हार,
वह बना है सृष्टि का आधार।

वैराग्य की पीड़ा भी है इसमें समाहित,
सच्चे प्रेम मे तन नहीं हर मन है लिप्त।

प्रेम समर्पण का है तंत्र,
स्वज्ञान से रचित है यह ग्रंथ।

समग्रता से उदित होता है प्रेम,
आत्मसात हो सुवासित कर देता है प्रेम।

हृदय का हृदय से है संवाद,
सात्विक प्रेम ही है मन का अंतर्नाद।

✍शुभ्रा वार्ष्णेय


🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼
द्वितीय स्थान
महाराष्ट्र कलम की सुगंध
जय-जय श्री राम राम जी
23/9/2020/बुधवार
*स्नेह/प्रेम/प्रीत*
काव्य

प्रेम-भाव उपजें अंतस से
निर्विकार भाव से उतराएं।
भाव-भंगिमा हों सनेही
मगन ह्रदय से जुड़ जाऐं।

प्रेम प्रीत में रंगे सभी हम,
स्नेह संगीत से जुड़ जाऐं।
मनमीत रहें एक दूजे के,
प्रभु प्रेम प्रीत में घुल जाऐ।

पूरे सपने करें सभी के,
भगवन सबके साथ खड़े हों।
दिल अपना तो पीर पराई
दीन हीन के साथ खड़े हों।

मीत प्रीत के गीत सुनाऐं।
मधुर मधुर संगीत बजाऐं।
गौरवमय इतिहास हमारा,
आपस में हम प्रीत बढाऐं।

सबको जीवन सुखी सुहाते।
अपने अपने राग सुनाते।
आओ मिलजुल रहें प्रेम से,
प्रीतम हमको बात बताते।

स्वरचित
इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी अजेय गुना म प्र
------------------------
🌷 द्वितीय स्थान 🌷
नमन मंच
23/9/20
विषय-चित्र लेखन

नन्ही मुन्नी गुड़िया रानी।
सीख गई है प्रेम कहानी।
जीवो के प्रति प्रेम धर्म।
बता रही थी टीचर रानी।

आओ आओ मुर्गी रानी।
संग खाने की हमने ठानी।
ये लो कुछ चावल के दाने।
फिर देगे हम तुमको पानी।

फुदक फुदक करना नादानी।
बस करना मत मन की मानी।
बोली तेरी मन को है भाती।
तेरे प्रेम को मेरे मन ने जानी।

नही भाती मानव की नादानी।
मार तुम्हे खाते दुश्मन जानी।
जीना तेरा भी तो हक होता है।
बड़ा वही जो जीवन का दानी।

स्वरचित
मीना तिवारी
पुणे महाराष्ट्र
🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼
तृतीय स्थान
नमन
महाराष्ट्र क़लम के सुगंध
विषय .....स्नेह /प्रेम (चित्र )
23-09-20 बुधवार

प्रेम की रीति कहीं नहीं बिकती ,
     इस विकराल जगत के बीच। 
         प्रेम तो उपजे अंतर मन में ,
             बन मानव जन जंतू मीत ।

प्रेम की भाषा पक्षी कुल जाने ,
      ना जाने मानव अब प्रीत ।
           स्नेहाभाव सिसक कर रोये ,
               अब धनी के परिवारों बीच।

प्रेमी तो अपनी थाली में ,
      गैरों को खिलाके खाता है।
           वहीं क्रूर दिल का मानव ,
              अपनों की छीन ले जाता है।

मजदूरों में अभी भी दीखते ,
      प्रेम के बीज पनपते हैं ।
            तभी तो आके ऐसे घर में ,
                पक्षी आंगन में उतरते हैं ।

स्नेह तन से नहीं झलकता ,
       व्यवहारों से वो झांकता है।
    . प्रेम -दीप जिस दिल में जलता ,
                 मानव वही प्रखरता है।

स्वरचित ...सुधा चतुर्वेदी मधुर मुंबई
-------------------------
🌷 तृतीय स्थान🌷
२३/९/२०२०
बुधवार
नमन मंच
"महाराष्ट्र कलम की सुगंध"
विषय-स्नेह/प्रेम
विधा-कविता
- - - - -
       * आत्मिक -भाव *
अरे! ये मुर्गी भूखी है,शायद
         इसीलिए आई। 
 पाकर स्नेहिलअनुभूति,हर्षित
           होकर आयी।
एक दूजे को देखतीं ,स्नेहिल
           भरी अंखियाँ।
बच्ची के मर्म में कितनी ही
            आत्मीयता।
मित्रवत्भाव,दया प्रेम का सागर
           मन में उमड़ता।
अतिव्याकुल मन,कहीं मुर्गी
           भूखी तो नहीं।
फिर बड़े ही प्यार से बेटी खाना
            परोस रही।
देती होगी,अपने ही हिस्से का
            दाना पानी ।
  कितनी उदार-दिल है,अति
          संवेदनशील।
ये मासूम दिल,प्रेम करुणा से
            है परिपूर्ण ।
ऐसी ही सौहाद्रता सभी में हो
     पास रहें चाहे दूर।
प्रज्वलित रहे प्रेमदीप,यूँ ही
       रहे स्नेहिल गुरूर।
भूखे की भूख मिटे,युगों-युगोंतक 
      खिले सद्भावना के फूल।
             * * *
*"नीलम पटेल" *प्रयागराज *
(स्वरचित,मौलिक, अप्रकाशित रचना)
🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼
महाराष्ट्र कलम की सुगंध द्वारा आयोजित चित्र आधारित कविता लेखन में उत्कृष्ठ सृजन के लिए आपको ढेर सारी बधाई व शुभकामनाएं। महाराष्ट्र कलम की सुगंध परिवार आपके उज्ज्वल भविष्य की मंगल कामना करता है।

अनुराधा चौहान 'सुधी'
सचिव (महाराष्ट्र कलम की सुगंध)

चित्र गूगल से साभार

Wednesday, September 23, 2020

रंग

प्रथम स्थान
नमन मंच
महाराष्ट्र क़लम के सुगंध
विषय ...रंग
22-09-20 मंगलवार

सृष्टि के निर्माता ने रंगो का ,
    विधान बिखेरा है ।
      प्राकृतिक की छटा निराली ,
          बहु विध रंग उकेरा है ।

श्वेत रंग है शांतिप्रदायक ,
  केसरिया त्याग प्रतीक बना ।
    हरा रंग हरियाली दर्शित ,
       तीनों से तिरंगा मान बढ़ा ।

इस दुनियाँ में रंग अनेकों ,
   प्रेम रंग अपनाहित का ॥
     घृणा रंग नफरत फैलाये ,
         क्रोध रंग ज्वालामुखी सा ।

त्याग रंग रामायण रच दे,
   तो ज्ञान रंग साहित्य रचे ।
     बलिदान रंग से सैनिक शोभित ,
        दया रंग से दानी सजे ।

इन रंगो से  चित्रित जग है ,
   रंग बिना जीवन सूना ।
       साहस धैर्य हिम्मत के रंग से ,
          जीवन सुखमय है पूरा ॥

स्वरचित    सुधा चतुर्वेदी मधुर
                        .मुंबई
🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀
द्वितीय स्थान
नमन मंच
विषय - रंग
विधा - कविता
दिनांक - २२/०९/२०२०
दिन - मंगलवार
--------------------------------------------

नील गगन पर इंद्रधनुष ने सातों रंग बिखेरा है।
ऊपर वाले कलाकार ने अद्भुत चित्र उकेरा है।।

नीला पीला हरा बैंगनी खिला खिला हर रंग है।
इंद्रधनुष के इन्हीं रंग से जीवन में भी रंग है।।

पीला सूरज घने पेड़ की डाली से जब छनता है।
खिलता है जब रंग धरा पर चित्र मनोरम बनता है।।

हरियाली चूनर से धरती दुल्हन जैसी लगती है।
दुग्ध सरिस जलधार लिए ये सरिता कल-कल बहती है।।

एक रंग से यह जीवन और प्रकृति नीरस हो जाए।
बहुरंगी हों रंग तभी संसार नयन को भी भाए।।

रिपुदमन झा 'पिनाकी'
धनबाद (झारखण्ड)
स्वरचित
🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀
तृतीय स्थान
नमन मंच
विषय-रंग
जीवन के रंगों को हमने।
सप्तरंगी होते देखा है।
रंग भरे जीवन को हमने
बदरंगी भी होते देखा है।

क्रत्रिम रंग के मुखौटे।
मनभावन सावन देखा है।
वक्त के साथ रंगों को
निश दिन रंग बदलते देखा है।

रंग बदलती इस दुनिया मे
रंगों का आकर्षण देखा है।
असली नकली रंग बिरंगी
अपनो को झुठलाते देखा है।

सुख दुख जीवन के पहलू
हँसते और रोते देखा है।
सुख रंग दिखता हैसियत
दुख में दूरी को देखा है।

सुख का रंग है चटकीला
दुख को रंगहीन देखा है।
बदरंगी जीवन को हमने
कुंदन सा चमकता देखा है।

स्वरचित
मीना तिवारी
पुणे महाराष्ट्र
🌹तृतीय स्थान 🌹
नमनमंच संचालक ।
महाराष्ट्र कलम की सुगन्ध।
विषय - रंग।
स्वरचित।

जीवन के हर दौर में,
हर भाव के लिए
रंग हमारी भाषा में
अपनी अभिव्यक्ति देते हैं।
और हमारे जीवन को
अपने रंगों की तरह
रंग-बिरंगा कर देते हैं।।

प्रेम के लिए लाल, गुलाबी।
शांति और पावनता के लिए सफेद
तो काला शोक या नकारात्मक।
नारंगी त्याग और वीरता का
तो पीला उत्साह-उमंग का
नीला ठंडक का तो हरा खुशी का।

तारीफ़ में किसी मुखड़े के
यूं कह उठता कवि अनायास-

सिन्दूरी कपोल और
कजरारी अंखियां।
या बादामी आंखों में
झील सी गहराइयां।
सुर्ख गुलाबी होंठ
मानो गुलाब पंखुड़ियां।

स्वर्ण सा दमकता चेहरा
काली घटा से लहराते बाल।
नीले सागर जैसी आंखें और
शर्म से हुये लाल गाल।

यूं तो रंगों के कारनामों की
लिस्ट बड़ी लंबी है।
भावनाओं की अभिव्यक्ति में
भी कई सारे रंग बोलते हैं।
राज अन्दर के कभी आंखो तो
कभी चेहरे की रंगत से खोलते हैं।।
***

प्रीति शर्मा "पूर्णिमा"
22/09/2020
🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀
महाराष्ट्र कलम की सुगंध द्वारा आयोजित चित्र आधारित कविता लेखन में उत्कृष्ठ सृजन के लिए आपको ढेर सारी बधाई व शुभकामनाएं। महाराष्ट्र कलम की सुगंध परिवार आपके उज्ज्वल भविष्य की मंगल कामना करता है।

अनुराधा चौहान 'सुधी'
सचिव (महाराष्ट्र कलम की सुगंध)

चित्र गूगल से साभार

Tuesday, September 22, 2020

हरियाली

प्रथम स्थान
स्वरचित
कोरोना ने बहुत कुछ छीन लिया है पर बहुत कुछ दिया भी है। कहीं चिंता दी तो कहीं चिन्तन। किसी का चैन छीना तो किसी को सुकून दिया। लेकिन हम बात करेंगे सकारात्मक पहलू की।

खुशियाली है... हरियाली है...
देखो हर तरफ प्रकृति में
छाई हरी हरियाली है।
घर में भी देखो अब तो
आई खुश खुशियाली है।।

बाग बगीचे सब हरे -भरे,
वृक्ष फूलों-फलों से लदे फदे।
चिकने हरे हरे से पत्ते,
चमके मानो रुधिर भरे।।

लगते कितने खुश हैं ये
स्वच्छ हवा में लेते श्वांस।
जीवन में कब देखे ऐसे
सुमनों पर भरपूर पराग।।

है प्रदूषण से मुक्त धरा ।
साफ सुथरा है पर्यावरण।
सौन्दर्य से भरपूर निखरा-निखरा
प्रकृति का है कण-कण।।

साफ बह रहीं नदियां
सबकी जीवनदायिनी।
होगी अब भरपूर फसल
पौष्टिक आरोग्यबर्धनी।।

देखो कितनी हरियाली।
छाई कितनी हरियाली।।

जीवन में भर गये फिर रंग
घर घर हंसी ठहाके गूंज रहे।
दादा-दादी,मम्मी-पापा के संग
मस्ती,नोक-झोंक भरपूर रहे।।

प्यार पुरसुकून मन में फिर
फिर उमंग,तरुनाई भर आई।
घर लगते पावन मन्दिर से
रौनकें बहु-बेटीं लेकर आईं।।

मतभेद विचार कुछ ढह रहे
समन्वय के संस्कार बह रहे।
लहरा रहा भारतीय संस्कृति का परचम
हो रहा फिर नये पुराने का संगम।।

ऐसा मौका मिलेगा ना फिर
जी लो जीवन के ये अद्भुत दिन।
स्मृतियों में बस जायेगें
कोरोना वाले दिन कहलायेगें।।

देखो खुशियाली आई।
घर में खुशहाली छाई।।
***

प्रीति शर्मा"पूर्णिमा"
21/09/2020
🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀
द्वितीय स्थान
विषय .......हरियाली

हरियाली ये मनभावन है,
    धरा ने चूनर ओढ़ी है।
      हरी  भरी ये धरती लगती ,
        अब शांति आभूषण शोभित है।

प्रदूषण से राहत लगती ,
    तव ही  वसुंधरा सजी हुई ।
       हरियाली चहुँ और है फैली, 
          पर लम्बी सांसो में सिसक रही।

धुंधली यादों के साये में ,
    नित मुझको दीखे वो मोड़ ।
        वो  हरियाली रास्ते जिस पर ,
             आती सड़क थीं  चारों ओर ।
       
हरियाली  बिन रस्ता नहीं सजती,
   चौराहे की शान सजे ।
         तुम मिलते थे में मिलती थी ,
              पर आज वहाँ विश्राम लगे ।
       
कहां गयीं वो सड़क की रौनक ,
    जिस पर मेले लगते थे ।
       पहचान नहीं  होती अब उसकी, 
         जिस मोड़ पर हम सब मिलते थे
               
सड़कें अब वीरानी रहतीं ,
      हरियाली बिन  घबराती हैं। 
           क्या मोड़ों पर पड़ी आपदा, 
               बिल्कुल चैन न  पाती हैं।
           
सुन्दर वादी हमसे पूछें ,
    तुम सब कहां पर खोये हो ।
        क्यों नहीँ मिलने मुझसे आते ,
             किस विपदा से रोये  हो ?
     
पता नहीं अब कब रस्तों पर ,
    जन मानस की भीड़ लगे ।
       वाहन अब कब  दौड़ लगायें ,
           मधुर आस में सभी पड़े।
       
         स्वरचित     सुधा चतुर्वेदी मधुर
                         मुंबई
🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀
तृतीय स्थान
वो खड़ी
दूर मुस्करा रही थी।
शायद मेरा
उपहास उड़ा रही थी।
सच क्या
मैं शायद जानती थी।
बड़ी बारीकियों से
मेरे उफनते जज्बातो को
पहचान रही थी।
सच मे वो मेरा मजाक उड़ा रही थी।
मैं गुमसुम सी उसको ताक रही थी।
जानती थी।
तभी तो हवाओ के
एहसासों से
मुझ को संदेशे भिजवा रही थी।
मानो कह रही
क्यो बैठी हो
छिपकर
आओ न मिल बैठ
करती हूं कुछ बाते
कुछ बीती अधूरी पूरी बातें
पहले की तरह
करो न मेरा स्पर्श
दो न सुखद एहसास
जोड़ दो साँसों के तार से
अपने नर्म पैरो
के तलुवों से सहला दो मुझे
अपने होने का एहसास दिला दो
बहुत हो गया
खामोशियो का गुजरता सफर
पर सुनो न
पर मत वापस देना
वो प्रदूषण
जहर मिला।
कितनी काली हो गई थी।
मत दोहराना
न मिटाना
मेरा अस्तित्व
कितनी सुन्दर हो गई मैं
वापस हरी भरी
स्वच्छ हरियाली युक्त
झूमती मैं पवन संग
मत करना मेरा उपहास
किस तरह
छिपकर बैठी हो
झांक रही हो
शाश्नकित तन मन से
आओ न तुम भी
लो न सुखद एहसास
मेरे संग का
मैं भर लूँगी तुमको
अपनी आगोश में
झूम उठेगा मेरा आँगन
नन्हे मुन्नों की किलकारियों से
पर मत आना
बीते इतिहास को दोहराने
मेरे जज्बातो का
उपहास उड़ाने.....

स्वरचित
मीना तिवारी
पुणे महाराष्ट्र
🥀🥀तृतीय स्थान🥀🥀
 - - - - -
        * सुरमयी प्रकृति *
                  *
बादलों के टंकार गर्जन नाद से
          धरती,मुस्कुराई।
पपिहे की पीउ कहाँss रुदन
       स्वर,फिर करुणआई।
रिमझिमबूदों ने वर्षाकर, धरती
        की प्यास बुझाई।
अनुपम हरियाली सर्वत्र धरणी
        पर,चहुं-दिश छाई।
हुई प्रकृति रमणीक, वसुंधरा
       मुखरित हो हरसाई।

प्रकृति है ममतालु वात्सल्यता
     लिए,आँचल रही फैला।
आह!मधुर संगीत सुरों में मगन
          पंक्षी रहें हैं गा।
फल-फूल खिल उठे क्यारी-क्यारी,   
         कलियन रहीं मुस्कुरा।
ललक-पुलक-थिरक रहे पंक्षी,
       गुटुरगूँ कर रहे बतिया।

काले-काले मेघ छा रहे,दामिनी
          घनबीच अपार।
सर-सरिता-गिरि-तरुवर सबके
       मन में है, अह्ललाद।
फल-फूलों से लदे वन उपवन
     हृदय तंत्र में,उल्लास।

हरियाली चूनर ओढ़े भू ,पर्वत
     का जूडा लिया बना।
रंग बिरंगे रत्न आभूषण कुंदन
     प्रकृति तन में जड़ा।
 सिंधूरी लाली सूरज धरणी मांथे
        का,टीका बना।
इत्रमें भींनी-भींनी मलयज, सांसों
        में सर्वत्र घुल रहा।
           * * *
*"नीलम पटेल" *प्रयागराज *
(स्वरचित,मौलिक, अप्रकाशित रचना)
🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀
सराहनीय प्रस्तुति
नमन मंच
आँखों को तृप्ति देती है मन को हर्षाती है हरियाली,
चहक रहा उपवन सारा चारों ओर छाई हरियाली,
नाचे मयूर और बोले पपीहा मेंढ़क टर्र-टर्र करते,
सूरज जब भी निकलता नभ में निखरे उसकी लाली!!

खेतों में फसलें लहराएं सरसों पीली दिल को लुभाएं,
लहलहते फसलों को देखकर किसान उत्सव मनाएं,
सुन्दरता वसुधा पर छाई जब घिर आई काली घटाएँ,
सारे पक्षी शोर मचाते गीत गाती है कोयल काली!!

आओ जगह- जगह पर  अपनी पसंद के पेड़ और फल लगाएं,
प्रकृति की इस अद्धभूत देन से नाता जोड़ें और सबका जीवन सफल बनाएं!!

आभा सिंह
लखनऊ उत्तर प्रदेश 
मेरी रचना मौलिक, स्वरचित है।
___________________
सराहनीय प्रस्तुति
महाराष्ट्र कलम की सुगंध
21 सितंबर 2020
विधा-क्षणिकाएं
************************   
     1.
हुई सुबह मन इठलाए,
काले काले बादल छाएं,
मन में उमंग जब भरता,
हरियाली मन को लुभाएं।
       2
चहुं ओर फूल खिले हो,
जहां बैठकर मन हर्षाये,
हरियाली के नाम पर ही,
खुशियां दामन भर जाए।
     3
मन मुदित हो देख छटा,
आसमान पर छाए घटा,
रिमझिम बारिश होती है,
हरियाली की झुकी लता।
************************
स्वरचित, नितांत मौलिक
*******************
*होशियार सिंह यादव
मोहल्ला-मोदीका, वार्ड नंबर 01
कनीना-123027 जिला महेंद्रगढ़ हरियाणा
 व्हाट्सअप एवं फोन 09416348400
🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀
महाराष्ट्र कलम की सुगंध द्वारा आयोजित चित्र आधारित कविता लेखन में उत्कृष्ठ सृजन के लिए आपको ढेर सारी बधाई व शुभकामनाएं। महाराष्ट्र कलम की सुगंध परिवार आपके उज्ज्वल भविष्य की मंगल कामना करता है।

अनुराधा चौहान 'सुधी'
सचिव (महाराष्ट्र कलम की सुगंध)
चित्र गूगल से साभार

Sunday, September 20, 2020

आँखें

प्रथम स्थान
--------------
दिखाई देती है उसमें,
अंतर मन की सभी दशा,
नयन तो दर्पण है ,
मन का।

देख पाते है, इन नयनो से हम,
निकृष्ट और उत्कृष्ट
में अंतर,
देखते है हम नयन से,
जगत की मंजुलता।
हृदय का संदेश वाहक है नयन,
देख पाते हम उससे,
जीवन के अयन।
अम्बक से ही किसी
को देख कर प्रशन्नचित,
हम होते हैं हर्षित।
दया की भावना भी हृदय में, नयनो से
आती है।
बात हो निस्वार्थ प्रेम की या हो निच्छल स्नेह की,
चित्त को ये बोध तो,
नयन हीं कराते है।
हृदय के साथ होता है,
नयन का रिश्ता इतना
गहरा,
रुदन को करता है हृदय पर अश्रु तो,
नयनों में आतें है।
बड़ा हीं महत्वपूर्ण है,
तनु के लिए नयन।
जिसे न दिखे नयन से,
उनके लिए अश्रुपूरित,
होता है हर क्षण।
हम मानस में रखे ये ज्ञान सदा,
सदैव ध्यान रहे अनमोल नयन का।

दिखाई देती है उसमें,
अन्तरमन की सभी दशा,
नयन तो दर्पण है मन का।।

- मिनाक्षी जायसवाल
   पदमा ( हजारीबाग)
     झारखंड
🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀
द्वितीय स्थान
----------------
         *प्रतिबिम्ब *
आँखें मन का दर्पण,मन को
       मुखरित करतीं।
भृकुटि-भंगिमा चेहरे की मन
       का भाव,दर्शातीं।
जो भी देखा करतीं,उसेआँखें
         कैद कर लेतीं।
नयनअवरुद्ध हृदय की बंधन
        व्यथायें कहतीं।
जो हम न कह पाते,आँखें सब
        कुछ ब्यान कहतीं।
मन के सारे भेद येआँखें बखूबी
             खोल देतीं।
सत्य-झूठ,बुरे-भले सारे कर्मों का,
        अवलोकन करतीं।
संध्या की लाली समान जब आँखें,
      थक कर सोतीं।
अंतर्व्थाएं काफी हद तक मन
       हल्का कर देतीं।
दुख में आँखें मेंघ बन रिमझिम
        अश्रु छलकातीं।
आँखेंजाने कितनी ही उपमाओं
        से उपाधि जातीं।
कोई कहताआँखें हिरणी जैसी
      मतवाली है प्यारी ।
शायरों द्वारा सुंदरआँखों की महिमा
         बखानी जाती।
           *   *    *
*"नीलम पटेल"*प्रयागराज *
(स्वरचित,मौलिक,अप्रकाशित
रचना)
🌷द्वितीय स्थान🌷
नमन मंच
विषय-आँखे


मन का आईना बन
चंचल शोखियो सी
गहरी झील सी
गहरी ये आंखे
बहुत कुछ कह जाती ये आँखे

दिल की नगरी में रह
कहती जज्बातो की कहानी
या करती कोई नादानी
मुस्कराकर जता जाती
ये खूब सूरत सी आँखे

नचाया करती है
ये नाचने वाली
इशारो ही इशारो में
बया कर जाती
सारे दिले हालात
सच मे क्या क्या कह जाती आंखे

कभी सुर्ख गुलाबी सी
सागर की आगोश में
परछाई दिखाती हुई
बन रवि की छाया
अंगारे सी धधकती
जलती और जला जाती ये आंखे

पल्लू को ओठो से दबा
झुकी पलको को से
तिरछी आँखों से
दिल की बातो को
बिन कहे कह जाती
ये शर्माती सी आँखे

कभी लाल कभी नीली
कभी पीली कभी गीली
कभी ओस की बूंदे टपकाती
कभी दुखो को
बया करती
और कभी जार जार रो कर
दिल की तड़फ बतला जाती ये आंखे

छिपे है ढेरो राज
बन नैनो का साज
बड़ी तमाशबीन है
बेपनाह हुनरमंद
दिल की वसीयत
बड़ी रंगीन है ये आंखे
सच मे क्या क्या गुल खिला जाती ये आंखे

स्वरचित
मीना तिवारी
पुणे महाराष्ट्र
🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀
तृतीय स्थान
-------------
#आंखें
******
ना जाने कितनी उम्मीद से
तकती हैं तुम्हें ये मेरी निगाहें
हर बार लौट आती हैं निरूत्तर
ये बोलती आँखें!

है इन्तज़ार भरा भाव कितना
मेरी इन निगाहों में
पूरा होता नहीं है सपना
तकती रहती हैं आँखें!

शायद निगाहों ने निगाहों की
भाषा पढ़ी नहीं,समझी नहीं
पाया ना उत्तर
है प्रतीक्षारत आँखें!

उतारा है क्या अपनी निगाहों से
खोजता हल मेरा अन्तर्मन
मिलता नहीं है हल
अनुत्तरित हैं आँखें!

मैं नहीं चाहती गिरो तुम,मेरी निगाहों से
बसे रहो मेरी इन निगाहों में
दर्शन करती रहूँ मैं तेरी
आनंदित होती रहें मेरी आँखें!

स्वरचित
अनिता निधि
जमशेदपुर,झारखंड
🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀
सराहनीय प्रस्तुति
(1)
आँखें  न  केवल  चेहरे  की  सुंदरता ,
नजरों की दृष्टी की आँखें ही माध्य हैं ।
नजरों का  साधन बनती ये  आँखें हैं ,
आँखें ही नजरों की साधन और साध्य हैं ।

आँखें बदलती हैं बार बार नजरों को ,
कभी रौद्र दीखें कभी प्यार की कटार हैं ।
नजरों में गिरता जो बार बार आँखों से ,
फिर  न  उठे चाहे  कोशिशें हजार   हैं ।

आँखें मिलाना पर आँख न चुराना कभी ,
ये ही दोस्ती और रिश्ता निभाती हैं ।
आँख के इशारे पर नजरें हैं चलती सदा, 
नजरें छिपायो लाख आँख सब बताती हैं ।

आँखों और नजरों की दोस्ती है प्यारी सी ,
जहां नजर उठे वहाँ आँख घूम जाती हैं ।
आसपास दुनियाँ में ' मधुर' हमारे  क्या ,
नजरें सब लाती खबर आँख को बताती हैं ।

स्वरचित मौलिक ...सुधा चतुर्वेदी' मधुर

                           मुंबई
(2)
विषय - आँखें
विधा -कविता

हर बार ये करामात दिखाती हैं आँखें,
कितने भी गहरे राज हों बोलती हैं आँखें,
ये तो इन्सान के दिल का आईना होती हैं,
खुशी के आँसुओं को भी अपने आँचल में
पनाह देती हैं आँखे!!

कभी गीत कोई तो कभी गज़ल हैं आँखें,
कभी कोई चेहरा झील जैसा तो कमल हैं आँखें,
जादू की पुड़िया होती हैं आँखें,
कभी गम में कभी खुशी में रोती हैं आँखें!!

सारी दुनिया के राज खोलती हैं आँखें,
लोगों से ज्यादा बोलती हैं आँखें,
ईश्वर का सबसे सुंदर उपहार हैं आँखें,
नमन उस प्रभु को जिसने हमें दी है ये
प्यारी आँखें!!

मौलिक- आभा सिंह
लखनऊ उत्तर प्रदेश
🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀
महाराष्ट्र कलम की सुगंध द्वारा आयोजित चित्र आधारित कविता लेखन में उत्कृष्ठ सृजन के लिए आपको ढेर सारी बधाई व शुभकामनाएं। महाराष्ट्र कलम की सुगंध परिवार आपके उज्ज्वल भविष्य की मंगल कामना करता है।

अनुराधा चौहान 'सुधी'
चित्र गूगल से साभार
सचिव (महाराष्ट्र कलम की सुगंध)

Saturday, September 19, 2020

बचपन

🌷प्रथम स्थान 🌷
महक उठा
देखो प्यारा बचपन
हमजोली का न्यारा बचपन
बहुत दिनों से झाँक
रहा था
झरोखे से कांख रहा था
दोस्त सारे गुम हुए
न जाने कहाँ गए
कितनी बाते तुम्हे बतानी
जो हमने जेल में काटी
सब रहते छुप छुप के
बात बात पर हाथ धुलाते
शंकाओ की बांध पोटली
खुद जीते और हमे जिलाते
सारा दिन मोबाइल लेपटॉप
ऑफिस का घर पर काम
हर बात पर मिलती डॉट
सारा दिन खड़ी होती खाट
दादी दादा रहते चुप चाप
सुननी पड़ती इनकी भी बात
पार्क स्कूल हो गए बन्द
हम भी हुए है नजरबंद
क्या तेरे संग होती ये बात
नही मिलता तुझको साथ
भूल रहे हम सारे खेल
मिली जब से घर की जेल
छूट गया यारो का मेल
दौड़ धूप
की प्यारी मस्ती
अपनी भी थी कोई हस्ती
कोई लौटा दे बीते दिन
हँसी खुशी के बीते दिन
जाओ अब तो
कोरोना भाई
कैसी ये आफत दिलवाई
मुक्ति करो हमको जीने दो
यारो से यारी करने दो
हंस कर कुछ बाते करने दो
नीना यू ही मिलती रहना
चुपके से पर आती रहना
बोझ दिलो का हल्का होगा
पता नही कब तक
जीना होगा
घर पर ढेरो चौकीदार
होती रहती जांचपड़ताल
रखना पड़ता
सबका खयाल
पर मिलेगे हम चुपचाप
आखिर बचपन का हमारा साथ

स्वरचित
मीणा तिवारी
🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂
🌷 द्वितीय स्थान 🌷
क्या कहा?
बचपन...
वो तो चला गया...!!
कहां गया बचपन...?
खो गया...क्या....??
आधुनिक जीवन की
आपाधापी में,
पढ़ाई के बोझ में,
मां पिता की व्यस्तताओं में,
एकल होते परिवारों की मजबूरी में,
या इलैक्ट्रोनिक मीडिया के प्रचलन में..???

ना...ना...ना...
बैठा है दिल के
किसी छोटे कोने में
समय के इन्त़जार में।
जैसे ही मिलता है मौका
फटाक से निकल आता है।
उम्र चाहे गुजर चुकी बचपन की
हो गये हों चाहे अब हम पचपन के।

आज भी हंस लेते हैं
वक्त-बेवक्त खिल-खिलाकर
ठठाकर,तालियांमार या शर्माकर।
कर देते छोटी-छोटी गलतियां
या हऱकतें,बालकों जैसी
और खुद ही डांट लेते हैं
प्यार से खुद को।।

जी लेते हैं
समय-समय बचपन
बच्चों के साथ।
पुराने दोस्तो से मुलाकात,
आंखों में तैर जाता
अद्भूत उल्लास।
और ज़िंदगी भर जाती
फिर जिंदादिली से,
जिंदगी से एकबार।।
***

प्रीति शर्मा" पूर्णिमा"
18/09/2020
 🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂
🌷 तृतीय स्थान 🌷
बचपन कैसा प्यारा होता ,
    हमजोली की टोली ।
तरह तरह के खेल है इसमें ,
   नित नई हँसी ठिठोली ।

कहीं भी बैठो कहीं भी घूमो ,
   बंदिश नहीं कोई होती॥
घर   घर की सब  बातें होतीं ,
   कोई बात रहस्य न होती।

कंधे पर भारी बस्ता लटके ,
   हाथ में बोतल पानी ।
वजन   उठाते बड़े  प्रेम से ,
    दोस्ती होती दीवानी ।

हम गुड़िया बचपन में खेले,
   ढोलक साज सजाते थे ।
घर से ला सामान खाद्य का ,
     हम बारात बुलाते थे ।

पर आज न जानें खेल खिलौना ,
     बच्चे व्यस्त पढ़ाई से ।
उनका बचपन मधुर छिन गया ,
       कम्पूटर मोबाइल से ।

  ऑन लाईन हो रही पढ़ाई ,
बचपन परिपक्व है रूप बना ।
   नहीं जानते बचपन बच्चे ,
 बचपन तो इनसे छिन ही गया ।

स्वरचित अप्रकाशित रचना   
सुधा चतुर्वेदी मधुर
   .    .मुंबई
मोबाइल .....9833438261
🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂
सराहनीय प्रस्तुति
(१)
लौटा दे कोई वो प्यारा बचपन..........

हांलाकि अब तो मेरे पार हो गये पचपन
पर नहीं भूला वो मेरा प्यारा आज भी मैं बचपन!!!

स्वछंद पर संतोष और कंचन मन
अहंकार का तो
नामो निशान नही
न तोहमत न आक्षेप न लांछन!!

अगर किसी मित्र से कुट्टी हो भी जाती
तो वो मिट्टी के खेल में  हो जाती थी
धूमिल अब मत पुछना
वो कब कैसे और क्यों ?आज  तक नहीं जान पाया
वो जो कच्चे घडे सा था मन !!!

मां का लालन पिताजी का पालन
महफूज रखता था हमें
दादाजी बडें गहन समझदार थे
मेरे "ऐ" वन!!

रात में  तिन बार उठते थे मेरे  ओढ़ने
बिछौने का निरीक्षण करने
कहीं खुला न रह जाये मेरा तन !!!

शहर में तो हम बहुत बाद में आये
मेरे वतन की गलियों व आधा हमारे
खेत खलियान में बीता था
वो प्यारा सा बचपन!!!

बहुरूपीयों का खेल
रामलीला और लोक गीत व नाटक का मंचन
देखते देखते बडे  हुऐ न अवरोध न अडचन!!!

हांलाकि अब तो मेरे पार हो गये पचपन
पर नहीं भूला वो मेरा प्यारा अभी भी
मैं बचपन!!!

काश! लौटादे  कोई मेरा निःश्चल मन
मां का आंचल पिताजी का दुलार
दादाजी का प्यार
और वह प्यारा सा बचपन!!

स्वःरचीत :अशोक दोशी
सिकन्दराबाद
🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂
(२)
"बचपन"
जीवन में महकती है जिसकी खुशबू
और हर पल याद आता है जो
सबसे बेपरवाह होकर
तितलियों के पीछे दौड़ना
जुगनुओं को पकड़ कर
मुठ्ठियों में बंद करना
बारिश के पानी में
कागज की नाव चलाना
कुछ सिक्कों के लिए
जमीन पर लौट कर
जिद अपनी मनाना
विद्यालय न जाने के
नये नये बहाने बनाना
छोटी छोटी बातों पर
दोस्तों से झगड़ना
थोड़ी देर गुस्सा
फिर साथ खेलना
एक दौर जीवन का
जिसमें चाहता हूँ
एक बार फिर लौटना
वो बचपन की मस्ती
और बेफिक्र होकर
यहाँ वहाँ घूमना
चाहता हूँ एक बार फिर
वो बचपन मैं जीना
वहाँ लौटकर फिर से
वो खुबसूरत दिन जीना
जीवन में सबसे खूबसूरत
और खुशनुमा बचपन का होना
यही ख्वाहिश है मेरी
फिर बनकर बच्चा
बचपन को फिर से जीना
©®धीरज कुमार शुक्ला "दर्श"
ग्राम व पोस्ट पिपलाज, तह. खानपुर
जिला झालावाड़ ,राजस्थान 326038
दूरभाष अंक-7688823730
🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂
(३)
शीर्षक- खिलखिलाता बचपन मेरा

खिलखिलाता बचपन मेरा, खिलखिलाते बच्चे।
स्कूल को जाते हम सब मिलकर, दिन थे कितने अच्छे।।

अठन्नी चवन्नी बहुत थी, तब आते दोने भरके।
इंटरवल में चीजें खाते, लाते घर से सिक्के।।

हिंदी साइंस तो अच्छे लगते ,रहे गणित से बचते।
क्रोध में तो टीचर रहते ,धरते घूसे मुक्के।।

इंटरवल का पीरियड छोटा ,खेले कब हम बच्चे।
पढ़ाई में तो आगे बढ़ गए, रहे खेल में कच्चे।।

स्कूलों में ही मित्र मिल गए, बिन विज्ञापन खर्चे।
पाकर इनको धन्य हो गए, जैसे हीरे पन्ने।।

गुरु ज्ञान से नेक बने हम, कर रहे सेवा हृदय से सच्चे।
इंजीनियर डॉक्टर कुछ वैज्ञानिक बन गए ,इरादे थे जिन जिनके पक्के।।

स्कूल से ही नैतिकता पा गए, हर कृत्य राष्ट्र को समर्पित करते।
एक दिन भारत विकसित होगा, रह जाएंगे सब हक्के बक्के।।

विश्व गुरु बनेगा भारत , होंगे कई चंद्रयान अंबर पे।
अलग ग्रह पर होंगी रस्में, अलग ग्रह पर नाते रिश्ते।।

खिलखिलाता बचपन मेरा, खिलखिलाते बच्चे।
स्कूल को जाते हम सब मिलकर, दिन थे कितने अच्छे।।


✍डा.शुभ्रा वार्ष्णेय
🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂
महाराष्ट्र कलम की सुगंध द्वारा आयोजित चित्र आधारित कविता लेखन में उत्कृष्ठ सृजन के लिए आपको ढेर सारी बधाई व शुभकामनाएं। महाराष्ट्र कलम की सुगंध परिवार आपके उज्ज्वल भविष्य की मंगल कामना करता है।

अनुराधा चौहान 'सुधी'
सचिव (महाराष्ट्र कलम की सुगंध)

चित्र गूगल से साभार

Friday, September 18, 2020

चित्र लेखन

प्रथम स्थान
नमन मंच
महाराष्ट्र क़लम के सुगंध
विषय .....चित्र लेखन
17-09-200
प्रकृति क़ी गोद

रे मानव ! ये तेरी भूल है ,
प्रकृति से क़ी खिलवाड़ है ।
उसके बिन तेरी गति नहीं है ,
ना मानव  तेरा वंश आधार है ।

सांस क़ी गति मुझ से ही है ,
स्वच्छ वायु क़ी में आधार ।
ईश्वर क़ी प्रिय वरदान हूं में ,
जीवन तेरा मुझसे साकार ।

फल फूल क़ी उत्पत्ति मुझसे ,
कली कली में खिली खिली ।
में   बच्चों को गोद  में रखती ,
मेरी वंश बेल मिटा क्यों   दी ।

मुझ मिट्टी में बच्चे खेले कूदे ,
खेल कूद कर बढ़े हुए  ।
उसी धरा का छेदन करके ,
चीड़ फाड़ तुम खुशी हुए ।

फूलों से कोमल बच्चों सम ,
तुमने है चमन उजाड़ दिये ।
कभी ना सोचा पुष्प पल्लवित ,
वृक्षों को तुमने काट दिये ।

वृक्ष के बिन क्या फल मिल जायें ,
अन्न के कण कण तरसोगे ।
सूर्य देव के ताप से बचते ,
अब तुम  शीतल को तरसोगे ।

स्वरचित    सुधा चतुर्वेदी मधुर
                    मुंबई
🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷
द्वितीय स्थान
नमनमंच संचालक ।
महाराष्ट्र कलम की सुगन्ध।
विषय - चित्रलेखन ।
विधा -छन्द मुक्त
शीर्षक - मैं तो तेरी मां हूं और साथ हूं बाप भी।
स्वरचित।

मैं तो तेरी मां हूं और साथ हूं बाप भी।
कर्तव्य निभाएं मैंने,परम पिता की छवि।।

कैसे तू भूला मानव? मैं हूं तेरी प्रकृति।
ईश्वर का वरदान,उसकी अनुपम कृति।

तेरी रक्षा करती हूं मैं।
हरदम रत रहती हूँ मैं।
मां की तरह मैंने तुझे
आंचल की छांव दी।
और पिता की तरह मैंने
तेरी क्षुधा शांत की।।

मैं तो तेरी मां हूं और साथ हूं बाप भी।
कर्तव्य निभाएं मैंने, परमपिता की छवि।

कैसे भूला तू मानव? मैं हूं तेरी प्रकृति।
ईश्वर का वरदान, उसकी अनुपम कृति।।

मेरे हर अंग का तूने
खूब इस्तेमाल किया।
चाहे जड़ हो या तना?
सबने है कमाल किया।

पत्ती-पत्ती,कलियां-कलियां
सब काम तेरे आए।
कोई बना रोग की दवाई
कोई चेहरा संवार जाए।

मैं तो तेरी मां हूं और साथ हूं बाप भी।
कर्तव्य निभाएं मैंने, परमपिता की छवि।

कैसे भूला तू मानव? मैं हूं तेरी प्रकृति।
ईश्वर का वरदान, उसकी अनुपम कृति।।

हर सांस को सांस का हक,
हर प्राणी को आस।
वातावरण को शुद्ध पवित्र,
दिया सबको वरदान सायास।।

हर कण-कण से अपने
पृथ्वी को उर्वरा खूब किया।
ना काटो मुझे वरना, मानो
रोगों से संग्राम हुआ।।

मैं तो तेरी मां हूं और साथ हूं बाप भी।
कर्तव्य निभाये मैंने, परमपिता की छवि।

कैसे भूला तू मानव? मैं हूं तेरी प्रकृति।
ईश्वर का वरदान,उसकी अनुपम कृति।।
*****

प्रीति शर्मा," पूर्णिमा"
17/09/2020
______________
🌷द्वितीय स्थान🌷
_______________
नमन मंच
विषय - चित्र लेखन


बरसती बारिश,
समंदर, समंदर की लहरें,
घने बादल,
ढलता सूरज,
कितना कुछ है प्रकृति में
मगर मानव करता विध्वंस है

बेबाक पंछीओं उडना,
कड़कती बिजली,
रातों की शान्ति,
खेत खलियानों की हरयाली,
कितना कुछ है प्रकृति में
मानव देता बड़ा दंश है!!

तपता गगन,प्यासा उपवन,
लू के झोंके, भरा दौंगरा,
जूही की कली पल यौवन भरा,
मृदु मुस्कान, कोयल की तान
कितना कुछ है प्रकृति में
मानव भी इसका अंश है!!

जेष्ठ की तपन, आषाढ़ का गर्जन
गाते मेंढक, विकल जन जन
फिर खुले आसमान,
हर्षित किसान
कितना कुछ है प्रकृति में
प्रत्येक जीव इसी का अंश है!!

@मौलिक अप्रकाशित

स्वरचित ----- -    अभिषेक मिश्रा
बहराइच उत्तर प्रदेश
🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷
तृतीय स्थान
नमन मंच
विषय चित्र लेखन

तू देख रहा
रे मानव
यौवन प्रकृति का
खिला खिला
जब से तू
रहा छिपा छिपा
प्रदूषण मुक्त
हो गई धरा
सज गई धरा
पहन धानी चुनर
चहके पक्षी
डाल डाल फिर पात पात
जो धुले धुले
निखरे लाजवाब
दे रही प्रकृति
सुंदर दावत
आलिंगन स्नेह संचार
किलकार रही धरा
बन शिशु सा सार
जब चली हवा
ले शुद्ध बयार
अदभुद जीवन का संचार
मत अब इसको मिटने देना
ये है खुशियो का गहना
देती हमको कितने उपहार
बिन इनके नही जीवन सार
ये प्रकृति धरोवर
जीवन की
हर कण कण की
 जीवन दाती
ईश्वर का उपहार है
एक सच्चा वरदान है
हमे बदले में फर्ज निभाना है
नवांकुर रोपण कर
जन जन को जगाना है।

स्वरचित
मीना तिवारी
🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷
महाराष्ट्र कलम की सुगंध द्वारा आयोजित चित्र आधारित कविता लेखन में उत्कृष्ठ सृजन के लिए आपको ढेर सारी बधाई व शुभकामनाएं। महाराष्ट्र कलम की सुगंध परिवार आपके उज्ज्वल भविष्य की मंगल कामना करता है।

अनुराधा चौहान 'सुधी'
सचिव (महाराष्ट्र कलम की सुगंध)
चित्र गूगल से साभार

Thursday, September 17, 2020

बाढ़

प्रथम स्थान

महाराष्ट्र कलम की सुगंध

16/9/2020/बुधवार

विषय# बाढ#

विधा-काव्यःः

जलधर इतना जल भर लाऐ,

ये जल प्रलय से शोर मचाऐं।

मुश्किल में प्रभु पडी जिंदगी,

तुम गंगाधर अब हमें बचाऐं।


यहाँ नदियां नाले झूम रहे हैं।

प्रत्येक शिखर ही चूम रहे हैं।

तांडव नृत्य करते जल देवा,

घुमड घुमडकर बरस रहे हैं।


मकान दुकान तैरते पानी में।

हाहाकार मचा रजधानी में।

घर गृहस्थी वहती रोजाना,

बहुत व्यथित हैं परेशानी में।


सैनिक सहायक बने हुए हैं।

सब सेवाकार्य में डटे हुए हैं।

डाल जान जोखिम में ऐसे,

वीर जवान सब लगे हुए हैं।


सब बाढ पीडित परेशान हैं।

क्या करें बहुत व्यवधान है।

जल प्रवाह भी रूकता नहीं,

पशुपक्षी अब डरे किसान हैं।

स्वरचितः ः

इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय

मगराना गुना म.प्र.

जय जय श्री राम राम जी

🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀

द्वितीय स्थान

नमन 

महाराष्ट्र क़लम की सुगंध 

विषय .....बाढ़ 

16-09-20 बुधवार 

ये दृश्य मौत का मंजर है, 

आपदा प्राकृतिक आई है। 

बारिश का रूप है बाढ़ बना , 

ये वृक्ष पर है चढ़ आई है। 


ये वृक्ष ही रक्षक बन जाये, 

विश्वास आस्था मन में है। 

पर वृक्ष सतत जीवन कितना , 

उसके मस्तिष्क के अंदर है। 


कहते हैं ये दैविक आपदा है, 

पर ये तो मौत निमन्त्रण है । 

विकराल रूप जल का देखो, 

घर का विनाश भयंकर है। 


ये रौद्र रूप महा प्रकृति का है, 

तुमने भी मर्यादा तोड़ी थी। 

प्रिय धरा का तुमने नाश किया , 

बंजर सम बना के छोड़ी थी। 

संरचित सुधा चतुर्वेदी मधुर 

                      मुंबई

द्वितीय स्थान

दिनांक - १६/०९/२०२०

दिन - बुधवार

विषय - बाढ़

विधा - मुक्तक

--------------------------------------------

भारी बारिश ने किया पूछो ना क्या हाल।

सड़कें पानी से हुई भरकर नदिया ताल।

डूबे घर सब पानी में डूब गए सब खेत -

अस्त-व्यस्त हालत हुई जनजीवन बदहाल।


डूबा जल में आशियां दिखे कहीं ना छोर।

कोलाहल क्रंदन करे त्राहि-त्राहि हर ओर।

जलमग्न हर थल हुआ डूबे जंगल पेड़ -

पशु, पक्षी, जन त्रस्त हो ढूंढे अपना ठौर।


कुदरत ने ऐसा किया जल से बड़ा प्रहार।

नर, नारी और जानवर असहायों लाचार।

जगह सुरक्षित ढूंढते हो हो कर बेचैन -

करें दुहाई रामजी कर दो बेड़ा पार।


रिपुदमन झा 'पिनाकी'

धनबाद (झारखण्ड)

स्वरचित

🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀

तृतीय स्थान

नमन महाराट्र कलम की सुगंध

16 सितंबर 2020 बुधवार

विषय-बाढ़

विधा-कविता

****************************

प्रकृति की आती आपदाएं 

बरपा सकती हैं बड़ा कहर,

गांव पानी में बह जाते कई,

तबाह हो जाते हैं कई शहर।


घर में रखा सामान खराब,

कहां जाएं दर्द मारे जनाब,

खत्म हो जाते सभी ख्वाब,

नहीं मिले माथे की आब।


रात गुजारते ,भूखा रहकर ,

सिर छुपाने की जगह नहीं,

पेड़ों पर चढ़कर बैठ जाते,

विपत्ति घेरती है जहां कहीं।


घोर संकट होता प्रकोप बाढ़,

नहीं पता कब आ जाए बाढ़,

सावन में अकसर आ जाती,

कभी आ जाये माह आसाढ़।।

**********************

स्वरचित, नितांत मौलिक

*******************

*होशियार सिंह यादव

मोहल्ला-मोदीका, वार्ड नंबर 01

कनीना-123027 जिला महेंद्रगढ़ हरियाणा

 व्हाट्सअप एवं फोन 09416348400


महाराष्ट्र कलम की सुगंध द्वारा आयोजित चित्र आधारित कविता लेखन में उत्कृष्ठ सृजन के लिए आपको ढेर सारी बधाई व शुभकामनाएं। महाराष्ट्र कलम की सुगंध परिवार आपके उज्ज्वल भविष्य की मंगल कामना करता है।


अनुराधा चौहान 'सुधी'

सचिव (महाराष्ट्र कलम की सुगंध)

Wednesday, September 16, 2020

अंतर्द्वंद

प्रथम स्थान
महाराष्ट्र कलम की सुगन्ध
नमन मंच 💐🙏
दिनांक -15/09/2020
विषय - अंतर्द्वंद
विधा-गद्य

  तारों का उत्सव अब विश्राम ले रहा था। सूरज की छुटपुट किरणें स्वर्ण मल्लिका के समान तमस को पराजित करने को प्रतिबद्ध थीं।
जो नहीं पराजित हो पा रहे थे वे थे स्वयं पंडित रामनाथ शास्त्री के मन के भाव। विगत एक सप्ताह से स्वयं का स्वयं से युद्ध जारी था।
शहर के धनाढ्य व प्रभावित लोगों में से एक जीवन दास द्वारा संचालित 'जीवन दास संगीत महाविद्यालय' के शिक्षक ही नहीं प्राण थे रामनाथ शास्त्री, जिन के संरक्षण में अनगिनत प्रतिभाऐं अपने लक्ष्य तक पहुंची थी।स्वयं को पालक नहीं, सेवक मानते थे वह संस्था का।
उनकी सौम्यता व सरलता के कारण ,जीवन दास की मलिन छवि के विपरीत, संगीत विद्यालय दूर क्षेत्र तक अपना प्रभाव छोड़ने में सफल था।
बढ़ती प्रसिद्धि के चलते जीवन दास पूर्णता रामनाथ शास्त्री पर अपने विद्यालय का दायित्व डाले निश्चिंत थे । पर आज रामनाथ शास्त्री अपने दायित्व व मनःस्थिति से तालमेल नहीं बैठा पा रहे थे।
सप्ताह पूर्व जब करुणा की सजीव मूर्ति चित्रा अपने दस वर्षीय पुत्र सुकेतु को उनके सम्मुख संगीत शिक्षा की अनुनय लेकर आई। तब उन्हें भली भांति ज्ञात था कि यह वही चित्रा है जिसने वैधव्य के प्रारब्ध को पूर्णता नकार कर उस मनुवादी समाज को तिलांजलि दे दी थी ,जिसका प्रतिनिधित्व जीवनदास सरीखे लोग करते थे।
पति के ना रहने पर संपत्ति व स्वयं पर सामाजिक लोभ का उसने प्रतिकार किया था। जिसके फलस्वरूप जीवनदास सरीखे लोगों का समूह अपने विरुद्ध तैयार कर लिया था।
इसी के चलते अब सुकेतु की संगीत शिक्षा में जीवन दास की अनुमति बाधक थी।
जब चित्रा के हठ पर सुकेतु का मधुर गायन सुना तो वह भली-भांति समझ गए कि बालक के गले में साक्षात सरस्वती विरजती हैं। पर जीवन दास के प्रति पूर्णता निष्ठा रखने पर उन्होंने शिक्षा देने से मना कर दिया।
प्रतिदिन भोर में ही चित्रा को सुकेतु के साथ विद्यालय के आगे शिक्षा याचक के रूप में खड़े देखकर रामनाथ शास्त्री अंतर्द्वंद की स्थिति से गुजर रहे थे। मना करने के बाद भी चित्रा की याचना पूर्ववत ही थी।
एक दिन शाम को मंदिर से लौटते समय उत्सुकतावश उनके कदम चित्रा के घर की ओर मुड़ गए।
चित्रा के घर से निकलते सुकेतु के मधुर स्वर, संध्या बेला को अनुप्राणित कर रहे थे। उस समय उन्हें स्वर्गीय आनंद की प्राप्ति हुई। आनंद ने अंतर्द्वंद पर विजय पा ली थी।
अगली भोर तमनाशक थी। विद्यालय के सामने खड़ी चित्रा व सुकेतु को देख अब रामनाथ शास्त्री ने आगे बढ़कर सुकेतु का हाथ थाम लिया।
सुकेतु को अंदर विद्यालय में ले जाते हुए रामनाथ शास्त्री को पिछली संध्या में जीवन दास को लिखे पत्र का स्मरण हो आया, जिसमें उन्होंने लिखा था," मैं आपका सेवक व मां सरस्वती का उपासक हूं। मां ने मुझे सुकेतु के रूप में अपनी उपासना का आदेश दिया है। और मैं इस उपासना के साथ ही विद्यालय की और आपकी सेवा कर पाऊंगा।"
सुकेतु के साथ अंदर विद्यालय में जाते हुए पीछे मुड़कर देखा, चित्रा का शुष्क मुख प्रसन्नता की आद्रता से नम था।

✍️डा.शुभ्रा वार्ष्णेय
🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀
द्वितीय स्थान
नमन मंच महाराष्ट्र कलम की सुंगध
विषय_ अन्तर्द्वन्द
विधा-कविता
दिनांक १५-९-२०२०

इस किनारे ,उस किनारे,
 पर लगेगी नाव,
मन का प्रश्न स्वयं से,
 एक अनुबन्ध हैं|
और प्रकृति की देन,
 अन्तर्द्वन्द है|

आगा पीछा सोचना,
डरना, झिझकना,
आदमी के आचरण,
का अंग है|
मनुज की इच्छा शक्ति ही,
अन्तर्द्वन्द है|

जोड़ लें या तोड़ दे,
मुख मोड़ ले,
अब क्या करे ,
क्या ना करें|
इसी को तो कहते ,
अन्तर्द्वन्द हैं|

जिन्दगी के फैसले,
करते हुए जब,
मन की चंचलता ,
आकुल होती है|
उसे दिग्भ्रमित,
करता अन्तर्द्वन्द् हैं|

स्वार्थी, लोभी, कृपण,
कलुषित हृदय धारी ,
अपने को सदा,
मुखौटे मे छिपाते|
और मचाते भीतर,
ही भीतर द्वन्द हैं|

वीर ,शौर्य वाले निकलते,
जब मुहिम पर,
आत्म बल से लेते हैं,
निर्णय सदा|
खेल जाते जान पर,
करते न अन्तर्द्वन्द हैं|

आदमी है चाहता ,
शांति से हल सदा|
इसलिए चतुर्दिक ,
देखता है सोचता|
और तब सही हल,
करते अन्तर्द्वन्द हैं|

माँ सदा बेटे के हित में ,
सोचती है हृदय से|
प्यार की पराकाष्ठा,
संतानों के प्यार से|
व्यर्थ उसके लिए ,
सारे हीअन्तर्द्वन्द हैं|

द्वन्द्व जब निष्पक्ष होगा,
किसी मसले में|
सत्य का अनुशरण,
करता द्वन्द्व जब मन मे|
सही निर्णय करते,
तब यही अन्तर्द्वन्द हैं|

वुद्धि और विवेक,
कर्मठता कुशलता |
किसी भी कारण के,
निमित्त हैं सोचते|
मनुज के जीवन का,
सारथी अन्तर्द्वन्द है|

स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
 विजय श्रीवास्तव
 बस्ती
दिनांक १५-९-२०२०
🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀
तृतीय स्थान
नमन मंच
महाराष्ट्र क़लम के सुगंध
विषय ...अंतर्द्वंद
15-09-20

 विधना ने विध के दिया ,
    जीवन संग अंतर्द्वंद ।
       कभी खुशी कभी गम दिया ,
. सब विधना के रंग ।

  कहीं धन अभाव है ,
     कहीं स्वास्थ का तनाव है ।
        कहीं महामारी तो कहीं ,
           क्रूर शत्रु का दबाव है ।

औलादों की प्रतिक्रिया ,
    अवसाद बनके आई है ।
        संवादहीन बनोगे तो ,
           अंतर्द्वंद मन में छाई है ।

वाद करो विवाद करो ,
    और करो मधुर संवाद ।
       सबसे सुन्दर मार्ग ये ,
           ना झांकें कोई तनाव ।

तनाव के चक्रव्यूह को ,
   कभी रचने न देना ।
       बनना तुम अभिमन्यु ,
           भेदन झट कर देना ।

अंतर्द्वंद की छाप को '
   मत मन में करो प्रवेश ।
     मन को पावन रूप दो ,
       द्वंद से कर मति भेद ।

स्वरचित सुधा चतुर्वेदी मधुर
                         मुंबई

🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀

महाराष्ट्र कलम की सुगंध द्वारा आयोजित चित्र आधारित कविता लेखन में उत्कृष्ठ सृजन के लिए आपको ढेर सारी बधाई व शुभकामनाएं। महाराष्ट्र कलम की सुगंध परिवार आपके उज्ज्वल भविष्य की मंगल कामना करता है।

अनुराधा चौहान 'सुधी'
सचिव (महाराष्ट्र कलम की सुगंध)

चित्र गूगल से साभार

Monday, September 14, 2020

सराहनीय प्रस्तुति (हिन्दी दिवस)

सराहनीय प्रस्तुति
🥀🥀🥀🥀🥀🥀
नमनमंच संचालक ।
महाराष्ट्र कलम की सुगन्ध
आयोजन - हिन्दी दिवस।
शीर्षक - "हिंदी राष्ट्री धरोहर है"
स्वरचित।

गांधी,बोस,विनोवा भावे,
घूमे लेकर छोर से छोर।
राष्ट्रीय आंदोलन की अगुवा
बनी आजादी का स्वर है।
हिन्दी राष्ट्र धरोहर है।।
******
राष्ट्रीय एक्य के भाव जगाये।
प्रादेशिक भाषायें अपनाये।
वैज्ञानिक आधार अपनाये।
बोली बड़ी मनोहर है।
हिन्दी राष्ट्र धरोहर है।।

अतुल ज्ञान को लेकर चलती।
नव-नव अनुसन्धान है करती।
देश भक्ति का संधान है करती।
बोली जाती घर-घर है।
हिन्दी राष्ट्र धरोहर है।।

संस्कृत की है प्यारी बेटी
पालि प्राकृत की बहना।
अपभ्रंस बना बहाना जन्म का
पावन मानसरोवर है।
हिन्दी राष्ट्र धरोहर है।।

भारत माता का है सम्मान।
हम सबको है बड़ा अभिमान।
देशभक्ति की यही पहचान।
सब भाषाओं से बेहतर है।
हिन्दी राष्ट्र धरोहर है।।
****

प्रीति शर्मा"पूर्णिमा"
14/09/2020
🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀
महाराष्ट्र कलम की सुगंध
14 सितंबर 2020
विषय-हिंदी दिवस
विधा-कविता
************************
हिंदी दिवस वेे मना रहे,
कर रहे अंग्रेजी में बात,
वो कैसे भारत वासी हैं,
नहीं देते, जो देश साथ।

खा रहे भारत देश का,
गा रहे अंग्रेजी के गुण,
निज बच्चों को कह रहे,
अंग्रेजी में बनना निपुण।

हिंदी भारत की आत्मा,
ऊपर है जगत परमात्मा,
जब तक प्यारा देश रहे,
हिंदी से रखे शुद्ध आत्मा।

प्रणाम हिंदी दिवस आज,
लो बनाये इसे माथे बिंदी,
गीत गाएं मिलकर आज,
पंजाबी हो या हो वे सिंधी।

मधुर, सरस, सलिल होती,
सुन हिंदी खुश मन आत्मा,
हिंदी हैं हमारी मां की भाषा,
हिंदी भाषा होती परमात्मा।।
************************
स्वरचित, नितांत मौलिक
*******************
*होशियार सिंह यादव
मोहल्ला-मोदीका, वार्ड नंबर 01
कनीना-123027 जिला महेंद्रगढ़ हरियाणा
 व्हाट्सअप एवं फोन 09416348400
🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀
नमन मंच
दिनांक14/9/20
विषय-हिंदी दिवस


हिंदी हमारी भाषा।
नाता है अच्छा खाशा।

है धर्म यहाँ अनेको।
है भिन्न भिन्न भाषा।

है कठिन बहुत हिंदी।
जिसको न आये ये भाषा।

ये संस्कृत की है बेटी।
ऋषि मुनियों ने तराशा।

रखती है जोड़कर हमे।
ये हिंदी की है सरलता।

सिखाती है विनम्रता।
भावो की अभिव्यक्तता।

अपनापन हमे सिखाती।
ये मातृ भूमि की भाषा।

आओ बढे संकल्प लेकर।
रखे विचार की समता।

हर रोज हिंदी दिवस हो।
ये न्याय की हो सत्ता।

भाषा भी अच्छी अंग्रेजी।
पर हिंदी से न विमुखता।

सम्मान हो सभी का।
अपमानित न हो कोई भाषा।

स्वरचित-
मीना तिवारी
पुणे महाराष्ट्र
🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀
नमन मंच
दिनांक 14/9/2020

विषय-हिन्दी दिवस
विधा-छन्दमुक्त कविता


सिंध से हिन्द फिर हिन्दी बना
कई भाषा मिलकर हिंदी बना।

हिंदी हम सब की पहचान है
हम भारतीय  की  शान है।

हिंदी माता की दुलार है
हिंदी पिता का प्यार है।

हिंदी हमारी अभिव्यक्ति है
यही भाषा की शक्ति है।

हिंदी  सुमधुर संगीत है
मन को छूने वाली गीत है।

हिंदी नदियों की धार है
बारिश की ठंडी बौछार है।

सुबह की शीतल बयार है
हिंदी ही हमारा संसार है।

हिंदी बर्फ सी फैली चादर है
नदियों को एक करता सागर है।

हिंदी सावन की हरियाली है
सुबह निकलती किरन की लाली है।

नूरफातिमा खातून "नूरी"( शिक्षिका)
जिला-कुशीनगर

मेरी रचना मौलिक स्वरचित है

महाराष्ट्र कलम की सुगंध द्वारा आयोजित चित्र आधारित कविता लेखन में उत्कृष्ठ सृजन के लिए आपको ढेर सारी बधाई व शुभकामनाएं। महाराष्ट्र कलम की सुगंध परिवार आपके उज्ज्वल भविष्य की मंगल कामना करता है।

अनुराधा चौहान 'सुधी'

चित्र गूगल से साभार
सचिव (महाराष्ट्र कलम की सुगंध)

पिता

  प्रथम स्थान नमन महाराष्ट्र क़लम की सुगंध मंच दिनांक - १६/१०/२०२० दिन - शुक्रवार विषय - पिता --------------------------------------------- ...