Thursday, October 15, 2020

शरारत


 प्रथम स्थान

नमन महाराष्ट्र क़लम की सुगंध मंच

दिनांक - १४/१०/२०२०

दिन - बुधवार

विषय - शरारत

विधा - छंदमुक्त

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मेरी छोटी सी गुड़िया

खिलती है खिलखिलाती है

हंसती है मुस्काती है

चहकती है गुनगुनाती है

मचाती है धमा-चौकड़ी दिन भर

नापती है कभी

अपने नन्हे नन्हे कदमों से पूरे आंगन को

लहराती है तितलियों की तरह

आती है पास कभी

कभी छुप जाती है किसी कोने में

दूर से ही मुस्कुराती है।

जब आता है मुझ पर प्यार उसे

झूलती है बाहों में मेरे आकर

चढ़ती है कांधे पर।

सांसें खींच खींच कर

तोतली बोलियों से सुनाती है कहानी

राजकुमार और राजकुमारी की

गढ़ती है कभी किरदार नये नये।

देखकर मम्मी को करते साज सिंगार

सजती है वो भी आईने के सामने

लगाती है पाउडर चेहरे पर

आंखों में काजल और लिपस्टिक होंठों पर

रंगती है पैरों को आलते से

नेलपॉलिश लगाती है नाखूनों में

दुल्हन बनी इठलाती है।

रहूं जो सोया हुआ कभी मैं तो

सजाती है मुझे भी अपनी तरह

पाउडर, लिपस्टिक, काजल से

ख़ुश होती है बहुत मेरा सिंगार करके

मचाती है उधम पूरे घर में

फुदकती है चिरैये सी

करती है शरारत सुबह-शाम

देखूं जो उसे अपलक लाड़ से

बाहों में सिमट जाती है लाज से

मंत्र-मुग्ध हो देखता हूं उसकी शरारतें

और पुलकित हो सराहता हूं अपने भाग्य को।


रिपुदमन झा 'पिनाकी'

धनबाद (झारखण्ड)

स्वरचित

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द्वितीय स्थान

महाराष्ट्र कलम सुगंध

जय-जय श्री राम राम जी

14/10/2020/बुधवार

*शरारत*

स्मृति पटल पर अंकित

बाल्यावस्था की 

वो अगणित शरारतें

बिखर जाती हैं 

कभी मन मानस पर

मीठी तोतली बोली कुछ इठलाती प्यारी सी

झलकियां तुम्हारी

अद्भुत पहेली बदले खेल के तरीके गिल्ली डंडे

सितोलिया कपड़ों की गेंद

पत्थरों से खेलना।

लुकाछिपी पेड़ों के झुरमुट में छिपना।

कहीं बगिया के सुमन तोड़ फल चुराना खाना

कान पर भोंपू बजाकर

सोते को जगाना।

मां के आंचल में छिपकर

झूठे टसुऐ बहाना।

बिलखना शरारत कर

बाल खींचना पानी उड़ेलना 

बरसात में भीगना छतों पर नाचना

याद आती है चलचित्र सी

हमें तुम्हारी वो शरारतें।


स्वरचित

इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी अजेय

गुना म प्र


🏵️द्वितीय स्थान🏵️

नमन मंच

विषय-शरारत

विधा-छंदमुक्त


याद आता तेरा

वो बीता लम्हा

कदमो की आहट

शरारत के नयन

मुस्कराता चेहरा

बुदबुदाते ओठ

अस्पष्ट शब्द

तुतलाती भाषा

मीठी सी भाषा

प्यार की झलक

लुका झिपी का खेल

हारने के डर

दौड़ कर पकड़ना

न पाने का डर

नयनो में चमक

पाने का असर

आंसुओ को पोछ

प्यार का चुम्बन

आँचल में सिमट

माँ का प्यार शब्द...

स्वरचित

मीना तिवारी

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तृतीय स्थान 

महाराष्ट्र क़लम की सुगंध

विषय ....शरारत

14-10-20 बुधवार


ये छोटी प्यारी सी गुड़िया 

अपना एक खेल खेलती है।

मुर्गी को रस्सी संग बांधे ,

परेशान है़ उसको करती है़ ।


टोकरी में उसे छिपायेगी 

बचपन की शरारत होती हैं ।

मुँह पर ऊँगली है वो रखती ,

डरती नहीं हमें डराती है।


 ये जीवन का आनंदमयी 

बचपन एक हिस्सा होता है़ ।

हर व्यक्ति अनुभवी बने ,

ये काल सुनहरा होता है़ ।


बचपन की शरारत चंचल होतीं 

कुछ भय ना शर्म कभी होती।

माँ बाप भी कुछ नहीं कहते हैं ,

ये बच्चों की लीला होतीं ।


इन लीला से ना प्रभु बचे 

जाने कितनी लीला हैं कीं ।

लीलाधर जब ही नाम पड़ा ,

जीवन में शरारत भरी पड़ी ।


स्वरचित   सुधा चतुर्वेदी मधु

     .        मुंबई

🏵️तृतीय स्थान🏵️

नमनमंच संचालक ।

महाराष्ट्र कलम की सुगन्ध।

विषय - शरारत

विधा-सायली छन्द

स्वरचित ।


शरारतें

बदल गयीं 

समय के साथ 

बच्चा बड़ा 

आज।। 


बच्चे 

शरारतों से

मन जीत लेते

विषाद में 

मुस्कुराहट।। 


शरारतें

पति-पत्नी 

जीवन्त कर देतीं

रस भर

सरस।। 


प्रीति शर्मा "पूर्णिमा"

14/10 /2020

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सराहनीय प्रस्तुति

1️⃣

मंच को नमन

विषय:शरारत

दिनांक:१४-१०-२०२०


"शरारत" बहुधा बचपन और जवानी के गठजोड़ का शुभ संकेत 

और यह ही उसकी अमृत बेला है!!


जैसे ही वान प्रस्थ में प्रवेश करता है

आदमी

जवाबदारियों के बोझ बीच तले 

'शरारत" का 

खत्म हो जाता खेला है!! 


फिर पुनः बुढ़ापे में पुनरागमन होता है 

शरारतें और बढ जाती है 

किसी किसी की मस्ती

चढ जाता फिर उसका रंग रेला है!!

 

वैसे भी कहते ही है 

बुढापा बचपन का पुनरागमन होता है 

ज्यों ही खत्म होता जीवन का 

झमेला है! 


हल्की सी मस्ती फिर आदत 

का हिस्सा बन जाता 

समय निकालना कठिन होता जब आदमी अकेला है!!

वैसे यह सुख सम्मपन्नता का धोतक 

और चोला है!! 

मुफलिसी में मस्ती शरारत कहां रहती है 

अकसर

जहां उदासी का डेरा है!!


पर एक बात जानने योग्य है 

शरारत की असिमा अतिरेक बेहूदापन 

के साथ बिभस्ता का संगम हो तो 

फिर यह अशोभनीय और बेस्वाद अरूचिकर और स्वाद में कटू न सही पर कसैला है !!

हर किसी से पाचन नहीं होता 

यह वही कर सकता है जो मन का 

मटमैला है!! 


स्वरचित :अशोक दोशी

७३३११०९२५८

2️⃣

नमन मंच

विषय- शरारत

दिनांक-14-10-2020

मस्ती भरा हुआ ये बचपन का सफर है|

बचपन हर कदम पर शरारत की डगर है|

मुर्गे ने क्यों आज बाग ही नहीं दिया, 

मुर्गे से यूँ पूछना बचपने का असर है|

उंगली के इशारे से चुप रहने को कह रहा, 

आवाज से मुर्गे के भाग जाने का डर है|

शरारत भी जिसकी सबके दिल को जीत ले, 

वो प्यारी दुलारी न्यारी बचपने की उमर है|

यू ही रहे खुशहाल तू है इस देश का भविष्य, 

 तुझपे कुर्बान हम सभी का दिल व जिगर है|

स्वरचित 

सर्वाधिकार सुरक्षित

 विजय श्रीवास्तव बस्ती

 दिनांक14-10-2020

3️⃣

नमन मंच

१४/१०/२०२०

विधा _मुक्तक

विषय_शरारत

मुझे हक है कि तुझे और मुहब्बत कर लें 

ख़ुदा बना के तुझे, दिल में इबादत कर लें 

पत्थरों को भी वफ़ा फूल बना देती है!

पास आ जाओ तो थोड़ी सी शरारत कर लें

स्वरचित_अभिषेक मिश्रा

बहराइच उत्तर प्रदेश

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महाराष्ट्र कलम की सुगंध द्वारा आयोजित विषय आधारित लेखन में उत्कृष्ठ सृजन के लिए आपको ढेर सारी बधाई व शुभकामनाएं। महाराष्ट्र कलम की सुगंध परिवार आपके उज्ज्वल भविष्य की मंगल कामना करता है।


अनुराधा चौहान 'सुधी'

सचिव (महाराष्ट्र कलम की सुगंध)

चित्र गूगल से साभार

2 comments:

  1. सभी रचनाकारों को बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं 💐💐

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  2. धन्यवाद जी 💐🙏🙏

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पिता

  प्रथम स्थान नमन महाराष्ट्र क़लम की सुगंध मंच दिनांक - १६/१०/२०२० दिन - शुक्रवार विषय - पिता --------------------------------------------- ...