Tuesday, October 13, 2020

सड़क


 प्रथम स्थान

नमन मंच
महाराष्ट्र कलम की सुगंध
विषय सड़कें
दिनांक १३/०३/२०

मेरी नई कविता
"सड़कें"

जीवन की यह आपाधापी
हम लोगों से भरती सड़कें
जानें क्यों है भागी जाती?
तनिक कहां है ठहरती सड़कें।

पर्वत पे जो चढ़ती सड़कें
वहां से नीचे उतरती सड़कें
सांप सीढ़ी का खेल दिखाती
तीखे मोड़ों पे कटती सड़कें।

मेरे शहर से गुजरती सड़कें
शहर में उसके निकलती सड़कें
गली में उसकी जाकर देखा
ठंडी आहें भरती सड़कें।

कहीं धूप में जलती सड़कें
सैलाबों में बहती सड़कें
कहीं है माया साहब जी की
सड़कों पे खद्दे,खद्दों में सड़कें।

पेट सभी का भरती सड़कें
हर साल जो बनती सड़कें
कुछ बन जाती बस कागज पर
पार्टी फंड में पड़ती सड़कें।

कहीं कहीं दो मिलती सड़कें
मिल के दूर निकलती सड़कें
चौराहे पर ढूंढा करता
मेरे हिस्से ठहरती सड़कें।

बारिश में पर्वत के ऊपर
देखो बड़ी फिसलती सड़कें
देख भाल के कदम बढ़ाना
पानी से है दरकती सड़कें।

कहीं कहीं पुल भी मिल जाते
नदी नालों से गुजरती सड़कें
इस पार से कुछ उस पार चले हैं
पथिक बदलते ठहरती सड़कें।

मधुकर वनमाली
मुजफ्फरपुर बिहार
स्वरचित एवं मौलिक
🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️
द्वितीय स्थान
नमन मंच
विषय- सड़क
13/10/2020

मिलकर कईं छोटे रास्तों से
बनकर आगे बढ़ जाती
पगडंडियां भी आकर मिलती
छोटे से हर मोड़ पर
आकर के ये मुड़ जाती
जैसे जिंदगी की राह पर
चलने को ये आ जाती
सड़क और राह जीवन की
नजर एक सी आती
दुख और सुख होते जीवन में
सड़कें भी हिचकोले खाती
और कईं जगह है चमचमाती
जैसे दुख जीवन में आते
वैसे गड्ढे सड़कों में होते
कुछ छोटे कुछ बड़े मिल जाते
जैसे कुछ दुख कम कुछ
दर्द ज्यादा दे जाते
सुख जैसे आते जीवन में
जैसे सड़क है चमचमाती
दोनों में है आपाधापी
एक वाहनों से अटी पड़ी है
दूजी मैं है जिम्मेदारी
सड़क जिदंगी है एक सी
मोड़ अचानक दोनों में आते
कुछ दुर्घटनायें घट जाती 
कुछ बच कर निकल है जाती
यही है खेल जिंदगी का भी
सड़क जिंदगी एक सी लगती
©®धीरज कुमार शुक्ला "दर्श"
झालावाड़ ,राजस्थान
🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️
तृतीय स्थान
नमन मंच
विषय-सड़क
विधा-छंदमुक्त


न होती कभी ब्यथित
न ही कभी आहत
न करती कभी विलाप
न ही कोई आलाप
न दिखाती है उन्माद
न रोना न ही मुस्कराना
सङ्ग परिस्थितियों के
करना समझौता
चलती ही रहती अपने सफर में
निरंतर सन्तुलित प्रभाव में
शामिल होती हर किसी के 
सुख दुख में
देती साथ सभी को
समान रूप से
वर्षो से एक ही एहसास के सङ्ग
दौड़ रही है एक ही रास्ते पर
जन्मों जन्मों से
हादसों पर हादसे होते है
कुछ लोग दोषी उसे कहते है
न कोई दर्द न लगाव
जीती है लेकर सन्तुलित जीवन
ओ सड़क तुझे देख
याद आ गया
एक श्लोक
महान पुरुषो पर सुख दुख लाभ हानि पर कोई प्रभाव नही पड़ता
तू भी उनमे से है.......

स्वरचित
मीना तिवारी
🏵️तृतीय स्थान🏵️
नमन मंच 🙏 
महाराष्ट्र क़लम की सुगंध 
विषय ....सड़कें 
13-10--20    
          
गांवो की जिन्दगी की , 
जीवन रेखा होती हैं ऐसी सड़कें । 
एक छोर से दूसरे छोर तक , 
लहराती हैं ये सड़कें .। 
जिन्दगी की राहों की तरह , 
सरल सहज नहीं होतीं ये । 
कहीं टेढ़ी मेढ़ी कंकरीली कटीली , 
कहीं दलदल भरी कहीं पथरीली । 
इस पेट की खातिर यहाँ रहना , 
भी चुनना पड़ता है़ । 
अपनी तो अपनी पशुऑ को, 
भी भुगतना पड़ता है़ । 
इन साँप सी लहराती सड़कों , 
पर लड़खड़ाते जानवर । 
अगर जीना है पेट भरना है़ तो, 
सभी खेलेंगे जान पर। 
ये हीं लम्बी साँप सी सड़कें , 
चौराहे तक ले जातीं हैं । 
जहाँ पर सारी सड़क हैं मिलतीं , 
हमको वहाँ पहुंचाती हैं । 
आज ये अब सूनी गति में हैं , 
देखों कैसी हैं शून्य पड़ी । 
कोरोना का काल भयंकर , 
सड़कें हैं वीरान पड़ी । 
आशा है़ ये दिन जायेंगे 
फिर खुशहाली आयेगी , 
सड़कों पर फिर रौनक होगी । 
मेले सी दिख पायेंगी ...

स्वरचित ....सुधा चतुर्वेदी ' मधुर ' 
                 मुंबई
🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️
सराहनीय प्रस्तुति
1️⃣
नमन् मंच
विषय-सड़क
दिनांक 13-10-2020
विधा-कविता

अच्छे भी गुजरते हैं|
बुरे भी इस पे गुजरते हैं|
ये सड़क है इससे , 
सारे ही गुजरते हैं|

बारातें भी जाती हैं|
अर्थियाँ भी जाती हैं|
जिसे वक्त भेजता है|
वो सब ही गुजरते हैं|

पत्थर का कलेजा भले, 
इस सड़क का होता है|
मगर हर हादसे पे इसके, 
दिल खूब धड़कते हैं|

बरसात के गढ़े इसके, 
हैं बेल बूटे|
जो मौसम के इशारे पे, 
फूलते फलते हैं|

आंधियां भी इसपे चलतीं |
 आपदा विपदा भीआती है|
तुफान के कहर यहीं, 
 इन्सान पे गुजरते हैं|

दीवाने आशिकों का तो, 
ठौर ही सड़क हैं|
प्यार के अफसानों के गुल, 
यहाँ हर लम्हें में खिलते हैं|

ये सांप सी बल खाती, 
टेढ़ी मेढ़ी भले सड़क है|
मंजिल सभी को अपने, 
इसी राह पे मिलतें हैं|

स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
विजय श्रीवास्तव
बस्ती
दिनांक-13-10-2020
2️⃣
महाराष्ट्र कलम की सुगंध
13 अक्टूबर 2020
विषय-सड़क
विधा-कविता
*************************
अजीब होती हैं सड़क,
कहीं सांप जैसी चलती,
कहीं कड़क हो जाती है,
कहीं पहाड़ से निकलती।

सड़क पर चलते वाहन,
ले जाते हैं माल मसाला,
सड़क मन को मोह लेती,
मोड़ जब मिलता निराला।

सड़के दुर्घटना का कारण,
कभी कर देती है भयंकर,
कभी सड़क देख डर लगे,
मन भजता है प्रभु हर हर।

सड़क ऊंची नीची मिलती,
देख देखकर मन हर्षाता है,
कभी तो सड़क मोड़ देख,
मन गीत खुशी के गाता है।

सड़क पर चलते हैं सभी,
गरीब मजदूर या है अमीर,
सड़क वो जीवन की रेखा,
हर लेती जन की सब पीर।
***************************
स्वरचित, नितांत मौलिक
*******************
*होशियार सिंह यादव
मोहल्ला-मोदीका, वार्ड नंबर 01
कनीना-123027 जिला-महेंद्रगढ़ हरियाणा
 व्हाट्सअप एवं फोन 09416348400
3️⃣
महाराष्ट्र कलम की सुगंध 
मंच को नमन करते हुऐ
आप सभी मित्रों को सुबह का नमस्कार 
विषय: सडकें
दिनांक:१३-३-२०२०

पगडंडियां गांव की मुख्य शिरा है 
तो "सडकें "शहर की सांस धमनी
शिराऐं जोड़ती है लोगों 
को लोगों से 
ये सडकें अर्थ व्यवस्था की 
अगन उर्जा और चिमनी !!

ध्वनी से धम धमती धधकती रहती 
रात दिन व्यस्ततम
चाहे सर्दी हो या गर्मी !!

टेड़ी मेड़ी मुड़ी हुई काट कटीली 
घाट घाट घुमक्कड़ 
बिन हवा पानी के भी जागती जीती
भले भौतिक रूप से जड़ 
सामान्य 
पर ये चेतन सब को करती!! 

इसकी वजह से आवागमन 
अन्न पानी पेट्रोल औजार तकनीकी का
वहन करती वजन पारावार 
उफ़ तक यह कभी न करती!!

धरती हमें संसाधन देती और 
यह बेचारी धरती पर धरी धरी
हम सबको सामान सहित आगे पीछे करती!!

चाहे इसके संरक्षक व चाहने वाले
जैसा रखे वैसे रहती
अपनी हालातनुसार प्रतिसाद देती
कहीं कहीं सजी संवरी मुख्य मार्ग पर
कहीं उजाड़ जड़ जुगाड जर्जर
पुरानी वयोवृद्ध खूंसट पथ पर पसरी हुई
पथरीली!

पर पूर्वाग्रह व प्रतिस्पर्धा न रख कर किसी तरह का
सडकें सदैव परिचारिका बन कर सेवा में तत्पर रहती!!
साक्षी रही हाद़सों की कई 
मनचलों की
लापरवाही की वजह 
कभी खुद वजह बनी
उपेक्षा की 
शिकार व मजबूरी वश 
आक्रंदन सुन स्वयं कहराती रही!

हम इन सडकों के ऋणी है 
ऋण चुकाना हमारा धर्म है
थूंकना कचरा डालना न कर 
सभ्यता से अदब़ से इज्जत उसकी हमें करनी!!
कई हो गये बजट हज़म हजूम हाजमे़ 
जठ़र गटर में इसके हिस्से के 
भ्रष्टता की
किसे सुनाऐं कर्म की हमारी कथनी!! 

स्वरचित:अशोक दोशी
सिकन्दराबाद
७३३११०९२५८
🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️
महाराष्ट्र कलम की सुगंध द्वारा आयोजित विषय आधारित लेखन में उत्कृष्ठ सृजन के लिए आपको ढेर सारी बधाई व शुभकामनाएं। महाराष्ट्र कलम की सुगंध परिवार आपके उज्ज्वल भविष्य की मंगल कामना करता है।

अनुराधा चौहान 'सुधी'
सचिव (महाराष्ट्र कलम की सुगंध)

चित्र गूगल से साभार

1 comment:

  1. चयनित रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं 💐💐

    ReplyDelete

पिता

  प्रथम स्थान नमन महाराष्ट्र क़लम की सुगंध मंच दिनांक - १६/१०/२०२० दिन - शुक्रवार विषय - पिता --------------------------------------------- ...