🌷प्रथम स्थान 🌷
महक उठा
देखो प्यारा बचपन
हमजोली का न्यारा बचपन
बहुत दिनों से झाँक
रहा था
झरोखे से कांख रहा था
दोस्त सारे गुम हुए
न जाने कहाँ गए
कितनी बाते तुम्हे बतानी
जो हमने जेल में काटी
सब रहते छुप छुप के
बात बात पर हाथ धुलाते
शंकाओ की बांध पोटली
खुद जीते और हमे जिलाते
सारा दिन मोबाइल लेपटॉप
ऑफिस का घर पर काम
हर बात पर मिलती डॉट
सारा दिन खड़ी होती खाट
दादी दादा रहते चुप चाप
सुननी पड़ती इनकी भी बात
पार्क स्कूल हो गए बन्द
हम भी हुए है नजरबंद
क्या तेरे संग होती ये बात
नही मिलता तुझको साथ
भूल रहे हम सारे खेल
मिली जब से घर की जेल
छूट गया यारो का मेल
दौड़ धूप
की प्यारी मस्ती
अपनी भी थी कोई हस्ती
कोई लौटा दे बीते दिन
हँसी खुशी के बीते दिन
जाओ अब तो
कोरोना भाई
कैसी ये आफत दिलवाई
मुक्ति करो हमको जीने दो
यारो से यारी करने दो
हंस कर कुछ बाते करने दो
नीना यू ही मिलती रहना
चुपके से पर आती रहना
बोझ दिलो का हल्का होगा
पता नही कब तक
जीना होगा
घर पर ढेरो चौकीदार
होती रहती जांचपड़ताल
रखना पड़ता
सबका खयाल
पर मिलेगे हम चुपचाप
आखिर बचपन का हमारा साथ
स्वरचित
मीणा तिवारी
🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂
🌷 द्वितीय स्थान 🌷
क्या कहा?
बचपन...
वो तो चला गया...!!
कहां गया बचपन...?
खो गया...क्या....??
आधुनिक जीवन की
आपाधापी में,
पढ़ाई के बोझ में,
मां पिता की व्यस्तताओं में,
एकल होते परिवारों की मजबूरी में,
या इलैक्ट्रोनिक मीडिया के प्रचलन में..???
ना...ना...ना...
बैठा है दिल के
किसी छोटे कोने में
समय के इन्त़जार में।
जैसे ही मिलता है मौका
फटाक से निकल आता है।
उम्र चाहे गुजर चुकी बचपन की
हो गये हों चाहे अब हम पचपन के।
आज भी हंस लेते हैं
वक्त-बेवक्त खिल-खिलाकर
ठठाकर,तालियांमार या शर्माकर।
कर देते छोटी-छोटी गलतियां
या हऱकतें,बालकों जैसी
और खुद ही डांट लेते हैं
प्यार से खुद को।।
जी लेते हैं
समय-समय बचपन
बच्चों के साथ।
पुराने दोस्तो से मुलाकात,
आंखों में तैर जाता
अद्भूत उल्लास।
और ज़िंदगी भर जाती
फिर जिंदादिली से,
जिंदगी से एकबार।।
***
प्रीति शर्मा" पूर्णिमा"
18/09/2020
🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂
🌷 तृतीय स्थान 🌷
बचपन कैसा प्यारा होता ,
हमजोली की टोली ।
तरह तरह के खेल है इसमें ,
नित नई हँसी ठिठोली ।
कहीं भी बैठो कहीं भी घूमो ,
बंदिश नहीं कोई होती॥
घर घर की सब बातें होतीं ,
कोई बात रहस्य न होती।
कंधे पर भारी बस्ता लटके ,
हाथ में बोतल पानी ।
वजन उठाते बड़े प्रेम से ,
दोस्ती होती दीवानी ।
हम गुड़िया बचपन में खेले,
ढोलक साज सजाते थे ।
घर से ला सामान खाद्य का ,
हम बारात बुलाते थे ।
पर आज न जानें खेल खिलौना ,
बच्चे व्यस्त पढ़ाई से ।
उनका बचपन मधुर छिन गया ,
कम्पूटर मोबाइल से ।
ऑन लाईन हो रही पढ़ाई ,
बचपन परिपक्व है रूप बना ।
नहीं जानते बचपन बच्चे ,
बचपन तो इनसे छिन ही गया ।
स्वरचित अप्रकाशित रचना
सुधा चतुर्वेदी मधुर
. .मुंबई
मोबाइल .....9833438261
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सराहनीय प्रस्तुति
(१)
लौटा दे कोई वो प्यारा बचपन..........
हांलाकि अब तो मेरे पार हो गये पचपन
पर नहीं भूला वो मेरा प्यारा आज भी मैं बचपन!!!
स्वछंद पर संतोष और कंचन मन
अहंकार का तो
नामो निशान नही
न तोहमत न आक्षेप न लांछन!!
अगर किसी मित्र से कुट्टी हो भी जाती
तो वो मिट्टी के खेल में हो जाती थी
धूमिल अब मत पुछना
वो कब कैसे और क्यों ?आज तक नहीं जान पाया
वो जो कच्चे घडे सा था मन !!!
मां का लालन पिताजी का पालन
महफूज रखता था हमें
दादाजी बडें गहन समझदार थे
मेरे "ऐ" वन!!
रात में तिन बार उठते थे मेरे ओढ़ने
बिछौने का निरीक्षण करने
कहीं खुला न रह जाये मेरा तन !!!
शहर में तो हम बहुत बाद में आये
मेरे वतन की गलियों व आधा हमारे
खेत खलियान में बीता था
वो प्यारा सा बचपन!!!
बहुरूपीयों का खेल
रामलीला और लोक गीत व नाटक का मंचन
देखते देखते बडे हुऐ न अवरोध न अडचन!!!
हांलाकि अब तो मेरे पार हो गये पचपन
पर नहीं भूला वो मेरा प्यारा अभी भी
मैं बचपन!!!
काश! लौटादे कोई मेरा निःश्चल मन
मां का आंचल पिताजी का दुलार
दादाजी का प्यार
और वह प्यारा सा बचपन!!
स्वःरचीत :अशोक दोशी
सिकन्दराबाद
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(२)
"बचपन"
जीवन में महकती है जिसकी खुशबू
और हर पल याद आता है जो
सबसे बेपरवाह होकर
तितलियों के पीछे दौड़ना
जुगनुओं को पकड़ कर
मुठ्ठियों में बंद करना
बारिश के पानी में
कागज की नाव चलाना
कुछ सिक्कों के लिए
जमीन पर लौट कर
जिद अपनी मनाना
विद्यालय न जाने के
नये नये बहाने बनाना
छोटी छोटी बातों पर
दोस्तों से झगड़ना
थोड़ी देर गुस्सा
फिर साथ खेलना
एक दौर जीवन का
जिसमें चाहता हूँ
एक बार फिर लौटना
वो बचपन की मस्ती
और बेफिक्र होकर
यहाँ वहाँ घूमना
चाहता हूँ एक बार फिर
वो बचपन मैं जीना
वहाँ लौटकर फिर से
वो खुबसूरत दिन जीना
जीवन में सबसे खूबसूरत
और खुशनुमा बचपन का होना
यही ख्वाहिश है मेरी
फिर बनकर बच्चा
बचपन को फिर से जीना
©®धीरज कुमार शुक्ला "दर्श"
ग्राम व पोस्ट पिपलाज, तह. खानपुर
जिला झालावाड़ ,राजस्थान 326038
दूरभाष अंक-7688823730
🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂
(३)
शीर्षक- खिलखिलाता बचपन मेरा
खिलखिलाता बचपन मेरा, खिलखिलाते बच्चे।
स्कूल को जाते हम सब मिलकर, दिन थे कितने अच्छे।।
अठन्नी चवन्नी बहुत थी, तब आते दोने भरके।
इंटरवल में चीजें खाते, लाते घर से सिक्के।।
हिंदी साइंस तो अच्छे लगते ,रहे गणित से बचते।
क्रोध में तो टीचर रहते ,धरते घूसे मुक्के।।
इंटरवल का पीरियड छोटा ,खेले कब हम बच्चे।
पढ़ाई में तो आगे बढ़ गए, रहे खेल में कच्चे।।
स्कूलों में ही मित्र मिल गए, बिन विज्ञापन खर्चे।
पाकर इनको धन्य हो गए, जैसे हीरे पन्ने।।
गुरु ज्ञान से नेक बने हम, कर रहे सेवा हृदय से सच्चे।
इंजीनियर डॉक्टर कुछ वैज्ञानिक बन गए ,इरादे थे जिन जिनके पक्के।।
स्कूल से ही नैतिकता पा गए, हर कृत्य राष्ट्र को समर्पित करते।
एक दिन भारत विकसित होगा, रह जाएंगे सब हक्के बक्के।।
विश्व गुरु बनेगा भारत , होंगे कई चंद्रयान अंबर पे।
अलग ग्रह पर होंगी रस्में, अलग ग्रह पर नाते रिश्ते।।
खिलखिलाता बचपन मेरा, खिलखिलाते बच्चे।
स्कूल को जाते हम सब मिलकर, दिन थे कितने अच्छे।।
✍डा.शुभ्रा वार्ष्णेय
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महाराष्ट्र कलम की सुगंध द्वारा आयोजित चित्र आधारित कविता लेखन में उत्कृष्ठ सृजन के लिए आपको ढेर सारी बधाई व शुभकामनाएं। महाराष्ट्र कलम की सुगंध परिवार आपके उज्ज्वल भविष्य की मंगल कामना करता है।
अनुराधा चौहान 'सुधी'
सचिव (महाराष्ट्र कलम की सुगंध)
चित्र गूगल से साभार
महक उठा
देखो प्यारा बचपन
हमजोली का न्यारा बचपन
बहुत दिनों से झाँक
रहा था
झरोखे से कांख रहा था
दोस्त सारे गुम हुए
न जाने कहाँ गए
कितनी बाते तुम्हे बतानी
जो हमने जेल में काटी
सब रहते छुप छुप के
बात बात पर हाथ धुलाते
शंकाओ की बांध पोटली
खुद जीते और हमे जिलाते
सारा दिन मोबाइल लेपटॉप
ऑफिस का घर पर काम
हर बात पर मिलती डॉट
सारा दिन खड़ी होती खाट
दादी दादा रहते चुप चाप
सुननी पड़ती इनकी भी बात
पार्क स्कूल हो गए बन्द
हम भी हुए है नजरबंद
क्या तेरे संग होती ये बात
नही मिलता तुझको साथ
भूल रहे हम सारे खेल
मिली जब से घर की जेल
छूट गया यारो का मेल
दौड़ धूप
की प्यारी मस्ती
अपनी भी थी कोई हस्ती
कोई लौटा दे बीते दिन
हँसी खुशी के बीते दिन
जाओ अब तो
कोरोना भाई
कैसी ये आफत दिलवाई
मुक्ति करो हमको जीने दो
यारो से यारी करने दो
हंस कर कुछ बाते करने दो
नीना यू ही मिलती रहना
चुपके से पर आती रहना
बोझ दिलो का हल्का होगा
पता नही कब तक
जीना होगा
घर पर ढेरो चौकीदार
होती रहती जांचपड़ताल
रखना पड़ता
सबका खयाल
पर मिलेगे हम चुपचाप
आखिर बचपन का हमारा साथ
स्वरचित
मीणा तिवारी
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🌷 द्वितीय स्थान 🌷
क्या कहा?
बचपन...
वो तो चला गया...!!
कहां गया बचपन...?
खो गया...क्या....??
आधुनिक जीवन की
आपाधापी में,
पढ़ाई के बोझ में,
मां पिता की व्यस्तताओं में,
एकल होते परिवारों की मजबूरी में,
या इलैक्ट्रोनिक मीडिया के प्रचलन में..???
ना...ना...ना...
बैठा है दिल के
किसी छोटे कोने में
समय के इन्त़जार में।
जैसे ही मिलता है मौका
फटाक से निकल आता है।
उम्र चाहे गुजर चुकी बचपन की
हो गये हों चाहे अब हम पचपन के।
आज भी हंस लेते हैं
वक्त-बेवक्त खिल-खिलाकर
ठठाकर,तालियांमार या शर्माकर।
कर देते छोटी-छोटी गलतियां
या हऱकतें,बालकों जैसी
और खुद ही डांट लेते हैं
प्यार से खुद को।।
जी लेते हैं
समय-समय बचपन
बच्चों के साथ।
पुराने दोस्तो से मुलाकात,
आंखों में तैर जाता
अद्भूत उल्लास।
और ज़िंदगी भर जाती
फिर जिंदादिली से,
जिंदगी से एकबार।।
***
प्रीति शर्मा" पूर्णिमा"
18/09/2020
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🌷 तृतीय स्थान 🌷
बचपन कैसा प्यारा होता ,
हमजोली की टोली ।
तरह तरह के खेल है इसमें ,
नित नई हँसी ठिठोली ।
कहीं भी बैठो कहीं भी घूमो ,
बंदिश नहीं कोई होती॥
घर घर की सब बातें होतीं ,
कोई बात रहस्य न होती।
कंधे पर भारी बस्ता लटके ,
हाथ में बोतल पानी ।
वजन उठाते बड़े प्रेम से ,
दोस्ती होती दीवानी ।
हम गुड़िया बचपन में खेले,
ढोलक साज सजाते थे ।
घर से ला सामान खाद्य का ,
हम बारात बुलाते थे ।
पर आज न जानें खेल खिलौना ,
बच्चे व्यस्त पढ़ाई से ।
उनका बचपन मधुर छिन गया ,
कम्पूटर मोबाइल से ।
ऑन लाईन हो रही पढ़ाई ,
बचपन परिपक्व है रूप बना ।
नहीं जानते बचपन बच्चे ,
बचपन तो इनसे छिन ही गया ।
स्वरचित अप्रकाशित रचना
सुधा चतुर्वेदी मधुर
. .मुंबई
मोबाइल .....9833438261
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सराहनीय प्रस्तुति
(१)
लौटा दे कोई वो प्यारा बचपन..........
हांलाकि अब तो मेरे पार हो गये पचपन
पर नहीं भूला वो मेरा प्यारा आज भी मैं बचपन!!!
स्वछंद पर संतोष और कंचन मन
अहंकार का तो
नामो निशान नही
न तोहमत न आक्षेप न लांछन!!
अगर किसी मित्र से कुट्टी हो भी जाती
तो वो मिट्टी के खेल में हो जाती थी
धूमिल अब मत पुछना
वो कब कैसे और क्यों ?आज तक नहीं जान पाया
वो जो कच्चे घडे सा था मन !!!
मां का लालन पिताजी का पालन
महफूज रखता था हमें
दादाजी बडें गहन समझदार थे
मेरे "ऐ" वन!!
रात में तिन बार उठते थे मेरे ओढ़ने
बिछौने का निरीक्षण करने
कहीं खुला न रह जाये मेरा तन !!!
शहर में तो हम बहुत बाद में आये
मेरे वतन की गलियों व आधा हमारे
खेत खलियान में बीता था
वो प्यारा सा बचपन!!!
बहुरूपीयों का खेल
रामलीला और लोक गीत व नाटक का मंचन
देखते देखते बडे हुऐ न अवरोध न अडचन!!!
हांलाकि अब तो मेरे पार हो गये पचपन
पर नहीं भूला वो मेरा प्यारा अभी भी
मैं बचपन!!!
काश! लौटादे कोई मेरा निःश्चल मन
मां का आंचल पिताजी का दुलार
दादाजी का प्यार
और वह प्यारा सा बचपन!!
स्वःरचीत :अशोक दोशी
सिकन्दराबाद
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(२)
"बचपन"
जीवन में महकती है जिसकी खुशबू
और हर पल याद आता है जो
सबसे बेपरवाह होकर
तितलियों के पीछे दौड़ना
जुगनुओं को पकड़ कर
मुठ्ठियों में बंद करना
बारिश के पानी में
कागज की नाव चलाना
कुछ सिक्कों के लिए
जमीन पर लौट कर
जिद अपनी मनाना
विद्यालय न जाने के
नये नये बहाने बनाना
छोटी छोटी बातों पर
दोस्तों से झगड़ना
थोड़ी देर गुस्सा
फिर साथ खेलना
एक दौर जीवन का
जिसमें चाहता हूँ
एक बार फिर लौटना
वो बचपन की मस्ती
और बेफिक्र होकर
यहाँ वहाँ घूमना
चाहता हूँ एक बार फिर
वो बचपन मैं जीना
वहाँ लौटकर फिर से
वो खुबसूरत दिन जीना
जीवन में सबसे खूबसूरत
और खुशनुमा बचपन का होना
यही ख्वाहिश है मेरी
फिर बनकर बच्चा
बचपन को फिर से जीना
©®धीरज कुमार शुक्ला "दर्श"
ग्राम व पोस्ट पिपलाज, तह. खानपुर
जिला झालावाड़ ,राजस्थान 326038
दूरभाष अंक-7688823730
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(३)
शीर्षक- खिलखिलाता बचपन मेरा
खिलखिलाता बचपन मेरा, खिलखिलाते बच्चे।
स्कूल को जाते हम सब मिलकर, दिन थे कितने अच्छे।।
अठन्नी चवन्नी बहुत थी, तब आते दोने भरके।
इंटरवल में चीजें खाते, लाते घर से सिक्के।।
हिंदी साइंस तो अच्छे लगते ,रहे गणित से बचते।
क्रोध में तो टीचर रहते ,धरते घूसे मुक्के।।
इंटरवल का पीरियड छोटा ,खेले कब हम बच्चे।
पढ़ाई में तो आगे बढ़ गए, रहे खेल में कच्चे।।
स्कूलों में ही मित्र मिल गए, बिन विज्ञापन खर्चे।
पाकर इनको धन्य हो गए, जैसे हीरे पन्ने।।
गुरु ज्ञान से नेक बने हम, कर रहे सेवा हृदय से सच्चे।
इंजीनियर डॉक्टर कुछ वैज्ञानिक बन गए ,इरादे थे जिन जिनके पक्के।।
स्कूल से ही नैतिकता पा गए, हर कृत्य राष्ट्र को समर्पित करते।
एक दिन भारत विकसित होगा, रह जाएंगे सब हक्के बक्के।।
विश्व गुरु बनेगा भारत , होंगे कई चंद्रयान अंबर पे।
अलग ग्रह पर होंगी रस्में, अलग ग्रह पर नाते रिश्ते।।
खिलखिलाता बचपन मेरा, खिलखिलाते बच्चे।
स्कूल को जाते हम सब मिलकर, दिन थे कितने अच्छे।।
✍डा.शुभ्रा वार्ष्णेय
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महाराष्ट्र कलम की सुगंध द्वारा आयोजित चित्र आधारित कविता लेखन में उत्कृष्ठ सृजन के लिए आपको ढेर सारी बधाई व शुभकामनाएं। महाराष्ट्र कलम की सुगंध परिवार आपके उज्ज्वल भविष्य की मंगल कामना करता है।
अनुराधा चौहान 'सुधी'
सचिव (महाराष्ट्र कलम की सुगंध)
चित्र गूगल से साभार
शानदार रचनाएँ 👌👌👌
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चयनित रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं 💐💐
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ReplyDeleteसभी विजेताओं को हार्दिक बधाई एवं शुभ कामनाएं।💐💐💐💐💐💐
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