प्रथम स्थान
महाराष्ट्र कलम की सुगन्ध
नमन मंच 💐🙏
दिनांक -15/09/2020
विषय - अंतर्द्वंद
विधा-गद्य
तारों का उत्सव अब विश्राम ले रहा था। सूरज की छुटपुट किरणें स्वर्ण मल्लिका के समान तमस को पराजित करने को प्रतिबद्ध थीं।
जो नहीं पराजित हो पा रहे थे वे थे स्वयं पंडित रामनाथ शास्त्री के मन के भाव। विगत एक सप्ताह से स्वयं का स्वयं से युद्ध जारी था।
शहर के धनाढ्य व प्रभावित लोगों में से एक जीवन दास द्वारा संचालित 'जीवन दास संगीत महाविद्यालय' के शिक्षक ही नहीं प्राण थे रामनाथ शास्त्री, जिन के संरक्षण में अनगिनत प्रतिभाऐं अपने लक्ष्य तक पहुंची थी।स्वयं को पालक नहीं, सेवक मानते थे वह संस्था का।
उनकी सौम्यता व सरलता के कारण ,जीवन दास की मलिन छवि के विपरीत, संगीत विद्यालय दूर क्षेत्र तक अपना प्रभाव छोड़ने में सफल था।
बढ़ती प्रसिद्धि के चलते जीवन दास पूर्णता रामनाथ शास्त्री पर अपने विद्यालय का दायित्व डाले निश्चिंत थे । पर आज रामनाथ शास्त्री अपने दायित्व व मनःस्थिति से तालमेल नहीं बैठा पा रहे थे।
सप्ताह पूर्व जब करुणा की सजीव मूर्ति चित्रा अपने दस वर्षीय पुत्र सुकेतु को उनके सम्मुख संगीत शिक्षा की अनुनय लेकर आई। तब उन्हें भली भांति ज्ञात था कि यह वही चित्रा है जिसने वैधव्य के प्रारब्ध को पूर्णता नकार कर उस मनुवादी समाज को तिलांजलि दे दी थी ,जिसका प्रतिनिधित्व जीवनदास सरीखे लोग करते थे।
पति के ना रहने पर संपत्ति व स्वयं पर सामाजिक लोभ का उसने प्रतिकार किया था। जिसके फलस्वरूप जीवनदास सरीखे लोगों का समूह अपने विरुद्ध तैयार कर लिया था।
इसी के चलते अब सुकेतु की संगीत शिक्षा में जीवन दास की अनुमति बाधक थी।
जब चित्रा के हठ पर सुकेतु का मधुर गायन सुना तो वह भली-भांति समझ गए कि बालक के गले में साक्षात सरस्वती विरजती हैं। पर जीवन दास के प्रति पूर्णता निष्ठा रखने पर उन्होंने शिक्षा देने से मना कर दिया।
प्रतिदिन भोर में ही चित्रा को सुकेतु के साथ विद्यालय के आगे शिक्षा याचक के रूप में खड़े देखकर रामनाथ शास्त्री अंतर्द्वंद की स्थिति से गुजर रहे थे। मना करने के बाद भी चित्रा की याचना पूर्ववत ही थी।
एक दिन शाम को मंदिर से लौटते समय उत्सुकतावश उनके कदम चित्रा के घर की ओर मुड़ गए।
चित्रा के घर से निकलते सुकेतु के मधुर स्वर, संध्या बेला को अनुप्राणित कर रहे थे। उस समय उन्हें स्वर्गीय आनंद की प्राप्ति हुई। आनंद ने अंतर्द्वंद पर विजय पा ली थी।
अगली भोर तमनाशक थी। विद्यालय के सामने खड़ी चित्रा व सुकेतु को देख अब रामनाथ शास्त्री ने आगे बढ़कर सुकेतु का हाथ थाम लिया।
सुकेतु को अंदर विद्यालय में ले जाते हुए रामनाथ शास्त्री को पिछली संध्या में जीवन दास को लिखे पत्र का स्मरण हो आया, जिसमें उन्होंने लिखा था," मैं आपका सेवक व मां सरस्वती का उपासक हूं। मां ने मुझे सुकेतु के रूप में अपनी उपासना का आदेश दिया है। और मैं इस उपासना के साथ ही विद्यालय की और आपकी सेवा कर पाऊंगा।"
सुकेतु के साथ अंदर विद्यालय में जाते हुए पीछे मुड़कर देखा, चित्रा का शुष्क मुख प्रसन्नता की आद्रता से नम था।
✍️डा.शुभ्रा वार्ष्णेय
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द्वितीय स्थान
नमन मंच महाराष्ट्र कलम की सुंगध
विषय_ अन्तर्द्वन्द
विधा-कविता
दिनांक १५-९-२०२०
इस किनारे ,उस किनारे,
पर लगेगी नाव,
मन का प्रश्न स्वयं से,
एक अनुबन्ध हैं|
और प्रकृति की देन,
अन्तर्द्वन्द है|
आगा पीछा सोचना,
डरना, झिझकना,
आदमी के आचरण,
का अंग है|
मनुज की इच्छा शक्ति ही,
अन्तर्द्वन्द है|
जोड़ लें या तोड़ दे,
मुख मोड़ ले,
अब क्या करे ,
क्या ना करें|
इसी को तो कहते ,
अन्तर्द्वन्द हैं|
जिन्दगी के फैसले,
करते हुए जब,
मन की चंचलता ,
आकुल होती है|
उसे दिग्भ्रमित,
करता अन्तर्द्वन्द् हैं|
स्वार्थी, लोभी, कृपण,
कलुषित हृदय धारी ,
अपने को सदा,
मुखौटे मे छिपाते|
और मचाते भीतर,
ही भीतर द्वन्द हैं|
वीर ,शौर्य वाले निकलते,
जब मुहिम पर,
आत्म बल से लेते हैं,
निर्णय सदा|
खेल जाते जान पर,
करते न अन्तर्द्वन्द हैं|
आदमी है चाहता ,
शांति से हल सदा|
इसलिए चतुर्दिक ,
देखता है सोचता|
और तब सही हल,
करते अन्तर्द्वन्द हैं|
माँ सदा बेटे के हित में ,
सोचती है हृदय से|
प्यार की पराकाष्ठा,
संतानों के प्यार से|
व्यर्थ उसके लिए ,
सारे हीअन्तर्द्वन्द हैं|
द्वन्द्व जब निष्पक्ष होगा,
किसी मसले में|
सत्य का अनुशरण,
करता द्वन्द्व जब मन मे|
सही निर्णय करते,
तब यही अन्तर्द्वन्द हैं|
वुद्धि और विवेक,
कर्मठता कुशलता |
किसी भी कारण के,
निमित्त हैं सोचते|
मनुज के जीवन का,
सारथी अन्तर्द्वन्द है|
स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
विजय श्रीवास्तव
बस्ती
दिनांक १५-९-२०२०
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तृतीय स्थान
नमन मंच
महाराष्ट्र क़लम के सुगंध
विषय ...अंतर्द्वंद
15-09-20
विधना ने विध के दिया ,
जीवन संग अंतर्द्वंद ।
कभी खुशी कभी गम दिया ,
. सब विधना के रंग ।
कहीं धन अभाव है ,
कहीं स्वास्थ का तनाव है ।
कहीं महामारी तो कहीं ,
क्रूर शत्रु का दबाव है ।
औलादों की प्रतिक्रिया ,
अवसाद बनके आई है ।
संवादहीन बनोगे तो ,
अंतर्द्वंद मन में छाई है ।
वाद करो विवाद करो ,
और करो मधुर संवाद ।
सबसे सुन्दर मार्ग ये ,
ना झांकें कोई तनाव ।
तनाव के चक्रव्यूह को ,
कभी रचने न देना ।
बनना तुम अभिमन्यु ,
भेदन झट कर देना ।
अंतर्द्वंद की छाप को '
मत मन में करो प्रवेश ।
मन को पावन रूप दो ,
द्वंद से कर मति भेद ।
स्वरचित सुधा चतुर्वेदी मधुर
मुंबई
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महाराष्ट्र कलम की सुगंध द्वारा आयोजित चित्र आधारित कविता लेखन में उत्कृष्ठ सृजन के लिए आपको ढेर सारी बधाई व शुभकामनाएं। महाराष्ट्र कलम की सुगंध परिवार आपके उज्ज्वल भविष्य की मंगल कामना करता है।
अनुराधा चौहान 'सुधी'
सचिव (महाराष्ट्र कलम की सुगंध)
चित्र गूगल से साभार
महाराष्ट्र कलम की सुगन्ध
नमन मंच 💐🙏
दिनांक -15/09/2020
विषय - अंतर्द्वंद
विधा-गद्य
तारों का उत्सव अब विश्राम ले रहा था। सूरज की छुटपुट किरणें स्वर्ण मल्लिका के समान तमस को पराजित करने को प्रतिबद्ध थीं।
जो नहीं पराजित हो पा रहे थे वे थे स्वयं पंडित रामनाथ शास्त्री के मन के भाव। विगत एक सप्ताह से स्वयं का स्वयं से युद्ध जारी था।
शहर के धनाढ्य व प्रभावित लोगों में से एक जीवन दास द्वारा संचालित 'जीवन दास संगीत महाविद्यालय' के शिक्षक ही नहीं प्राण थे रामनाथ शास्त्री, जिन के संरक्षण में अनगिनत प्रतिभाऐं अपने लक्ष्य तक पहुंची थी।स्वयं को पालक नहीं, सेवक मानते थे वह संस्था का।
उनकी सौम्यता व सरलता के कारण ,जीवन दास की मलिन छवि के विपरीत, संगीत विद्यालय दूर क्षेत्र तक अपना प्रभाव छोड़ने में सफल था।
बढ़ती प्रसिद्धि के चलते जीवन दास पूर्णता रामनाथ शास्त्री पर अपने विद्यालय का दायित्व डाले निश्चिंत थे । पर आज रामनाथ शास्त्री अपने दायित्व व मनःस्थिति से तालमेल नहीं बैठा पा रहे थे।
सप्ताह पूर्व जब करुणा की सजीव मूर्ति चित्रा अपने दस वर्षीय पुत्र सुकेतु को उनके सम्मुख संगीत शिक्षा की अनुनय लेकर आई। तब उन्हें भली भांति ज्ञात था कि यह वही चित्रा है जिसने वैधव्य के प्रारब्ध को पूर्णता नकार कर उस मनुवादी समाज को तिलांजलि दे दी थी ,जिसका प्रतिनिधित्व जीवनदास सरीखे लोग करते थे।
पति के ना रहने पर संपत्ति व स्वयं पर सामाजिक लोभ का उसने प्रतिकार किया था। जिसके फलस्वरूप जीवनदास सरीखे लोगों का समूह अपने विरुद्ध तैयार कर लिया था।
इसी के चलते अब सुकेतु की संगीत शिक्षा में जीवन दास की अनुमति बाधक थी।
जब चित्रा के हठ पर सुकेतु का मधुर गायन सुना तो वह भली-भांति समझ गए कि बालक के गले में साक्षात सरस्वती विरजती हैं। पर जीवन दास के प्रति पूर्णता निष्ठा रखने पर उन्होंने शिक्षा देने से मना कर दिया।
प्रतिदिन भोर में ही चित्रा को सुकेतु के साथ विद्यालय के आगे शिक्षा याचक के रूप में खड़े देखकर रामनाथ शास्त्री अंतर्द्वंद की स्थिति से गुजर रहे थे। मना करने के बाद भी चित्रा की याचना पूर्ववत ही थी।
एक दिन शाम को मंदिर से लौटते समय उत्सुकतावश उनके कदम चित्रा के घर की ओर मुड़ गए।
चित्रा के घर से निकलते सुकेतु के मधुर स्वर, संध्या बेला को अनुप्राणित कर रहे थे। उस समय उन्हें स्वर्गीय आनंद की प्राप्ति हुई। आनंद ने अंतर्द्वंद पर विजय पा ली थी।
अगली भोर तमनाशक थी। विद्यालय के सामने खड़ी चित्रा व सुकेतु को देख अब रामनाथ शास्त्री ने आगे बढ़कर सुकेतु का हाथ थाम लिया।
सुकेतु को अंदर विद्यालय में ले जाते हुए रामनाथ शास्त्री को पिछली संध्या में जीवन दास को लिखे पत्र का स्मरण हो आया, जिसमें उन्होंने लिखा था," मैं आपका सेवक व मां सरस्वती का उपासक हूं। मां ने मुझे सुकेतु के रूप में अपनी उपासना का आदेश दिया है। और मैं इस उपासना के साथ ही विद्यालय की और आपकी सेवा कर पाऊंगा।"
सुकेतु के साथ अंदर विद्यालय में जाते हुए पीछे मुड़कर देखा, चित्रा का शुष्क मुख प्रसन्नता की आद्रता से नम था।
✍️डा.शुभ्रा वार्ष्णेय
🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀
द्वितीय स्थान
नमन मंच महाराष्ट्र कलम की सुंगध
विषय_ अन्तर्द्वन्द
विधा-कविता
दिनांक १५-९-२०२०
इस किनारे ,उस किनारे,
पर लगेगी नाव,
मन का प्रश्न स्वयं से,
एक अनुबन्ध हैं|
और प्रकृति की देन,
अन्तर्द्वन्द है|
आगा पीछा सोचना,
डरना, झिझकना,
आदमी के आचरण,
का अंग है|
मनुज की इच्छा शक्ति ही,
अन्तर्द्वन्द है|
जोड़ लें या तोड़ दे,
मुख मोड़ ले,
अब क्या करे ,
क्या ना करें|
इसी को तो कहते ,
अन्तर्द्वन्द हैं|
जिन्दगी के फैसले,
करते हुए जब,
मन की चंचलता ,
आकुल होती है|
उसे दिग्भ्रमित,
करता अन्तर्द्वन्द् हैं|
स्वार्थी, लोभी, कृपण,
कलुषित हृदय धारी ,
अपने को सदा,
मुखौटे मे छिपाते|
और मचाते भीतर,
ही भीतर द्वन्द हैं|
वीर ,शौर्य वाले निकलते,
जब मुहिम पर,
आत्म बल से लेते हैं,
निर्णय सदा|
खेल जाते जान पर,
करते न अन्तर्द्वन्द हैं|
आदमी है चाहता ,
शांति से हल सदा|
इसलिए चतुर्दिक ,
देखता है सोचता|
और तब सही हल,
करते अन्तर्द्वन्द हैं|
माँ सदा बेटे के हित में ,
सोचती है हृदय से|
प्यार की पराकाष्ठा,
संतानों के प्यार से|
व्यर्थ उसके लिए ,
सारे हीअन्तर्द्वन्द हैं|
द्वन्द्व जब निष्पक्ष होगा,
किसी मसले में|
सत्य का अनुशरण,
करता द्वन्द्व जब मन मे|
सही निर्णय करते,
तब यही अन्तर्द्वन्द हैं|
वुद्धि और विवेक,
कर्मठता कुशलता |
किसी भी कारण के,
निमित्त हैं सोचते|
मनुज के जीवन का,
सारथी अन्तर्द्वन्द है|
स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
विजय श्रीवास्तव
बस्ती
दिनांक १५-९-२०२०
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तृतीय स्थान
नमन मंच
महाराष्ट्र क़लम के सुगंध
विषय ...अंतर्द्वंद
15-09-20
विधना ने विध के दिया ,
जीवन संग अंतर्द्वंद ।
कभी खुशी कभी गम दिया ,
. सब विधना के रंग ।
कहीं धन अभाव है ,
कहीं स्वास्थ का तनाव है ।
कहीं महामारी तो कहीं ,
क्रूर शत्रु का दबाव है ।
औलादों की प्रतिक्रिया ,
अवसाद बनके आई है ।
संवादहीन बनोगे तो ,
अंतर्द्वंद मन में छाई है ।
वाद करो विवाद करो ,
और करो मधुर संवाद ।
सबसे सुन्दर मार्ग ये ,
ना झांकें कोई तनाव ।
तनाव के चक्रव्यूह को ,
कभी रचने न देना ।
बनना तुम अभिमन्यु ,
भेदन झट कर देना ।
अंतर्द्वंद की छाप को '
मत मन में करो प्रवेश ।
मन को पावन रूप दो ,
द्वंद से कर मति भेद ।
स्वरचित सुधा चतुर्वेदी मधुर
मुंबई
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महाराष्ट्र कलम की सुगंध द्वारा आयोजित चित्र आधारित कविता लेखन में उत्कृष्ठ सृजन के लिए आपको ढेर सारी बधाई व शुभकामनाएं। महाराष्ट्र कलम की सुगंध परिवार आपके उज्ज्वल भविष्य की मंगल कामना करता है।
अनुराधा चौहान 'सुधी'
सचिव (महाराष्ट्र कलम की सुगंध)
चित्र गूगल से साभार
चयनित रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं 💐💐
ReplyDeleteसभी विजेताओं को हार्दिक बधाई और शुभकामनायें👌👌👌👌👏👏👏👏💐💐💐💐💐
ReplyDeleteबहुत सुंदर 👌 बधाई 💐💐💐
ReplyDeleteपरिपक्व,गहन भाव प्नदर्शित मंथन करती बेहतरीन रचनाएं
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