महाराष्ट्र कलम की सुगंध
जय-जय श्री राम राम जी
8/10/2020/गुरुवार
*मन*काव्य
मनमोहन मनमंदिर में बसते।
मन की मानें दुनिया रहते।
मन तो मन की ही करता,
मनसे हम लड़ते ही रहते।
मन कुलांच हिरणी सी भरता।
कहीं उ छलकर गिरता पड़ता।
अभी यहां फिर कहीं देख लें,
मन सदैव मनमानी करता।
मन की डोर खींचकर रखना।
मन को सब वश में ही रखना।
जीत हार सब मन से होती,
मन से कम गठबंधन रखना।
मन की किताब कब पढ़ पाते।
मुश्किल से मन से भिड़ पाते।
पल पल में विचार बदले तो,
सब इसके साथ न चल पाते।
स्वरचित
इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
गुना म प्र
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द्वितीय स्थान
नमन मंच
८/१०/२०२०
विषय_ कर्तव्य/ जिम्मेदारी
विधा_ कविता
(" क्यूं रुके हैं तेरे शिथिल चरण")
रुक गए जो तेरे शिथिल चरण
मृत्यु का होगा आमंत्रण,
दुःख से विरक्त है कोई जग में
गर्वित है कौन हुआ नभ में,
कर्तव्य राह में होगा रण
मन की करुणा का निमंत्रण!!
रुक गए जो तेरे शिथिल चरण!!
है व्यथा विकार इस जीवन में
सुख मिलता हरि के सुमिरन में,
अस्तित्व मिटा प्रतिपल प्रतिक्षण
गिरते हैं अश्रु से अब मधुकण!!
रुक गए जो तेरे शिथिल चरण!!
जैसे प्राण पवन में रहता
जैसे सौंदर्य सुमन में रहता,
नभ में चलते हैं तारागण !!
क्यूं रुके है तेरे शिथिल चरण!!
जीवन की इस लाचारी से
उर में उठती चिंगारी से,
लिखा कविता प्रथम चरण
अब रुके न मेरे शिथिल चरण!!
स्वरचित_मौलिक
--------------- अभिषेक मिश्रा
(केशव पण्डित)
बहराइच, उत्तर प्रदेश
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तृतीय स्थान
नमन
महाराष्ट क़लम की सुगंध
विषय ....मन
08-10-20-गुरुवार
ये मन है बड़ा चलायमान ,
ये पावन वेग सा उड़ता है।
कभी अंतर्मन का निहोर करे ,
कभी बाहरी दृश्य टटोलता है ।
कवि का मन तो वहां पहुँचे,
जहां रवि भी नहीं पहुंचता है ।
ये मन का भीषण द्वंद बना,
मन क्यों ना नियन्त्रित रहता है।
ईश्वर चरणों में जब बैठो ,
तव मन ये निंद्रा लाता है ।
बाहरी जगत की बातों में ,
हमें बार बार उलझाता है ।
तुम कुछ भी करना चाहो तो ,
मन की गति अविरल बहती है।
थामो इसको ये ना ही थमे ,
मुट्ठी से रेत फिसलती है ।
मानव यदि कभी पृथक विचरे ,
तो आत्मबोध होता रहता ।
पर मन तो चंचल गती का है ,
वो पुनः पुनः वहां ही पहुँचा ।
मन पर अपने अंकुश रखो ,
ये बार बार उकसाता है।
अपने वश जो बात नहीं ,
वो बात तुम्हें सुलझाता है।
सद्भाव से सज्जित रहे ये मन ,
ये अपनेपन से सधा रहे ।
मन की गति भी अवरोध न हो,
मानव सपनों में सदा रहे ।
सपने जब मानव देखेगा,
. तव ही साकार का चिन्तन हो।
मन को समझा कर वो रखता,
तो जीवन में सब समुचित हो।
स्वरचित ......सुधा चतुर्वेदी मधुर
. मुंबई
🏵️ तृतीय स्थान🏵️
नमन मंच
दिनांक-8/10/20
विषय-मन
मन चाहा किसको कब मिलता।
ये तो बस अपना नसीब है।
दिल जो चाहे वो मिल जाये।
विरला कोई खुश नसीब है।
यू तो बेगाने बन जाते।
अपनो से भी अपने ज्यादा।
मन का मिलना है बस काफी।
अपना पन होता है सादा।
मीत बने बन कर निभ जाए।
वरना रह जाता गरीब है।
जब मिलते मुस्कान लुटाते।
सुख दुख के साथी बन जाते।
चली अचानक ऐसी आंधी।
व्योहारो ने सीमा बांधी।
संबंधों में धूल चढ़ गई।
हर सपना लगता सलीब है।
जब अपने ही मां दिखाए।
छोड़ झटक दामन छुड़ाए।
बरबस आँखे लगे चुराने।
गहरी पीड़ा लगे अजाने।
पलको पर ढल जाए आंसू।
दर्द बना अपना नसीब है।
झांक रही आंखों से प्रीती।
ये कैसी संकोची रीती।
बाहर भीतर जगा उजाला।
पर कैसा व्यापार निराला।
बहुत कठिन है यहाँ परखना।
भला कौन किसका रकीब है।
ऐसा कहाँ चंद्र मय अम्बर।
जो सुधियों को मधुर हास दे।
मस्तक रेखा साथ निभा दे।
फिर क्या दूरी क्या रकीब है।
मीना तिवारी
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सराहनीय प्रस्तुति
1️⃣
नमनमंच संचालक ।
महाराष्ट्र कलम की सुगन्ध।
विषय - मन
विधा - दोहा
स्वरचित ।
मन मेरा भंवरा हुआ,मौसम हुआ सिंदूर।
खुशियों का रस चूमता,गम से रहता दूर।।
मन पक्षी है बाबरा,भरना चाह उड़ान।
कैसे काबू में रखूं,देखन चाह जहान।।
मन को काबू में रखो,ये चंचल अति जान।
निग्रह इन्द्रिय का करो,करो ज्ञान का पान।।
***
प्रीति शर्मा "पूर्णिमा "
08/10/2020
2️⃣
महाराष्ट्र कलम की सुगंध
8 अक्टूबर 2020
विषय-मन
विधा-कविता
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ना समझ पाये कोई,
मन की गति अपार,
मन का कहना माने,
निश्चित होती है हार।
मन होता है चंचल,
मन कभी बाल मान,
अच्छे कर्म करने से,
बढ़ जाता है सम्मान।
मन के आगे ना चले,
मन जब चलता चाल,
कब होती है बेइज्जती,
कब करवा दे बेहाल।
मन को काबू कर ले,
बन सकता जन संत,
मन दरिया भांति बहे,
एक दिन होगा अंत।
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नितांत मौलिक एवं स्वयं रचित
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होशियार सिंह यादव
मोहल्ला-मोदीका,कनीना-123027
जिला-महेंद्रगढ़,हरियाणा
मोबाइल-09416348400
3️⃣
🙏नमन मंच महाराष्ट्र कलम की सुगंध
विषय-मन
विधा-कविता
दि.8/10/20
मन के अँधियारे कोने में,
इक दीप जला दो यारो।
उजडे गुलशन की डाली पे,
कोई फूल खिला दो यारो।
इन्सॉ इन्सॉ का दुश्मन बन,
खूँ से प्यास बुझाता है ।
बनके फरिस्ता अमन चैन का,
प्रेम धार बहा दो यारो।
अन्धे बन के भटक गए जो,
उनका बेडा पार नही ।
अपने नेक खयालों से,
सही राह दिखा दो यारो।
नीरस जीवन से हार गए,
चेहरे पे मातम सा छाया।
उनके दुख चुनके दामन में,
कुछ खुशी लुटा दो यारो।
#सुशील#
🙏स्वरचित🌹
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महाराष्ट्र कलम की सुगंध द्वारा आयोजित विषय आधारित लेखन में उत्कृष्ठ सृजन के लिए आपको ढेर सारी बधाई व शुभकामनाएं। महाराष्ट्र कलम की सुगंध परिवार आपके उज्ज्वल भविष्य की मंगल कामना करता है।
अनुराधा चौहान 'सुधी'
सचिव (महाराष्ट्र कलम की सुगंध)
चित्र गूगल से साभार
चयनित रचनाकारों को हार्दिक बधाई 💐💐
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