Tuesday, October 6, 2020

स्वप्न/ ख्वाब

प्रथम स्थान
विषय आधारित सृजन
05-10-20
नवगीत------

स्वप्न केवल
स्वप्न बनकर
हो गया बेकार तो ।

एक पग तुमको
बढ़ाना है
दृढ़ विश्वास रखकर
हारना क्यो
चाहता तू
लक्ष्य के नज़दीक आकर
मानता हूँ
थक गया पर
रुक न धीरे ही चलाचल ,
लड़ गया जब
तू अँधेरों से
न मानी हार तो ।

दर्द तो पाता
मनुज है
दर्द से आश्वस्त हो ले
एक कोने में
कहीं पर
दर्द हो तो खूब रो ले 
किन्तु तेरा
जीतने का
प्रण न हो कमज़ोर क्योंकि
त्याग सुख को
सह लिया जब
दुर्दिनों की मार तो । 

सुन यही
अवलेहना तो
पुष्प की माला बनेगी
जीतना तेरा
हुआ क्या
सारी दुनिया चल पड़ेगी
राह पे
तेरे चलेंगे
कारवाँ के कारवाँ जब
फूल बनकर
खिल उठेंगे
दुखभरे अंगार तो ।

        ✍रकमिश सुल्तानपुरी
🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️
द्वितीय स्थान
नमन मंच
05/10/20
ख्वाब
छन्द मुक्त

ख़्वाब...
ये चाह थी मेरी, तुझे छूकर कभी देखूँ
हसरतें अधूरी ,तुझे जी भर के जी लूँ ।

तुझमें वो हकीकत बन इक रोज आये थे
सफेद लिबास में वो मन को बड़ा भाये थे
समंदर का किनारा था ,रेत के घरोंदे थे
पत्थरों पर बैठी थी,सुर्ख गुलाब वो लाये थे।
लहरों का यूँ कदमों को चूम चले जाना
ठंडी मस्त बयारों का यूँ सरगोशियाँ करना..
क्षितिज के पार यूँ सूरज का ढलते जाना...
उनका धीमे से मेरे काँधे को यूं छू लेना...

ख़्वाब में देखे हकीकत को जी रही हूँ
उस छुअन को आज भी महसूस कर रही हूँ

उनके ख्वाबों में जाकर मेरी याद दिला देना
बरसों से मै सोई नहीँ ,उनको जा बतला देना
वो अब तक कैसे है ,उनकी सुध लेते आना
हसरतें मिलन की हुई पूरी,ख्वाबों को छू कर जाना ।

अनिता सुधीर आख्या
🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️
तृतीय स्थान
महाराष्ट्र की कलम सुगंध मंच को नमन
विषय
स्वप्नों/ख्वाब
०५/१०/२०२०जीवन के स्वप्न

स्वप्न
सुनहरे
जीवन के,
हो जाएँ साकार।
मानव को मानव
जन से,रहे सदा ही प्यार ।
ऊँच-
नीच का
भेद हमारा,
जड़ से ही मिट जाये।
छल-कपट -सा दुर्गुण ,
जग में,कभी न आने पाये।
सच्चाई
का स्वर्ण पताका ,
जग -भर में लहराए ।
झूठ , फरेब, मक्कारी,
जल के बुलबुले -सा ढह जाए।
शान-घमंड
विद्वेष-भावना,
कभी न आए पास।
सब पर सबको मोह
रहे, सबपर सबको विश्वास।
पर
हितकारी
कार्य में, तनिक
न हमको संशय हो।
सुख पहुँचाऊँ, सदा,
सभी को ,मन में दृढ़ निश्चय हो ।
              सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
               स्वरचित ( मौलिक )
🏵️तृतीय स्थान🏵️
नमन मंच
दिनांक - ०५/१०/२०२०
दिन - सोमवार
विषय - स्वप्न/ख्वाब
----------------------------------------

ख़्वाब....
शीशे से नाज़ुक,
फूलों से भी नर्म
कांटों सी चुभन भरे
कभी जागते तो कभी सोते
बंद और खुली आंखों में पलते
रात दिन खिलते, महकते ख़्वाब
अच्छे - बुरे, झूठे - सच्चे
कभी चटक कर टूटते
कभी बिन सोचे ही सच होते
बेरंग जीवन में बहार लाते
टूटते, बिखरते उम्मीदों को
समेटते और संवारते
क़िस्मत की ठोकरों के बाद
संभलने और फिर से चलने का हौसला देते
नामुमकिन को मुमकिन बनाते।
ख़्वाब ही तो हैं जो
ज़िन्दगी को नया मकसद देते हैं
जीना सिखाते हैं
तूफ़ानों से, परेशानियों से लड़ने की, जूझने की
बेपनाह हिम्मत देता है ख़्वाब।

रिपुदमन झा 'पिनाकी'
धनबाद (झारखण्ड)
स्वरचित
🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️
सराहनीय प्रस्तुति
🏵️1️⃣🏵️
नमन मंच 🙏
महाराष्ट्र क़लम की सुगंध
विषय .....स्वप्न / ख्वाब
05-10-20 सोमवार

सपने की विधा कई होतीं ,
सुप्तावस्था सपने होते ।
एक जाग्रत में ही दीखते हैं ,
ख्वाबों के रूप में वो होते ।

बातें मस्तिष्क में छिप जातीं ,
वो समय समय पर झांकती हैं ।
और सुप्तावस्था में उठतीं ,
सपने का रूप वो बनतीं हैं ।

जाग्रत का सपना सच होता ,
वास्तव में जो करना चाहें।
कोशिश साहस से वो सपने ,
साकार रूप में बन जायें।

कभी धन दौलत कभी महल बड़े ,
कभी है विलासता की चाहत ।
ये सपने सब साकार हुए ,
जब हम करते ताकत से श्रम ।

सपने तो देखना बेहतर है़ ,
देखेंगे तभी कोशिश होंगीं ।
साकार रूप उनको मिलता ,
अपनी खुशियां शामिल होंगीं ।

स्वरचित .सुधा चतुर्वेदी मधुर
  . मुंबई
🏵️2️⃣🏵️
महाराष्ट्र कलम की सुगंध
स्वप्न/सपने

स्वप्न हुए साकार आओ खुशियाँ मनालें हम।
गिले-शिकवे भूलकर सबको गले लगालें हम।

सूरज की रोशनी से चारों ओर उजियारा है,
रात का सन्नाटा दीपक से तम मिटालें हम।

पुष्प खिल रहे चमन में नित-नई पल्लव लेकर,
महकते फूलों की खुश्बू, वाटिका सजालें हम।

राह बहुत कठिन मगर उन कांटो पे क्या चलना,
पुष्प बिछे है राहों में मिलकर कदम बढ़ालें हम।

सुख-दुख, धूप-छांव जीवन में दस्तक देती है,
अवसादों को छोड़ खुशी का माहौल बनालें हम।

सुमन अग्रवाल "सागरिका"
      आगरा
🏵️3️⃣🏵️
महाराष्ट्र कलम की सुगंध
विषय- स्वप्न/ख्वाब
दिनांक-5/10 /2020

"स्वप्न"
स्वप्न ही तो रह गया
भारत में अब
इंसानियत का दिखना
मजहबी हो गये हैं सब
यही सच का सामना
मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारे में
करते हैं दान मिलकर
लेकिन कम पड़ जाता है
जब मदद करनी हो
इंसान की
स्वप्न ही तो है
ये देश हमारा
जहाँ खर्च हजारों होतें है
जुएं और शराब पर
लेकिन दम घुटता है सबका
मदद करने के नाम पर
आज यहाँ पर सस्ती
जिंदगी है सबके लिए
जुएं, दारू और ड्रग्स
ये जरूरी है सबके लिए
स्वप्न नहीं है ये
की हम बर्बाद हो रहे
जिंदगी को मिटाने में
हम खुद ही खो रहे
मानवता को शर्मसार करता
एक घिनौना सच है ये
भारत नहीं बचेगा अब
स्वप्न नहीं है ये
मर चुकी है आत्मा
लाशें बची है यहां
बस जमीन का टुकड़ा महज
रह गया है हिन्दुस्तान
©®धीरज कुमार शुक्ला "दर्श"
झालावाड़ ,राजस्थान
🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️
महाराष्ट्र कलम की सुगंध द्वारा आयोजित विषय आधारित लेखन में उत्कृष्ठ सृजन के लिए आपको ढेर सारी बधाई व शुभकामनाएं। महाराष्ट्र कलम की सुगंध परिवार आपके उज्ज्वल भविष्य की मंगल कामना करता है।

अनुराधा चौहान 'सुधी'
सचिव (महाराष्ट्र कलम की सुगंध)

चित्र गूगल से साभार

6 comments:

  1. चयनित रचनाकारों को बहुत-बहुत बधाई 💐💐

    ReplyDelete
  2. सभी चयनित कलमकारों को हार्दिक बधाई और शुभकामनाये🌷🌷🌷👌👌👏👏👏👏

    ReplyDelete
  3. निर्णायक मंडल का हार्दिक आभार

    ReplyDelete
  4. लाजवाब रचनाएँ 👌 ढेर सारी बधाई 💐💐💐

    ReplyDelete
  5. सभी को बधाईयाँ एवं शुभ कामनाऐं💐💐💐💐💐💐

    ReplyDelete
  6. सभी को बधाईयाँ एवं शुभ कामनाऐं💐💐💐💐💐💐

    ReplyDelete

पिता

  प्रथम स्थान नमन महाराष्ट्र क़लम की सुगंध मंच दिनांक - १६/१०/२०२० दिन - शुक्रवार विषय - पिता --------------------------------------------- ...