नमन मंच
महाराष्ट्र क़लम के सुगंध
विषय .....चित्र लेखन
17-09-200
प्रकृति क़ी गोद
रे मानव ! ये तेरी भूल है ,
प्रकृति से क़ी खिलवाड़ है ।
उसके बिन तेरी गति नहीं है ,
ना मानव तेरा वंश आधार है ।
सांस क़ी गति मुझ से ही है ,
स्वच्छ वायु क़ी में आधार ।
ईश्वर क़ी प्रिय वरदान हूं में ,
जीवन तेरा मुझसे साकार ।
फल फूल क़ी उत्पत्ति मुझसे ,
कली कली में खिली खिली ।
में बच्चों को गोद में रखती ,
मेरी वंश बेल मिटा क्यों दी ।
मुझ मिट्टी में बच्चे खेले कूदे ,
खेल कूद कर बढ़े हुए ।
उसी धरा का छेदन करके ,
चीड़ फाड़ तुम खुशी हुए ।
फूलों से कोमल बच्चों सम ,
तुमने है चमन उजाड़ दिये ।
कभी ना सोचा पुष्प पल्लवित ,
वृक्षों को तुमने काट दिये ।
वृक्ष के बिन क्या फल मिल जायें ,
अन्न के कण कण तरसोगे ।
सूर्य देव के ताप से बचते ,
अब तुम शीतल को तरसोगे ।
स्वरचित सुधा चतुर्वेदी मधुर
मुंबई
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द्वितीय स्थान
नमनमंच संचालक ।
महाराष्ट्र कलम की सुगन्ध।
विषय - चित्रलेखन ।
विधा -छन्द मुक्त
शीर्षक - मैं तो तेरी मां हूं और साथ हूं बाप भी।
स्वरचित।
मैं तो तेरी मां हूं और साथ हूं बाप भी।
कर्तव्य निभाएं मैंने,परम पिता की छवि।।
कैसे तू भूला मानव? मैं हूं तेरी प्रकृति।
ईश्वर का वरदान,उसकी अनुपम कृति।
तेरी रक्षा करती हूं मैं।
हरदम रत रहती हूँ मैं।
मां की तरह मैंने तुझे
आंचल की छांव दी।
और पिता की तरह मैंने
तेरी क्षुधा शांत की।।
मैं तो तेरी मां हूं और साथ हूं बाप भी।
कर्तव्य निभाएं मैंने, परमपिता की छवि।
कैसे भूला तू मानव? मैं हूं तेरी प्रकृति।
ईश्वर का वरदान, उसकी अनुपम कृति।।
मेरे हर अंग का तूने
खूब इस्तेमाल किया।
चाहे जड़ हो या तना?
सबने है कमाल किया।
पत्ती-पत्ती,कलियां-कलियां
सब काम तेरे आए।
कोई बना रोग की दवाई
कोई चेहरा संवार जाए।
मैं तो तेरी मां हूं और साथ हूं बाप भी।
कर्तव्य निभाएं मैंने, परमपिता की छवि।
कैसे भूला तू मानव? मैं हूं तेरी प्रकृति।
ईश्वर का वरदान, उसकी अनुपम कृति।।
हर सांस को सांस का हक,
हर प्राणी को आस।
वातावरण को शुद्ध पवित्र,
दिया सबको वरदान सायास।।
हर कण-कण से अपने
पृथ्वी को उर्वरा खूब किया।
ना काटो मुझे वरना, मानो
रोगों से संग्राम हुआ।।
मैं तो तेरी मां हूं और साथ हूं बाप भी।
कर्तव्य निभाये मैंने, परमपिता की छवि।
कैसे भूला तू मानव? मैं हूं तेरी प्रकृति।
ईश्वर का वरदान,उसकी अनुपम कृति।।
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प्रीति शर्मा," पूर्णिमा"
17/09/2020
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🌷द्वितीय स्थान🌷
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नमन मंच
विषय - चित्र लेखन
बरसती बारिश,
समंदर, समंदर की लहरें,
घने बादल,
ढलता सूरज,
कितना कुछ है प्रकृति में
मगर मानव करता विध्वंस है
बेबाक पंछीओं उडना,
कड़कती बिजली,
रातों की शान्ति,
खेत खलियानों की हरयाली,
कितना कुछ है प्रकृति में
मानव देता बड़ा दंश है!!
तपता गगन,प्यासा उपवन,
लू के झोंके, भरा दौंगरा,
जूही की कली पल यौवन भरा,
मृदु मुस्कान, कोयल की तान
कितना कुछ है प्रकृति में
मानव भी इसका अंश है!!
जेष्ठ की तपन, आषाढ़ का गर्जन
गाते मेंढक, विकल जन जन
फिर खुले आसमान,
हर्षित किसान
कितना कुछ है प्रकृति में
प्रत्येक जीव इसी का अंश है!!
@मौलिक अप्रकाशित
स्वरचित ----- - अभिषेक मिश्रा
बहराइच उत्तर प्रदेश
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तृतीय स्थान
नमन मंच
विषय चित्र लेखन
तू देख रहा
रे मानव
यौवन प्रकृति का
खिला खिला
जब से तू
रहा छिपा छिपा
प्रदूषण मुक्त
हो गई धरा
सज गई धरा
पहन धानी चुनर
चहके पक्षी
डाल डाल फिर पात पात
जो धुले धुले
निखरे लाजवाब
दे रही प्रकृति
सुंदर दावत
आलिंगन स्नेह संचार
किलकार रही धरा
बन शिशु सा सार
जब चली हवा
ले शुद्ध बयार
अदभुद जीवन का संचार
मत अब इसको मिटने देना
ये है खुशियो का गहना
देती हमको कितने उपहार
बिन इनके नही जीवन सार
ये प्रकृति धरोवर
जीवन की
हर कण कण की
जीवन दाती
ईश्वर का उपहार है
एक सच्चा वरदान है
हमे बदले में फर्ज निभाना है
नवांकुर रोपण कर
जन जन को जगाना है।
स्वरचित
मीना तिवारी
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महाराष्ट्र कलम की सुगंध द्वारा आयोजित चित्र आधारित कविता लेखन में उत्कृष्ठ सृजन के लिए आपको ढेर सारी बधाई व शुभकामनाएं। महाराष्ट्र कलम की सुगंध परिवार आपके उज्ज्वल भविष्य की मंगल कामना करता है।
अनुराधा चौहान 'सुधी'
सचिव (महाराष्ट्र कलम की सुगंध)
चित्र गूगल से साभार
शानदार प्रस्तुति 💐💐💐💐
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति
ReplyDeleteसभी विजेताओं को हार्दिक बधाई और शुभकामनायें👏👏👏👏⚘💐💐⚘👌👌👌
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