Wednesday, October 7, 2020

धुंध/कोहरा


प्रथम स्थान

नमन मंच

कोहरा 

छन्द मुक्त

***

कोहरे के माध्यम से आज की समस्याओं और समाधान पर लिखने का प्रयास किया है 

कई शब्द अपने मे गहन अर्थ समेटे है आप की प्रतिक्रिया अपेक्षित है।

***

जब उष्णता में आये कमी

अवशोषित कर वो नमी

रगों में सिहरन का 

एहसास दिलाये

दृश्यता का ह्रास कराता 

सफर को कठिन बनाता है

कोहरा चारों ओर फैलता जाता है।

संयम से सजग हो

निकट धुंध के  जाओ..

 और भीतर तक जाओ

कोहरे ने सूरज नहीं निगला है

 सूरज की उष्णता निगल 

लेगी कोहरे को ।

सामाजिक ,राजनीतिक

परिदृश्य भी त्रास से

धुंधलाता जा रहा 

रिश्तों की धरातल पर

स्वार्थ का कोहरा छा रहा

संबंधों की कम हो रही उष्णता

अविश्वास द्वेष की बढ़ रही आद्रता

कड़वाहट बन सिहरन दे रही 

विश्वास ,प्रेम की  किरणें 

लिए अंदर जाते  जाओ

दूर से देखने पर 

सब धुंधला है

पास आते जाओगे 

दृश्यता  बढ़ती जायेगी

तस्वीर साफ नजर आएगी।


अनिता सुधीर आख्या

🏵️ प्रथम स्थान🏵️

नमन मंच

विषय-धुन्ध

6/10/20

विधा-छंदमुक्त



अलसाई सी सुबह

छाई उदासी

किरणे है रूठी

मुट्ठी में रेत

फिसलते समय

की तरह

शायद है कुछ भूली

या दिल मे कुछ दर्द

सहमी हुई सी

या रोका है किसी ने

टोका किसी ने

रोज आ जाया करती थी

अपने समय से

वक्त की पाबंद

स्वर्ण आभा युक्त

है इंतजार सभी को

या नीद नही खुली

धुन्ध की एक परत

छाई है चारो तरफ

किसी ने फैलाई

प्रदूषण की चादर

डरने लगी वो भी

बेटियों की तरह

मानव के करतूतों से

अपने स्वार्थ के लिए

कुछ भी कर सकता

आज का स्वार्थी नर

फिर बेटी हो या प्रकृति.....


स्वरचित

मीना तिवारी

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द्वितीय स्थान

महाराष्ट्र कलम की सुगंध मंच को नमन 

विषय: कोहरा 

दिनांक :६-१०-२०२०


"आज फिर थी वह मैंने छूना चाहा"

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कल मैंने देखा चौराहे पर एक दुखियारी कुछ बुदबुदा रही थी लोगों के आगे गिड़गिड़ा रही थी बच्चा था उसका भूखा , दूध का पैसा जुटा रही थी..........

कुछ उस पर मुस्कुराते कुछ दुत्कार 

कर जाते रहे कोई न समझा व्यथा उस दुखियारी की ..........

शाम हुई लौट चली घर वह खाली हाथ, आज फिर थी वह उसी चौराहे पर, मगर आज बच्चा भूखा नहीं, दुनिया में ही नहीं था..... और

वह कफन का पैसा जुटा रही थी।

गुमसुम थी वह मगर देखते देखते उसके सामने पैसों का ढेर हो गया ..........

कोहरा हो जाना चाहा, जब देखा उस के सानिध्य में धरती आकाश एक हो गए नदी पहाड़ भी एक सभी ढक गए धुंध में....

सड़कों पर आहिस्ता चली बसें, आज मित्रों ने दूर से हेलो नहीं कहा, वे निकट आकर मिले इसीलिए मैंने कोहरा होकर जीना चाहा रूप विहीन ,गंध विहीन, आकार विहीन.........

छूना चाहा एक साथ धरती गगन को, नदी पहाड़ को और यह संभव है सिर्फ कोहरा बनकर!!✍️✍️


         **प्रतिभा पाण्डेय प्रयागराज उत्तर प्रदेश

🏵️द्वितीय स्थान🏵️

नमन 

महाराष्ट्र की क़लम सुगंध 

विषय ...धुंध / कोहरा 

06-10-20 


चारों तरफ है़ धुंध कोरोना , 

स्पष्ट नजर नहीं कुछ आता । 

मौसम का धुंध तो छट जाता , 

पर आज का धुंध न छट पाता । 


कोरोना के ये भयावह धुंध ने , 

सारे विश्व को दूषित कर डाला । 

वर्तमान और क्या भविष्य है़ , 

अब ये लक्षित ना हो पाता । 


अपराधों का ये घृणित कोहरा , 

ना जाने कब ये बीतेगा ? 

किस दिन सूरज ताप प्रज्वलित , 

जिससे ये कोहरा पिघलेगा । 


घुटन सहन करते हैं हम सब , 

इस धुंध में सांस भी दुर्लभ है। 

मक्खी मच्छर सी मौत हो रहीं , 

प्रदूषण धुंध की बनी अमानत है । 


खतरे के धुंध से बचना है, 

तो प्रकृति स्वच्छ बनानी है। 

हरियाली चहुँ दिशि विस्तृत हो, 

तव ही अब जान बचानी है़ । 


स्वरचित सुधा चतुर्वेदी मधुर 

                       मुंबई

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तृतीय स्थान

नमन मंच

विषय- धुंध/ कोहरा

6/10/2020


"कोहरा "

आज छाया है कोहरा

हर देश पर यहाँ

कहीं पर है कोरोना

तो आतंक भी है वहाँ

लोग भयभीत हो चुके

कोरोना और आतंक से

दिल पर छाया है अंधेरा

आगे बढ़ना है ठहरा

लेकिन जिंदगी का फलसफा

यही तो करता है बयां

हर कोहरा छट जाता है

जब विश्वास का हो उजाला

कम न होने पाये

विश्वास खुद से अब यहाँ

छट जायेगा ये कोहरा

जो है आज छाया हुआ

हो कोरोना या आतंक फिर

हार कर ही जाएगा

विश्वास के सूरज के आगे

हर कोहरा छट जाएगा

©®धीरज कुमार शुक्ला "दर्श"

झालावाड़ राजस्थान

🏵️तृतीय स्थान 🏵️

महाराष्ट्र कलम की सुगंध

जय-जय श्री राम राम जी

6/10/2020/मंगलवार

*धुंध/कोहरा*

क्षणिका

----1----

धुंध छाई आसमान में

दिखाई नहीं देता 

कुछ भी मुझे

क्यो कि मनमंदिर में 

अंधेरा छाया है।

-----2-----

अंधेरा कोहरा छाया हुआ

कैसे दिखें सुंदर राह

साफ निर्मल करें

बुहारे अपने घर की आंख

धुंधले नहीं दिखें सुंदर नजारे।


स्वरचित

इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी अजेय

गुना म प्र

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सराहनीय प्रस्तुति

1️⃣

नमन मंच

दिनांक - ०६/१०/२०२०

दिन - मंगलवार

विषय - धुंध/कोहरा

विधा - छंदमुक्त

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फैली है धुंध की चादर

हर तरफ फ़िज़ाओं में

हवाओं में घुले हैं महीन धूल कण

दिखता नहीं कुछ भी स्पष्ट

झीनी चादर सी बिछ गई जैसे चारों ओर

संभलता, चेतता नहीं है आदमी

जाने अंजाने रूप में

लापरवाह सा करता रहता है गलतियां

फैलाता है प्रदूषण

करता है पर्यावरण को दूषित

सोचता नहीं भविष्य की

वाहनों, चिमनियों से निकलते जहरीले, जानलेवा धुएं

खेतों में जलती परालियां

जलता कूड़ा - कचरा, प्लास्टिक

धूल और धुएं का ग़ुबार है

सांसें हलक में ही अटक कर रह जाती हैं

घुटता है दम ऐसे माहौल में

मजबूर हैं सब लोग

घुटन भरी जिंदगी जीने को।


रिपुदमन झा 'पिनाकी'

धनबाद (झारखण्ड)

स्वरचित

2️⃣

🙏नमन मंच महाराष्ट्र कलम की सुगंध

विषय-धुंध/कोहरा

विधा-पद्य

दि.6/10/20

#दास्ताँ$

ये रिश्ते भी कितने अजीब से होते है।

कुछ बनाए खुदा कुछ नसीब से होते है।

अपनों मे पराया बेगानों मे अपनापन,

कोई धन के धनी मन के गरीब होते है।

लहु और दूध के कोई इंसानियती रिश्ते,

कुछ बहुत दूर के कुछ करीब से होते है।

प्यार,नफरत,छल,कपट और दम्भ के,

आस विश्वास के कुछ फरेब से होते है।

छा गई है धुंध सी,रिश्तों की कायनात पे,

हर रिश्तों के वजूद तहजीब से होते है।

🌹स्वरचित🙏

🌷सुशील शर्मा🌹

3️⃣

६/१०/२०२०/मंगलवार

नमन मंच

"महाराष्ट्र कलम की सुगंध "

विषय-धुंध/कोहरा

विधा-कविता

- - - - -

        *मक्कारी *

कोहरे की चादर में,कौन है सोया हुआ?

बर्फ सा ठंडा तन,मृतप्राय सा पडा हुआ।

नम है ओशों से,क्या आकाश भी रो रहा!

जीवन -भर ये दुख दर्द ही सहता रहा।

सबने इसको लूटा,बस ये लुटता ही रहा।

अंत समय में,न कोई इसके काम आया।

पानी की बूंद-बूंद,अच्छे खाने को तरसाया।

जीवन भर कमाई पेंशन भी सबने खाया।

सेवा करने की बारी आई,तो ठेल दिया।

तड़प -तड़प कर,इसे मरने को छोड़ दिया।

अरे! शर्म करो,उसकी लाश पड़ी हैअभी।

और तुम सभी को गम नहीं,हंस रहे हो सभी।

           * * *

*"नीलम पटेल" प्रयागराज *

(स्वरचित,मौलिक,अप्रकाशित रचना)

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महाराष्ट्र कलम की सुगंध द्वारा आयोजित विषय आधारित लेखन में उत्कृष्ठ सृजन के लिए आपको ढेर सारी बधाई व शुभकामनाएं। महाराष्ट्र कलम की सुगंध परिवार आपके उज्ज्वल भविष्य की मंगल कामना करता है।


अनुराधा चौहान 'सुधी'

सचिव (महाराष्ट्र कलम की सुगंध)


चित्र गूगल से साभार

3 comments:

  1. चयनित रचनाकारों को हार्दिक बधाई 💐💐

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  2. मंच का हार्दिक आभार,मेरी रचना को सराहने के लिए।💐💐💐💐
    सभी विजेताओं को बधाईयाँ💐💐💐💐

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  3. मंच का हार्दिक आभार,मेरी रचना को सराहने के लिए।💐💐💐💐
    सभी विजेताओं को बधाईयाँ💐💐💐💐

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पिता

  प्रथम स्थान नमन महाराष्ट्र क़लम की सुगंध मंच दिनांक - १६/१०/२०२० दिन - शुक्रवार विषय - पिता --------------------------------------------- ...