प्रथम स्थान
स्वरचित
कोरोना ने बहुत कुछ छीन लिया है पर बहुत कुछ दिया भी है। कहीं चिंता दी तो कहीं चिन्तन। किसी का चैन छीना तो किसी को सुकून दिया। लेकिन हम बात करेंगे सकारात्मक पहलू की।
खुशियाली है... हरियाली है...
देखो हर तरफ प्रकृति में
छाई हरी हरियाली है।
घर में भी देखो अब तो
आई खुश खुशियाली है।।
बाग बगीचे सब हरे -भरे,
वृक्ष फूलों-फलों से लदे फदे।
चिकने हरे हरे से पत्ते,
चमके मानो रुधिर भरे।।
लगते कितने खुश हैं ये
स्वच्छ हवा में लेते श्वांस।
जीवन में कब देखे ऐसे
सुमनों पर भरपूर पराग।।
है प्रदूषण से मुक्त धरा ।
साफ सुथरा है पर्यावरण।
सौन्दर्य से भरपूर निखरा-निखरा
प्रकृति का है कण-कण।।
साफ बह रहीं नदियां
सबकी जीवनदायिनी।
होगी अब भरपूर फसल
पौष्टिक आरोग्यबर्धनी।।
देखो कितनी हरियाली।
छाई कितनी हरियाली।।
जीवन में भर गये फिर रंग
घर घर हंसी ठहाके गूंज रहे।
दादा-दादी,मम्मी-पापा के संग
मस्ती,नोक-झोंक भरपूर रहे।।
प्यार पुरसुकून मन में फिर
फिर उमंग,तरुनाई भर आई।
घर लगते पावन मन्दिर से
रौनकें बहु-बेटीं लेकर आईं।।
मतभेद विचार कुछ ढह रहे
समन्वय के संस्कार बह रहे।
लहरा रहा भारतीय संस्कृति का परचम
हो रहा फिर नये पुराने का संगम।।
ऐसा मौका मिलेगा ना फिर
जी लो जीवन के ये अद्भुत दिन।
स्मृतियों में बस जायेगें
कोरोना वाले दिन कहलायेगें।।
देखो खुशियाली आई।
घर में खुशहाली छाई।।
***
प्रीति शर्मा"पूर्णिमा"
21/09/2020
🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀
द्वितीय स्थान
विषय .......हरियाली
हरियाली ये मनभावन है,
धरा ने चूनर ओढ़ी है।
हरी भरी ये धरती लगती ,
अब शांति आभूषण शोभित है।
प्रदूषण से राहत लगती ,
तव ही वसुंधरा सजी हुई ।
हरियाली चहुँ और है फैली,
पर लम्बी सांसो में सिसक रही।
धुंधली यादों के साये में ,
नित मुझको दीखे वो मोड़ ।
वो हरियाली रास्ते जिस पर ,
आती सड़क थीं चारों ओर ।
हरियाली बिन रस्ता नहीं सजती,
चौराहे की शान सजे ।
तुम मिलते थे में मिलती थी ,
पर आज वहाँ विश्राम लगे ।
कहां गयीं वो सड़क की रौनक ,
जिस पर मेले लगते थे ।
पहचान नहीं होती अब उसकी,
जिस मोड़ पर हम सब मिलते थे
सड़कें अब वीरानी रहतीं ,
हरियाली बिन घबराती हैं।
क्या मोड़ों पर पड़ी आपदा,
बिल्कुल चैन न पाती हैं।
सुन्दर वादी हमसे पूछें ,
तुम सब कहां पर खोये हो ।
क्यों नहीँ मिलने मुझसे आते ,
किस विपदा से रोये हो ?
पता नहीं अब कब रस्तों पर ,
जन मानस की भीड़ लगे ।
वाहन अब कब दौड़ लगायें ,
मधुर आस में सभी पड़े।
स्वरचित सुधा चतुर्वेदी मधुर
मुंबई
🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀
तृतीय स्थान
वो खड़ी
दूर मुस्करा रही थी।
शायद मेरा
उपहास उड़ा रही थी।
सच क्या
मैं शायद जानती थी।
बड़ी बारीकियों से
मेरे उफनते जज्बातो को
पहचान रही थी।
सच मे वो मेरा मजाक उड़ा रही थी।
मैं गुमसुम सी उसको ताक रही थी।
जानती थी।
तभी तो हवाओ के
एहसासों से
मुझ को संदेशे भिजवा रही थी।
मानो कह रही
क्यो बैठी हो
छिपकर
आओ न मिल बैठ
करती हूं कुछ बाते
कुछ बीती अधूरी पूरी बातें
पहले की तरह
करो न मेरा स्पर्श
दो न सुखद एहसास
जोड़ दो साँसों के तार से
अपने नर्म पैरो
के तलुवों से सहला दो मुझे
अपने होने का एहसास दिला दो
बहुत हो गया
खामोशियो का गुजरता सफर
पर सुनो न
पर मत वापस देना
वो प्रदूषण
जहर मिला।
कितनी काली हो गई थी।
मत दोहराना
न मिटाना
मेरा अस्तित्व
कितनी सुन्दर हो गई मैं
वापस हरी भरी
स्वच्छ हरियाली युक्त
झूमती मैं पवन संग
मत करना मेरा उपहास
किस तरह
छिपकर बैठी हो
झांक रही हो
शाश्नकित तन मन से
आओ न तुम भी
लो न सुखद एहसास
मेरे संग का
मैं भर लूँगी तुमको
अपनी आगोश में
झूम उठेगा मेरा आँगन
नन्हे मुन्नों की किलकारियों से
पर मत आना
बीते इतिहास को दोहराने
मेरे जज्बातो का
उपहास उड़ाने.....
स्वरचित
मीना तिवारी
पुणे महाराष्ट्र
🥀🥀तृतीय स्थान🥀🥀
- - - - -
* सुरमयी प्रकृति *
*
बादलों के टंकार गर्जन नाद से
धरती,मुस्कुराई।
पपिहे की पीउ कहाँss रुदन
स्वर,फिर करुणआई।
रिमझिमबूदों ने वर्षाकर, धरती
की प्यास बुझाई।
अनुपम हरियाली सर्वत्र धरणी
पर,चहुं-दिश छाई।
हुई प्रकृति रमणीक, वसुंधरा
मुखरित हो हरसाई।
प्रकृति है ममतालु वात्सल्यता
लिए,आँचल रही फैला।
आह!मधुर संगीत सुरों में मगन
पंक्षी रहें हैं गा।
फल-फूल खिल उठे क्यारी-क्यारी,
कलियन रहीं मुस्कुरा।
ललक-पुलक-थिरक रहे पंक्षी,
गुटुरगूँ कर रहे बतिया।
काले-काले मेघ छा रहे,दामिनी
घनबीच अपार।
सर-सरिता-गिरि-तरुवर सबके
मन में है, अह्ललाद।
फल-फूलों से लदे वन उपवन
हृदय तंत्र में,उल्लास।
हरियाली चूनर ओढ़े भू ,पर्वत
का जूडा लिया बना।
रंग बिरंगे रत्न आभूषण कुंदन
प्रकृति तन में जड़ा।
सिंधूरी लाली सूरज धरणी मांथे
का,टीका बना।
इत्रमें भींनी-भींनी मलयज, सांसों
में सर्वत्र घुल रहा।
* * *
*"नीलम पटेल" *प्रयागराज *
(स्वरचित,मौलिक, अप्रकाशित रचना)
🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀
सराहनीय प्रस्तुति
नमन मंच
आँखों को तृप्ति देती है मन को हर्षाती है हरियाली,
चहक रहा उपवन सारा चारों ओर छाई हरियाली,
नाचे मयूर और बोले पपीहा मेंढ़क टर्र-टर्र करते,
सूरज जब भी निकलता नभ में निखरे उसकी लाली!!
खेतों में फसलें लहराएं सरसों पीली दिल को लुभाएं,
लहलहते फसलों को देखकर किसान उत्सव मनाएं,
सुन्दरता वसुधा पर छाई जब घिर आई काली घटाएँ,
सारे पक्षी शोर मचाते गीत गाती है कोयल काली!!
आओ जगह- जगह पर अपनी पसंद के पेड़ और फल लगाएं,
प्रकृति की इस अद्धभूत देन से नाता जोड़ें और सबका जीवन सफल बनाएं!!
आभा सिंह
लखनऊ उत्तर प्रदेश
मेरी रचना मौलिक, स्वरचित है।
___________________
सराहनीय प्रस्तुति
महाराष्ट्र कलम की सुगंध
21 सितंबर 2020
विधा-क्षणिकाएं
************************
1.
हुई सुबह मन इठलाए,
काले काले बादल छाएं,
मन में उमंग जब भरता,
हरियाली मन को लुभाएं।
2
चहुं ओर फूल खिले हो,
जहां बैठकर मन हर्षाये,
हरियाली के नाम पर ही,
खुशियां दामन भर जाए।
3
मन मुदित हो देख छटा,
आसमान पर छाए घटा,
रिमझिम बारिश होती है,
हरियाली की झुकी लता।
************************
स्वरचित, नितांत मौलिक
*******************
*होशियार सिंह यादव
मोहल्ला-मोदीका, वार्ड नंबर 01
कनीना-123027 जिला महेंद्रगढ़ हरियाणा
व्हाट्सअप एवं फोन 09416348400
🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀
महाराष्ट्र कलम की सुगंध द्वारा आयोजित चित्र आधारित कविता लेखन में उत्कृष्ठ सृजन के लिए आपको ढेर सारी बधाई व शुभकामनाएं। महाराष्ट्र कलम की सुगंध परिवार आपके उज्ज्वल भविष्य की मंगल कामना करता है।
अनुराधा चौहान 'सुधी'
सचिव (महाराष्ट्र कलम की सुगंध)
चित्र गूगल से साभार
स्वरचित
कोरोना ने बहुत कुछ छीन लिया है पर बहुत कुछ दिया भी है। कहीं चिंता दी तो कहीं चिन्तन। किसी का चैन छीना तो किसी को सुकून दिया। लेकिन हम बात करेंगे सकारात्मक पहलू की।
खुशियाली है... हरियाली है...
देखो हर तरफ प्रकृति में
छाई हरी हरियाली है।
घर में भी देखो अब तो
आई खुश खुशियाली है।।
बाग बगीचे सब हरे -भरे,
वृक्ष फूलों-फलों से लदे फदे।
चिकने हरे हरे से पत्ते,
चमके मानो रुधिर भरे।।
लगते कितने खुश हैं ये
स्वच्छ हवा में लेते श्वांस।
जीवन में कब देखे ऐसे
सुमनों पर भरपूर पराग।।
है प्रदूषण से मुक्त धरा ।
साफ सुथरा है पर्यावरण।
सौन्दर्य से भरपूर निखरा-निखरा
प्रकृति का है कण-कण।।
साफ बह रहीं नदियां
सबकी जीवनदायिनी।
होगी अब भरपूर फसल
पौष्टिक आरोग्यबर्धनी।।
देखो कितनी हरियाली।
छाई कितनी हरियाली।।
जीवन में भर गये फिर रंग
घर घर हंसी ठहाके गूंज रहे।
दादा-दादी,मम्मी-पापा के संग
मस्ती,नोक-झोंक भरपूर रहे।।
प्यार पुरसुकून मन में फिर
फिर उमंग,तरुनाई भर आई।
घर लगते पावन मन्दिर से
रौनकें बहु-बेटीं लेकर आईं।।
मतभेद विचार कुछ ढह रहे
समन्वय के संस्कार बह रहे।
लहरा रहा भारतीय संस्कृति का परचम
हो रहा फिर नये पुराने का संगम।।
ऐसा मौका मिलेगा ना फिर
जी लो जीवन के ये अद्भुत दिन।
स्मृतियों में बस जायेगें
कोरोना वाले दिन कहलायेगें।।
देखो खुशियाली आई।
घर में खुशहाली छाई।।
***
प्रीति शर्मा"पूर्णिमा"
21/09/2020
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द्वितीय स्थान
विषय .......हरियाली
हरियाली ये मनभावन है,
धरा ने चूनर ओढ़ी है।
हरी भरी ये धरती लगती ,
अब शांति आभूषण शोभित है।
प्रदूषण से राहत लगती ,
तव ही वसुंधरा सजी हुई ।
हरियाली चहुँ और है फैली,
पर लम्बी सांसो में सिसक रही।
धुंधली यादों के साये में ,
नित मुझको दीखे वो मोड़ ।
वो हरियाली रास्ते जिस पर ,
आती सड़क थीं चारों ओर ।
हरियाली बिन रस्ता नहीं सजती,
चौराहे की शान सजे ।
तुम मिलते थे में मिलती थी ,
पर आज वहाँ विश्राम लगे ।
कहां गयीं वो सड़क की रौनक ,
जिस पर मेले लगते थे ।
पहचान नहीं होती अब उसकी,
जिस मोड़ पर हम सब मिलते थे
सड़कें अब वीरानी रहतीं ,
हरियाली बिन घबराती हैं।
क्या मोड़ों पर पड़ी आपदा,
बिल्कुल चैन न पाती हैं।
सुन्दर वादी हमसे पूछें ,
तुम सब कहां पर खोये हो ।
क्यों नहीँ मिलने मुझसे आते ,
किस विपदा से रोये हो ?
पता नहीं अब कब रस्तों पर ,
जन मानस की भीड़ लगे ।
वाहन अब कब दौड़ लगायें ,
मधुर आस में सभी पड़े।
स्वरचित सुधा चतुर्वेदी मधुर
मुंबई
🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀
तृतीय स्थान
वो खड़ी
दूर मुस्करा रही थी।
शायद मेरा
उपहास उड़ा रही थी।
सच क्या
मैं शायद जानती थी।
बड़ी बारीकियों से
मेरे उफनते जज्बातो को
पहचान रही थी।
सच मे वो मेरा मजाक उड़ा रही थी।
मैं गुमसुम सी उसको ताक रही थी।
जानती थी।
तभी तो हवाओ के
एहसासों से
मुझ को संदेशे भिजवा रही थी।
मानो कह रही
क्यो बैठी हो
छिपकर
आओ न मिल बैठ
करती हूं कुछ बाते
कुछ बीती अधूरी पूरी बातें
पहले की तरह
करो न मेरा स्पर्श
दो न सुखद एहसास
जोड़ दो साँसों के तार से
अपने नर्म पैरो
के तलुवों से सहला दो मुझे
अपने होने का एहसास दिला दो
बहुत हो गया
खामोशियो का गुजरता सफर
पर सुनो न
पर मत वापस देना
वो प्रदूषण
जहर मिला।
कितनी काली हो गई थी।
मत दोहराना
न मिटाना
मेरा अस्तित्व
कितनी सुन्दर हो गई मैं
वापस हरी भरी
स्वच्छ हरियाली युक्त
झूमती मैं पवन संग
मत करना मेरा उपहास
किस तरह
छिपकर बैठी हो
झांक रही हो
शाश्नकित तन मन से
आओ न तुम भी
लो न सुखद एहसास
मेरे संग का
मैं भर लूँगी तुमको
अपनी आगोश में
झूम उठेगा मेरा आँगन
नन्हे मुन्नों की किलकारियों से
पर मत आना
बीते इतिहास को दोहराने
मेरे जज्बातो का
उपहास उड़ाने.....
स्वरचित
मीना तिवारी
पुणे महाराष्ट्र
🥀🥀तृतीय स्थान🥀🥀
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* सुरमयी प्रकृति *
*
बादलों के टंकार गर्जन नाद से
धरती,मुस्कुराई।
पपिहे की पीउ कहाँss रुदन
स्वर,फिर करुणआई।
रिमझिमबूदों ने वर्षाकर, धरती
की प्यास बुझाई।
अनुपम हरियाली सर्वत्र धरणी
पर,चहुं-दिश छाई।
हुई प्रकृति रमणीक, वसुंधरा
मुखरित हो हरसाई।
प्रकृति है ममतालु वात्सल्यता
लिए,आँचल रही फैला।
आह!मधुर संगीत सुरों में मगन
पंक्षी रहें हैं गा।
फल-फूल खिल उठे क्यारी-क्यारी,
कलियन रहीं मुस्कुरा।
ललक-पुलक-थिरक रहे पंक्षी,
गुटुरगूँ कर रहे बतिया।
काले-काले मेघ छा रहे,दामिनी
घनबीच अपार।
सर-सरिता-गिरि-तरुवर सबके
मन में है, अह्ललाद।
फल-फूलों से लदे वन उपवन
हृदय तंत्र में,उल्लास।
हरियाली चूनर ओढ़े भू ,पर्वत
का जूडा लिया बना।
रंग बिरंगे रत्न आभूषण कुंदन
प्रकृति तन में जड़ा।
सिंधूरी लाली सूरज धरणी मांथे
का,टीका बना।
इत्रमें भींनी-भींनी मलयज, सांसों
में सर्वत्र घुल रहा।
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*"नीलम पटेल" *प्रयागराज *
(स्वरचित,मौलिक, अप्रकाशित रचना)
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सराहनीय प्रस्तुति
नमन मंच
आँखों को तृप्ति देती है मन को हर्षाती है हरियाली,
चहक रहा उपवन सारा चारों ओर छाई हरियाली,
नाचे मयूर और बोले पपीहा मेंढ़क टर्र-टर्र करते,
सूरज जब भी निकलता नभ में निखरे उसकी लाली!!
खेतों में फसलें लहराएं सरसों पीली दिल को लुभाएं,
लहलहते फसलों को देखकर किसान उत्सव मनाएं,
सुन्दरता वसुधा पर छाई जब घिर आई काली घटाएँ,
सारे पक्षी शोर मचाते गीत गाती है कोयल काली!!
आओ जगह- जगह पर अपनी पसंद के पेड़ और फल लगाएं,
प्रकृति की इस अद्धभूत देन से नाता जोड़ें और सबका जीवन सफल बनाएं!!
आभा सिंह
लखनऊ उत्तर प्रदेश
मेरी रचना मौलिक, स्वरचित है।
___________________
सराहनीय प्रस्तुति
महाराष्ट्र कलम की सुगंध
21 सितंबर 2020
विधा-क्षणिकाएं
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1.
हुई सुबह मन इठलाए,
काले काले बादल छाएं,
मन में उमंग जब भरता,
हरियाली मन को लुभाएं।
2
चहुं ओर फूल खिले हो,
जहां बैठकर मन हर्षाये,
हरियाली के नाम पर ही,
खुशियां दामन भर जाए।
3
मन मुदित हो देख छटा,
आसमान पर छाए घटा,
रिमझिम बारिश होती है,
हरियाली की झुकी लता।
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स्वरचित, नितांत मौलिक
*******************
*होशियार सिंह यादव
मोहल्ला-मोदीका, वार्ड नंबर 01
कनीना-123027 जिला महेंद्रगढ़ हरियाणा
व्हाट्सअप एवं फोन 09416348400
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महाराष्ट्र कलम की सुगंध द्वारा आयोजित चित्र आधारित कविता लेखन में उत्कृष्ठ सृजन के लिए आपको ढेर सारी बधाई व शुभकामनाएं। महाराष्ट्र कलम की सुगंध परिवार आपके उज्ज्वल भविष्य की मंगल कामना करता है।
अनुराधा चौहान 'सुधी'
सचिव (महाराष्ट्र कलम की सुगंध)
चित्र गूगल से साभार
चयनित रचनाकारों को बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं 💐💐
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद और सभी विजेताओं को बधाई
Deleteसभी चयनित रचनाकारों को हार्दिक बधाई और शुभकामनायें 💐💐👌👌👌👏👏👏👏
ReplyDeleteनमन मंच आभार, निर्णायक मंडल का हार्दिक आभार, सधन्ययवाद💐💐💐💐💐
ReplyDeleteसभी चयनित रचनाकारों को ढेर सारी बधाई 💐💐💐
ReplyDeleteमंच का आभार मेरी रचना को तृतीय श्रेणी प्रदान करने के लिए सहृदय धन्यवाद💐💐💐
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