Sunday, October 4, 2020

पर्वत/पहाड़

प्रथम स्थान
महाराष्ट्र कलम की सुगंध
विषय-पर्वत
४/१०/२०
पर्वत पर चार वर्ण पिरामिड रचनाऐं।

मै
मौन
अटल
अविचल
आधार धरा
धरा के आंचल
पाया स्नेह बंधन।

ये
स्वर्ण
आलोक
चोटी पर
बिखर गया
पर्वतों के पीछे
भास्कर मुसकाया।

हूं
मै,भी
बहती
अनुधारा
अविरल सी
उन्नत हिम का
बहता अनुराग।

लो
फिर
झनकी
मधु वीणा
पर्वत राज
गर्व से हर्षाया
फहराया तिंरगा।

कुसुम कोठारी'प्रज्ञा'
🏵️प्रथम स्थान🏵️
नमन मंच 🙏
महाराष्ट्र कलम की सुगन्ध।
विषय - पर्वत/पहाड़
विधा - कविता
स्वरचित
       शीर्षक : "लक्ष्य पाने के लिए"
          *********************
संकल्प का एक दीप लेकर
प्रगति पथ पर अग्रसर
फटे हम चल पड़े
 पर्वत भी राहों पर अड़े
किंतु न हम हार कर
हर आफतों को मारकर
लक्ष्य पाने के लिए
आगे चले आगे चले
          आसमां फटने लगे
          पर्वत कहर बन के गिरे
          संधान कर लेंगे दिशा
          चाहे घोर हो काली निशा
       जालिम का रुख हम मोड़कर                             
         लक्ष्य पाने के लिए
         आगे चले आगे चले
चिलचिलाती धूप हो
तमतमाया रूप हो
सामने शोले पड़े
 या शीत में ओले पड़े
रास्तों में पर्वतों की
भांति हों रोड़े बड़े
   अप्सराओं की सुरभि से
    आप जो हिलने लगे
   मन हरिण को मोड़ कर
 पर दुख जगत का बांटकर
माया के बंधन तोड़ कर
हर ऐशो एब छोड़कर
लक्ष्य पाने के लिए
आगे चले आगे चले !!!!✍️✍️✍️
               ‌
‌‌प्रतिभापाण्डेय प्रयागराज उत्तर प्रदेश
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द्वितीय स्थान
नमनमंच संचालक ।
महाराष्ट्र कलम की सुगन्ध।
विषय - पर्वत/पहाड़
विधा - कविता
स्वरचित।

पहाड़ हैं खूबसूरती के घर।
लग रही इनको किसी की नजर।।

प्राकृतिक सौन्दर्य बिखरा दूर-दूर।
खजाना भी इनमें भरा भरपूर।।

वन नदियां इनकी बढ़ाते हैं शोभा।
जड़ी-बूटियों के यहां मिलते हैं पौधा।।

कल-कल बहता झरनों का पानी।
छन-छन आती वादियों में किरण सुहानी।।

सूरज की किरणें करती बसेरा।
खूबसूरत होता है यहां हर सबेरा।।

सांझ ढले अस्त सूरज की अप्रतिम लाली।
और चारों ओर घाटियों में छाई हरियाली।।

सिहरन जगाती महकी ठंडी हवायें।
मस्ती जगायें दिल सुंदर फिजायें।।

तीर्थों के मेले ऋषि-मुनियों की तपोस्थली।
हर मन को मोहती शान्तिमय वनस्थली।।

सुख और शांति का अनुपम खजाना।
पहाड़ों में जिनका बसा आशियाना।।

मेहनतकश लोग और सरल उनका जीवन।
भौतिकता से दूर और संघर्षों से तपा तन-मन।।

जाते हैं जब जब भ्रमण को पहाड़ों में हम।
उसके दैवीय सौन्दर्य में रूह हो जाती है गुम।।

कहते हैं प्रकृति के जितने नजदीक जाओगे तुम।
सच है यह आध्यात्मिक अनुभूति पाओगे तुम।।

फिर परमात्मा को अपनी रूह के समीप पाओगे तुम।
लौट तो आये हम पर आज भी वहां बसती है रूह।।
****
प्रीति शर्मा "पूर्णिमा"
04/10/2020
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तृतीय स्थान
नमन मंच 🙏
महाराष्ट्र क़लम की सुगंध

04-10-20---रविवार
विषय ....पत्थर / पहाड़

टूट कर  गिरा पहाड़ से पत्थर ,
  प्यारा घऱ बना के देता है ।
    भावों की छत्रछाया परिवार को देता,
         मानव की आन को मान देता है।

भारतीयों की आस्था विश्वास देखो ,
  पाहन  का नाम पूज्य  गिरिराज देखो। 
   चलते औजार जब पत्थर की छाती पर ,
    उसका निखरता रूप भगवान कीमूरत देखो ।

मानव ! तू पत्थर दिल किस काम का,
     अपना ही  परिवार बिगाड़ करता है ।
         पत्थर की आन बान शान जान,
             जिसमें तू जिन्दगी भर बसर करता है ।

तुम पत्थर का उच्च  शिखर  देखो,
  मौन का   सख्त प्रतिरूप बना।
     चुप्पी    कितनी  बलशाली है,
        पत्थर  ताकत का रूप बना ।

मत चलाना वाणी का पत्थर तुम,
     दिल में खूनी घाव करता है ।
       मधुर दिल काँच से बिखर जाते ,
         तुमको भी नाम से बदनाम मिलता  है ।

स्वरचित   सुधा चतुर्वेदी ' मधुर ' 
                   ..मुंबई
🏵️ तृतीय स्थान🏵️
४/१०/२०२०/ रविवार
नमन मंच💐
"महाराष्ट्र कलम की सुगंध"
विषय-पर्वत/पहाड़
विधा- कविता
- - - -   
       *सुरम्य-स्थल *
ऊँचेअमल धलव पर्वत
  शिखर हिमांचल।
  स्वर्णिम किरणांचल
    विकीर्ण गिरि,पर।
 इर्द- गिर्द हरित शैवाल
      दरी बिछी,सी।
दुर्गम बर्फीली मनभावन
      सुन्दर घाटी।
नभ-चुंम्भी कैलाश पर्वत 
         शीर्ष पर।
ऊँचे-ऊँचे साखू सागौन
        वृक्ष देवदार।
 रंग-बिरंगे फूल सुगंधित 
       इत्र बनकर।
महक मदमय होरही,मलय
        में घुलकर ।
 खिले श्वेतपद्म,मानसरोवर
        के पवित्र जल।
विराजमान हों सरस्वती जैसे
         वीणा लेकर।
कस्तूरीमृग होकर उन्मादित
            पर्वत पर,
निज नाभिसुगंध से विचलित
       धावत हरपल।
कलकल,छलछल नदियों का
          मृदुल जल।
प्रस्फुटित शिलाओं से झरते
          झरने निर्झर।
बहुरूपणी नदियाँ श्वेतमुक्त
           माला सी,
इठलातीं,बलखाती,लहरातीं
        घाटी वक्षपर।
*"नीलम पटेल" प्रयागराज *
(स्वरचित,मौलिक, अप्रकाशित रचना)
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सराहनीय प्रस्तुति
1️⃣
नमन मंच-महाराष्ट्र कलम की सुगंध
तिथि-04/10/2020
विषय-पर्वत/पहाड़

मैं हूँ पर्वत
********

मैं पर्वत,गिरि,पहाड़,,,,देश का हूँ  मैं प्रहरी,
देखो मुझ पर है हिम पड़ती है धूप सुनहरी।
मुझसे निकलती हैं कलकल करती नदियाँ,
झर-झर झरती बहती ढुलकती जाये निर्झरणी।

मैं हूँ हिम से आच्छादित बन गया मैं हिमाचल,
पूरब में करता स्वागत अरुण का,बना अरुणाचल।
मुझ पर ही है प्रदेश सियाचिन,कारगिल,
बनो तुम वीर प्रखर, तू बढ़ते चला चल।

मैं अडिग,अचल,,,खड़ा तपोवन में तपस्वी सा,
तुम भी अपने जीवन में बनो अडोल मुझ सा।
न दिगो अपने पथ से, बने रहो अपने पथ पर,
अपनी प्रतिज्ञा से न डिगो कभी चलते रहो अपने पथ पर।


स्वरचित
अनिता निधि
जमशेदपुर,झारखंड
2️⃣

प्रकृति नटी,
चोका कविता, जापानी विधा,-
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महाराष्ट्र कलम की सुगंध
-----------------------------
संग रहती,
मनुज सहचरी,
प्रकृति बन,
गाकर सुलाती है
गीत लोरियां,
नित नित लुभाती,
मन तरंगों,
चिर प्रकृति नटी,
हँसरहे है
गिरि पर्वत तरु,
मूक आनंद
लहलहाती खेती,
झूमे फसलें,
हँस रही खेतियाँ
प्राण हर्षित
भीनी नशा छा रहा,
गीत संगीत,
पुरव ईयाँ गाऐ
मेघ बजाए,
धरा गिरि ,गगन
चंप ई ज्योत
सारी प्रकृति पर,
पसरा हुआ,
प्रकृति श्वेत परी,
गिरि शिखर
श्वेत चादर ओढ़े,
देव दूत सा खड़ा।।
चोका कार देवेन्द्र नारायण दास बसना, ग,4/10/2020/

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महाराष्ट्र कलम की सुगंध द्वारा आयोजित विषय आधारित लेखन में उत्कृष्ठ सृजन के लिए आपको ढेर सारी बधाई व शुभकामनाएं। महाराष्ट्र कलम की सुगंध परिवार आपके उज्ज्वल भविष्य की मंगल कामना करता है।

अनुराधा चौहान 'सुधी'
सचिव (महाराष्ट्र कलम की सुगंध)

1 comment:

  1. सभी रचनाकारों को बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं 💐💐

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पिता

  प्रथम स्थान नमन महाराष्ट्र क़लम की सुगंध मंच दिनांक - १६/१०/२०२० दिन - शुक्रवार विषय - पिता --------------------------------------------- ...