Sunday, October 4, 2020

चित्र लेखन

प्रथम स्थान
महाराष्ट्र कलम की सुगंध
जय-जय श्री राम राम जी
चित्र लेखन
3/10/2020/शनिवार
*बढ़ते कदम*
काव्य

चलते रहें बढ़ते रहें कदम।
संघर्ष करें नहीं कोई ग़म।
ये जीवन मिला जीना हमें,
हम आगे बढ़ें कैसी शरम।

लक्ष्य जो निर्धारित किया है।
सदैव हमने हासिल किया है।
पीछे मुड़कर देखा नहीं,
होंसला हमने उसने दिया है।

प्रेम प्रीत से मिलकर बढ़ेंगे।
हम रुकावट से नहीं रुकेंगे।
वैमनस्य वैरभाव नहीं तो,
हम शिखरों को चूमते रहेंगे।

काल ऊषा हो या फिर संध्या,
उजाला हमें मिलता रहेगा।
शिक्षा जुड़े संस्कार संस्कृति,
हम प्रगति करें अवसर मिलेगा

चलें एकला या सहयोग से,
उन्नति का प्रयास करते रहेंगे।
क़दम अग्रसर हो चुके हमारे,
निरंतर हम बढ़ते ही रहेंगे।

स्वरचित
इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
 गुना म प्र
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द्वितीय स्थान

नमनमंच संचालक ।
महाराष्ट्र कलम की सुगन्ध।
विषय - चित्रलेखन ।
विधा - दोहा।
स्वरचित

देता है पैगाम ये,
डूबे सूरज रोज।
ऐसा मानव जीवना,
नहीं रहेगा ओज।।

हैं मुसाफ़िर सभी यहां,
रहा हमेशा कौन।
आत्म आई जिस जहां,
जाये फिर हो मौन।।

समझ मुसाफ़िर बात ये,
चलाचली की बेर।
करम कर पुण्य कमाले,
पछतायेगा फेर।।
****

प्रीति शर्मा "पूर्णिमा"
03/10/2020
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 तृतीय स्थान
नमन मंच
महाराष्ट्र क़लम की सुगंध
विषय ....चित्र लेखन
03 -10-20 शनिवार

चल बढ़ चल तू उन्नति पथ पर ,
मत घबड़ा तू सुनसानी राहों से ।
दुनियाँ तुझको गर खींचे भी तो ,
सतत धैर्य प्रयास थाम तू चल।
चल बढ़ चल तू उन्नति पथ पर ..

मत विचलित हो मत व्याकुल हो,
तू स्वयं निज कर्म में आतुर हो।
अपने पथ पर ध्यान केंद्रित कर ,
तू अथक परिश्रम करता चल ।
चल बढ़ चल तू उन्नति पथ पर ..

तुझको जब उन्नति हवा है़ चूमेगी ,
तेरे द्वार सफलता मद में झूमेगी ।
अभिमान की छाया तू मत छूना ,
तू जगत की परिचर्चा को तज ।
चल बढ़ चल तू उन्नति पथ पर ...

मेहनत का रंग बेहद सुन्दर होता ,
संतोष का अद्भूद फल मीठा होता ।
जब मानव अथक श्रम प्रयास करे,
उस श्रम बिंदु से तू फल सिंचित कर ।
चल बढ़ चल तू उन्नति पथ पर ..

स्वरचित सुधा चतुर्वेदी मधुर 
                        मुंबई

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सराहनीय प्रस्तुति

1️⃣
नमन मंच
दिनांक - 3-10-2020
विषय - गजल
उससे जियादा जहाँ में कोई सगा नहीं था,
मगर मेरे इश्क का कोई फलसफा नहीं था!!

हम जानतें हैं तुम्हारे शहर की रवायत भी
इक इश्क के सिवा वहाँ क्या क्या नहीं था!!

बन के बैठा रहा तू रकीबों का हाकिम
 इबादत मैं भी करता पर तू खुदा नहीं था !!

लौट आते हैं परिन्दें भी शाम को घरों में
तू गया ही क्यूँ जब मुझसे खफा नहीं था !!

सजदे में सर हम भी रख देते पर क्या करते
तेरा वजूद भी तो औरों से जुदा नहीं था!!

तुम तो खामखाँ गमों की नुमाईश करते हो
उसका इश्क बेवफा था वो बेवफा नहीं था!!

स्वरचित-अभिषेक मिश्र (केशव पण्डित)
2️⃣
मंद मारुत बहने दो,
------------आज का चित्र शीर्षक कदम
वसुधा पर,
हमने जन्म लिए
मनुज जीवन पाया
जीवन गीत गाने दो,
मत रोको मुझे
मेरी वाणी को कहने दो
पत्थरों पर सोई,
प्रतिमा को ,
नये रुप रचने दो।।
सूनी आँखोँ में,
नये नये सपने सजने दो।।
रुके कदम को,
मंजिल को बढ़ने दो।।
मुक्त पवन सा
मुझे वसुधा पर बहने दो।।
बीते पल जो,
बीत गये प्रिय,
रुठे अधरों पर,
शब्दोँ के मीठे गीत सजने दोःः
वसुधा पर मानवता के,
मंद मंद मारुत बहने दो।।
रचनाकार स्वरचित देवेन्द्र नारायण दास।।3/10/2020।।
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महाराष्ट्र कलम की सुगंध द्वारा आयोजित विषय आधारित लेखन में उत्कृष्ठ सृजन के लिए आपको ढेर सारी बधाई व शुभकामनाएं। महाराष्ट्र कलम की सुगंध परिवार आपके उज्ज्वल भविष्य की मंगल कामना करता है।

अनुराधा चौहान 'सुधी'
सचिव (महाराष्ट्र कलम की सुगंध)
चित्र गूगल से साभार

1 comment:

  1. चयनित रचनाकारों को बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं 💐💐

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