प्रथम स्थान
नमन महाराष्ट्र क़लम की सुगंध मंच
दिनांक - २३/०९/२०२०
दिन - बुधवार
विषय - स्नेह/ प्रेम
विधा - कविता
---------------------------------------------
भेज रहे उम्मीद से तुमको प्रेम गुलाब।
तुमको है स्वीकार क्या देना मुझे जवाब।।
फूल नहीं मन है मेरा कर लो तुम स्वीकार।
प्रियतम इस दीवाने पर करो तनिक उपकार।।
बदले में दे दो मुझे प्रीत का तुम उपहार।
महका दो जीवन मेरा करो सुखी संसार।।
इतनी सी है कामना पाऊं तेरा प्यार।
तेरे दिल में मैं रहूं ओ मेरे दिलदार।।
हाथ थामकर हाथ में चलें साथ हम राह।
बंधन बांधूं प्रीत की यही प्रेम की चाह।।
धूप-छाँव हो या रहे सुख-दुख की बरसात।
बीते तेरे संग में अपने दिन और रात।।
मरते दम तक हम रहें एक जान एक तन।
मर कर भी टूटे नहीं रिश्तों का बंधन।।
सरिता सागर की तरह अपना हो संगम।
धारा की तरह चलें एक साथ हमदम।।
ईच्छा है जीवन जियें सदा तुम्हारे संग।
हर मौसम हर रंग में रंगें तुम्हारे रंग।।
रिपुदमन झा 'पिनाकी'
धनबाद (झारखण्ड)
स्वरचित
-------------------------
🌷प्रथम स्थान 🌷
महाराष्ट्र कलम की सुगन्ध
नमन मंच 🙏💐
दिनांक-23/09/2020
विषय-प्रेम
नयनो से दर्शन हो वह प्रेम नहीं,
नित बदलते भाव का नाम प्रेम नहीं।
मन को सुभाषित कर जाता है प्रेम,
हठ नहीं वरन साधना है प्रेम।
उन्मुक्त होकर भी स्वच्छंद नहीं प्रेम,
निर्विकार डूब जाना ही है प्रेम।
अनुभूतियों को लिए संग,
प्रेम तो है मन में उठती मृदु तरंग।
इंसानियत की नई राहें दिखाती,
प्रेम है ईश्वर की लिखी सर्वोत्तम पाती।
निर्मल निर्झर प्रवाह है प्रेम,
अंतर्मन की ज्योति बना है प्रेम।
प्रेम नहीं अश्रु की माला का हार,
वह बना है सृष्टि का आधार।
वैराग्य की पीड़ा भी है इसमें समाहित,
सच्चे प्रेम मे तन नहीं हर मन है लिप्त।
प्रेम समर्पण का है तंत्र,
स्वज्ञान से रचित है यह ग्रंथ।
समग्रता से उदित होता है प्रेम,
आत्मसात हो सुवासित कर देता है प्रेम।
हृदय का हृदय से है संवाद,
सात्विक प्रेम ही है मन का अंतर्नाद।
✍शुभ्रा वार्ष्णेय
🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼
द्वितीय स्थान
महाराष्ट्र कलम की सुगंध
जय-जय श्री राम राम जी
23/9/2020/बुधवार
*स्नेह/प्रेम/प्रीत*
काव्य
प्रेम-भाव उपजें अंतस से
निर्विकार भाव से उतराएं।
भाव-भंगिमा हों सनेही
मगन ह्रदय से जुड़ जाऐं।
प्रेम प्रीत में रंगे सभी हम,
स्नेह संगीत से जुड़ जाऐं।
मनमीत रहें एक दूजे के,
प्रभु प्रेम प्रीत में घुल जाऐ।
पूरे सपने करें सभी के,
भगवन सबके साथ खड़े हों।
दिल अपना तो पीर पराई
दीन हीन के साथ खड़े हों।
मीत प्रीत के गीत सुनाऐं।
मधुर मधुर संगीत बजाऐं।
गौरवमय इतिहास हमारा,
आपस में हम प्रीत बढाऐं।
सबको जीवन सुखी सुहाते।
अपने अपने राग सुनाते।
आओ मिलजुल रहें प्रेम से,
प्रीतम हमको बात बताते।
स्वरचित
इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी अजेय गुना म प्र
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🌷 द्वितीय स्थान 🌷
नमन मंच
23/9/20
विषय-चित्र लेखन
नन्ही मुन्नी गुड़िया रानी।
सीख गई है प्रेम कहानी।
जीवो के प्रति प्रेम धर्म।
बता रही थी टीचर रानी।
आओ आओ मुर्गी रानी।
संग खाने की हमने ठानी।
ये लो कुछ चावल के दाने।
फिर देगे हम तुमको पानी।
फुदक फुदक करना नादानी।
बस करना मत मन की मानी।
बोली तेरी मन को है भाती।
तेरे प्रेम को मेरे मन ने जानी।
नही भाती मानव की नादानी।
मार तुम्हे खाते दुश्मन जानी।
जीना तेरा भी तो हक होता है।
बड़ा वही जो जीवन का दानी।
स्वरचित
मीना तिवारी
पुणे महाराष्ट्र
🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼
तृतीय स्थान
नमन
महाराष्ट्र क़लम के सुगंध
विषय .....स्नेह /प्रेम (चित्र )
23-09-20 बुधवार
प्रेम की रीति कहीं नहीं बिकती ,
इस विकराल जगत के बीच।
प्रेम तो उपजे अंतर मन में ,
बन मानव जन जंतू मीत ।
प्रेम की भाषा पक्षी कुल जाने ,
ना जाने मानव अब प्रीत ।
स्नेहाभाव सिसक कर रोये ,
अब धनी के परिवारों बीच।
प्रेमी तो अपनी थाली में ,
गैरों को खिलाके खाता है।
वहीं क्रूर दिल का मानव ,
अपनों की छीन ले जाता है।
मजदूरों में अभी भी दीखते ,
प्रेम के बीज पनपते हैं ।
तभी तो आके ऐसे घर में ,
पक्षी आंगन में उतरते हैं ।
स्नेह तन से नहीं झलकता ,
व्यवहारों से वो झांकता है।
. प्रेम -दीप जिस दिल में जलता ,
मानव वही प्रखरता है।
स्वरचित ...सुधा चतुर्वेदी मधुर मुंबई
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🌷 तृतीय स्थान🌷
२३/९/२०२०
बुधवार
नमन मंच
"महाराष्ट्र कलम की सुगंध"
विषय-स्नेह/प्रेम
विधा-कविता
- - - - -
* आत्मिक -भाव *
अरे! ये मुर्गी भूखी है,शायद
इसीलिए आई।
पाकर स्नेहिलअनुभूति,हर्षित
होकर आयी।
एक दूजे को देखतीं ,स्नेहिल
भरी अंखियाँ।
बच्ची के मर्म में कितनी ही
आत्मीयता।
मित्रवत्भाव,दया प्रेम का सागर
मन में उमड़ता।
अतिव्याकुल मन,कहीं मुर्गी
भूखी तो नहीं।
फिर बड़े ही प्यार से बेटी खाना
परोस रही।
देती होगी,अपने ही हिस्से का
दाना पानी ।
कितनी उदार-दिल है,अति
संवेदनशील।
ये मासूम दिल,प्रेम करुणा से
है परिपूर्ण ।
ऐसी ही सौहाद्रता सभी में हो
पास रहें चाहे दूर।
प्रज्वलित रहे प्रेमदीप,यूँ ही
रहे स्नेहिल गुरूर।
भूखे की भूख मिटे,युगों-युगोंतक
खिले सद्भावना के फूल।
* * *
*"नीलम पटेल" *प्रयागराज *
(स्वरचित,मौलिक, अप्रकाशित रचना)
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महाराष्ट्र कलम की सुगंध द्वारा आयोजित चित्र आधारित कविता लेखन में उत्कृष्ठ सृजन के लिए आपको ढेर सारी बधाई व शुभकामनाएं। महाराष्ट्र कलम की सुगंध परिवार आपके उज्ज्वल भविष्य की मंगल कामना करता है।
अनुराधा चौहान 'सुधी'
सचिव (महाराष्ट्र कलम की सुगंध)
चित्र गूगल से साभार
नमन महाराष्ट्र क़लम की सुगंध मंच
दिनांक - २३/०९/२०२०
दिन - बुधवार
विषय - स्नेह/ प्रेम
विधा - कविता
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भेज रहे उम्मीद से तुमको प्रेम गुलाब।
तुमको है स्वीकार क्या देना मुझे जवाब।।
फूल नहीं मन है मेरा कर लो तुम स्वीकार।
प्रियतम इस दीवाने पर करो तनिक उपकार।।
बदले में दे दो मुझे प्रीत का तुम उपहार।
महका दो जीवन मेरा करो सुखी संसार।।
इतनी सी है कामना पाऊं तेरा प्यार।
तेरे दिल में मैं रहूं ओ मेरे दिलदार।।
हाथ थामकर हाथ में चलें साथ हम राह।
बंधन बांधूं प्रीत की यही प्रेम की चाह।।
धूप-छाँव हो या रहे सुख-दुख की बरसात।
बीते तेरे संग में अपने दिन और रात।।
मरते दम तक हम रहें एक जान एक तन।
मर कर भी टूटे नहीं रिश्तों का बंधन।।
सरिता सागर की तरह अपना हो संगम।
धारा की तरह चलें एक साथ हमदम।।
ईच्छा है जीवन जियें सदा तुम्हारे संग।
हर मौसम हर रंग में रंगें तुम्हारे रंग।।
रिपुदमन झा 'पिनाकी'
धनबाद (झारखण्ड)
स्वरचित
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🌷प्रथम स्थान 🌷
महाराष्ट्र कलम की सुगन्ध
नमन मंच 🙏💐
दिनांक-23/09/2020
विषय-प्रेम
नयनो से दर्शन हो वह प्रेम नहीं,
नित बदलते भाव का नाम प्रेम नहीं।
मन को सुभाषित कर जाता है प्रेम,
हठ नहीं वरन साधना है प्रेम।
उन्मुक्त होकर भी स्वच्छंद नहीं प्रेम,
निर्विकार डूब जाना ही है प्रेम।
अनुभूतियों को लिए संग,
प्रेम तो है मन में उठती मृदु तरंग।
इंसानियत की नई राहें दिखाती,
प्रेम है ईश्वर की लिखी सर्वोत्तम पाती।
निर्मल निर्झर प्रवाह है प्रेम,
अंतर्मन की ज्योति बना है प्रेम।
प्रेम नहीं अश्रु की माला का हार,
वह बना है सृष्टि का आधार।
वैराग्य की पीड़ा भी है इसमें समाहित,
सच्चे प्रेम मे तन नहीं हर मन है लिप्त।
प्रेम समर्पण का है तंत्र,
स्वज्ञान से रचित है यह ग्रंथ।
समग्रता से उदित होता है प्रेम,
आत्मसात हो सुवासित कर देता है प्रेम।
हृदय का हृदय से है संवाद,
सात्विक प्रेम ही है मन का अंतर्नाद।
✍शुभ्रा वार्ष्णेय
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द्वितीय स्थान
महाराष्ट्र कलम की सुगंध
जय-जय श्री राम राम जी
23/9/2020/बुधवार
*स्नेह/प्रेम/प्रीत*
काव्य
प्रेम-भाव उपजें अंतस से
निर्विकार भाव से उतराएं।
भाव-भंगिमा हों सनेही
मगन ह्रदय से जुड़ जाऐं।
प्रेम प्रीत में रंगे सभी हम,
स्नेह संगीत से जुड़ जाऐं।
मनमीत रहें एक दूजे के,
प्रभु प्रेम प्रीत में घुल जाऐ।
पूरे सपने करें सभी के,
भगवन सबके साथ खड़े हों।
दिल अपना तो पीर पराई
दीन हीन के साथ खड़े हों।
मीत प्रीत के गीत सुनाऐं।
मधुर मधुर संगीत बजाऐं।
गौरवमय इतिहास हमारा,
आपस में हम प्रीत बढाऐं।
सबको जीवन सुखी सुहाते।
अपने अपने राग सुनाते।
आओ मिलजुल रहें प्रेम से,
प्रीतम हमको बात बताते।
स्वरचित
इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी अजेय गुना म प्र
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🌷 द्वितीय स्थान 🌷
नमन मंच
23/9/20
विषय-चित्र लेखन
नन्ही मुन्नी गुड़िया रानी।
सीख गई है प्रेम कहानी।
जीवो के प्रति प्रेम धर्म।
बता रही थी टीचर रानी।
आओ आओ मुर्गी रानी।
संग खाने की हमने ठानी।
ये लो कुछ चावल के दाने।
फिर देगे हम तुमको पानी।
फुदक फुदक करना नादानी।
बस करना मत मन की मानी।
बोली तेरी मन को है भाती।
तेरे प्रेम को मेरे मन ने जानी।
नही भाती मानव की नादानी।
मार तुम्हे खाते दुश्मन जानी।
जीना तेरा भी तो हक होता है।
बड़ा वही जो जीवन का दानी।
स्वरचित
मीना तिवारी
पुणे महाराष्ट्र
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तृतीय स्थान
नमन
महाराष्ट्र क़लम के सुगंध
विषय .....स्नेह /प्रेम (चित्र )
23-09-20 बुधवार
प्रेम की रीति कहीं नहीं बिकती ,
इस विकराल जगत के बीच।
प्रेम तो उपजे अंतर मन में ,
बन मानव जन जंतू मीत ।
प्रेम की भाषा पक्षी कुल जाने ,
ना जाने मानव अब प्रीत ।
स्नेहाभाव सिसक कर रोये ,
अब धनी के परिवारों बीच।
प्रेमी तो अपनी थाली में ,
गैरों को खिलाके खाता है।
वहीं क्रूर दिल का मानव ,
अपनों की छीन ले जाता है।
मजदूरों में अभी भी दीखते ,
प्रेम के बीज पनपते हैं ।
तभी तो आके ऐसे घर में ,
पक्षी आंगन में उतरते हैं ।
स्नेह तन से नहीं झलकता ,
व्यवहारों से वो झांकता है।
. प्रेम -दीप जिस दिल में जलता ,
मानव वही प्रखरता है।
स्वरचित ...सुधा चतुर्वेदी मधुर मुंबई
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🌷 तृतीय स्थान🌷
२३/९/२०२०
बुधवार
नमन मंच
"महाराष्ट्र कलम की सुगंध"
विषय-स्नेह/प्रेम
विधा-कविता
- - - - -
* आत्मिक -भाव *
अरे! ये मुर्गी भूखी है,शायद
इसीलिए आई।
पाकर स्नेहिलअनुभूति,हर्षित
होकर आयी।
एक दूजे को देखतीं ,स्नेहिल
भरी अंखियाँ।
बच्ची के मर्म में कितनी ही
आत्मीयता।
मित्रवत्भाव,दया प्रेम का सागर
मन में उमड़ता।
अतिव्याकुल मन,कहीं मुर्गी
भूखी तो नहीं।
फिर बड़े ही प्यार से बेटी खाना
परोस रही।
देती होगी,अपने ही हिस्से का
दाना पानी ।
कितनी उदार-दिल है,अति
संवेदनशील।
ये मासूम दिल,प्रेम करुणा से
है परिपूर्ण ।
ऐसी ही सौहाद्रता सभी में हो
पास रहें चाहे दूर।
प्रज्वलित रहे प्रेमदीप,यूँ ही
रहे स्नेहिल गुरूर।
भूखे की भूख मिटे,युगों-युगोंतक
खिले सद्भावना के फूल।
* * *
*"नीलम पटेल" *प्रयागराज *
(स्वरचित,मौलिक, अप्रकाशित रचना)
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महाराष्ट्र कलम की सुगंध द्वारा आयोजित चित्र आधारित कविता लेखन में उत्कृष्ठ सृजन के लिए आपको ढेर सारी बधाई व शुभकामनाएं। महाराष्ट्र कलम की सुगंध परिवार आपके उज्ज्वल भविष्य की मंगल कामना करता है।
अनुराधा चौहान 'सुधी'
सचिव (महाराष्ट्र कलम की सुगंध)
चित्र गूगल से साभार
सभी चयनित रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं 💐💐
ReplyDeleteमंच का हार्दिक आभार।साथी विजेताओं को भी बधाईयाँ💐💐💐💐निर्णायक मंडल का हृदय से धन्यवाद ,जिन्होंने मेरी रचना को सम्मानित किया और तृतीय स्थान प्रदान किया💐💐💐💐
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