प्रथम स्थान
महाराष्ट्र कलम की सुगंध
जय-जय श्री राम राम जी
30/9/2020/बुधवार
*सुबह/भोर*
काव्य
उठो भोर की वेला आई,
स्वर्णिम हुआ सबेरा।
अरुणाचल में दिखे दिवाकर,
अनुपम हुआ बसेरा।
कलरव सब पंछी करते हैं,
चहक उठी हैं चिड़ियां।
रक्तिम लालिमा लिए सूर्य तो,
आईं सुंदर घड़ियां।
प्रकृति प्रफुल्लित दिखती हमको,
सभी धरा हरयाली।
हलधर चले संग हल ले कर ,
चहुंओर खुशहाली।
उछल कूद करते है शावक,
छौने है मनभावन।
गैया बछड़े दूध पिलाएं,
दूध दुहें मनमोहन।
अपने अपने काम करें जब
नित्य कर्म से निबटें।
करें कलेबा अच्छा खासा,
रोटी बांध कर निकलें।
स्वरचित
इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
गुना म प्र
🏵️प्रथम स्थान🏵️
नमन मंच
दिनांक - ३०/०९/२०२०
दिन - बुधवार
विषय - भोर/सुबह/सबेरा
-----------------------------------------------
अरुणोदय की आभा लेकर निकली सुघड़ धरा पर भोर,
जागा नींद से हर जनजीवन चहल-पहल छाई हर ओर।
हरी भरी हरियाली चूनर ओढ़ के झूम रही धरती -
कलरव करते मधुर पखेरु फुदक रही चीं चीं कर शोर।
मधुर मनोहर सुबह की बेला रंग सुहानी सतरंगी,
कुदरत ने भी छटा बिखेरी मनमोहक और मनरंगी।
कलकल करती नदियां बहती झर झर झरते हैं झरने-
नील गगन में पंख पसारे चले विहग लेकर संगी।
जागा आलस छोड़ सवेरा, काली रात अब बीत गई,
हुई ऊर्जा और स्फूर्ति तन मन में संचरित नई।
जीवनपथ गतिमान हुआ कर्त्तव्य निभाने सभी चले -
दिनचर्या में लगे हैं सारे छोड़ पुरानी थकन कई।
रिपुदमन झा 'पिनाकी'
धनबाद (झारखण्ड)
स्वरचित
🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️
द्वितीय स्थान
नमन मंच
विषय _भोर /सुबह
विधा_ कविता( मेरे ख्याल)
कितने ख्याल आ जाते हैं ;
सुबह सुबह!!
जब लिखने लगता हूं
कुछ गीत कुछ मुक्तक,
कुछ गजलें कुछ नग्मे
लफ्ज़ तुममें डूब जाते है सुबह सुबह!!
कितने ख्याल आ जाते हैं!
सुबह सुबह!!
फिर सोचता हूं
कोशिश करता हूं लिख दूं
मैं वो सारी बातें
जब भोर में छाई हुई रेशमी किरणों
से अठखेली करती चिड़ियों की सुगबुगाहट
ओस की बूंदों में बसा बहारों का इश्क़
ये बहुत कुछ सिखाते है सुबह सुबह!
कितने ख़्याल ...….!
गुलाबी ठंडक में
बालकनी में चाय की प्याली
साथ तुम्हारा धुंधला सा चेहरा
हम जाने कहां खो जाते हैं सुबह सुबह!
कितने ख्याल आ जाते हैं!
सुबह सुबह!!
"कितना कठिन है तुम्हे लफ्जो में पिरोना
प्रेम की व्याख्या करना"
स्वरचित _अभिषेक मिश्रा
बहराइच
उत्तर प्रदेश
🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️
तृतीय स्थान
नमन
महाराष्ट्र क़लम के सुगंध
विषय ...भोर / सुबह
30-09-20 बुधवार
भोर हुआ सूर्योदय काल है,
सृष्टि का आधार जगा ।
भोर में उषा के संग निकला ,
अरुण को रथ सारथि बना ।
खग कुल भी जाग्रत होकर ,
कलरव ध्वनि से संचरित हुए ।
नव - रश्मि नव - लय लेकर ,
नभ चीर को देव हैं प्रकट हुए ।
रक्त लालिमा नभ देकर ,
चुनरी में भोर है सज आयी।
केसरिया रंग के बाने सी,
कुछ इठलायी कुछ मुस्कायी ।
लगता जैसे जन्म हुआ है,
सुबह रूप सूरज ऐसा ।
पर दिन भर वो तपता रहता ,
तेज ग्रीष्म यौवन जैसा ।
भोर सदा संदेशा देती ,
जागृत हो कुछ कर्म करो ।
में प्रतिदिन तुम्हें जगाती हूँ ,
तुम उठो अभी नित कर्म करो ।
स्वरचित सुधा चतुर्वेदी मधुर
. मुंबई
🏵️तृतीय स्थान🏵️
महाराष्ट्र कलम की सुगंध
विषय - भोर/ सवेरा
बाल गीत
भोर हुई अब जागो बच्चों।
निंद्रा,आलस त्यागो बच्चों।
पेड़ पर पंछी चहचहाएं,
सूर्यदेव किरणें फैलाएं।
योग कर नित रोग हटेगा,
स्वस्थ तन-मन ह्रदय रहेगा।
बड़ों का सदा शीश नवाओ,
बुजुर्गों का शुभाशीष पाओ।
ड्रेस पहनकर स्कूल जाना,
गुरुजनों को शीश झुकाना।
मन लगाकर पढ़ना-लिखना,
कभी नही किसी से डरना।
पढ़ाई में अव्वल आना,
माँ-बाप का नाम कमाना।
सत्य राह पर चलो हमेशा,
रखना ईश्वर पर भरोसा।
जीवन में नेक कर्म करें,
मात-पिता तुम पर गर्व करें।
दीन दुखी की सेवा करना,
जीवन में सदा आगे बढ़ना।
हिंदुस्तान है कितना प्यारा,
झण्डा ऊँचा रहे हमारा।
सदा देश का रखना मान,
मेरा भारत देश महान।
सुमन अग्रवाल "सागरिका"
आगरा
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सराहनीय प्रस्तुति
नमन मंच
30/09/2020
विषय-सुबह/भोर
सुहानी सुबह
**********
समेट तम की काली चादर,
रात्रि विदा हो रही है,
उगा स्वर्णिम सूरज नभ में,
रश्मियाँ धरा को सुनहरी चुनर ओढ़ा रही है।
है चारों तरफ पक्षियों की चहचहाहट,
उपवन में भी फूल विहंस पड़े हैं
रंग बिरंगी तितलियाँ,भौरों का गुंजन है
हवाओं ने भी कानों में धीरे से रस घोला है
देखो पत्तों से टपक रही ओस की बूंदें,
मानो लिपट कोई रात भर रोया है,
रहे न अश्रु कण,उसे देखने उतर रही स्वर्णिम रश्मियाँ हैं।
है प्रियतम सूरज से असीम प्यार,
पर सहन नहीं है उसका ताप
रात भर उसके मिलन को आकुल
देखो पारिजात लेकर अपना रुप और सुगंध
बिछ गई है उसकी राहों में।
यह भोर का उजाला है,,,
जीवन ने ली अंगड़ाई है।
धरा पर बिखरी है चहुँओर हरीतिमा
नदियों की मधुर कलकल की मदमस्त रवानगी है।
पनघट पर तरुणीयों का जमघट है
चूल्हे में आग दहकाती गृहणी का घर संसार है।
चला किसान अपने खेतों की ओर,
अपने स्वेद कण से बुन रहा अपने सपने हजार है।
ये सुहानी भोर है,,,सब के मन में
जीवन की अंगड़ाई है!
स्वरचित
अनिता निधि
जमशेदपुर,झारखंड
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महाराष्ट्र कलम की सुगंध द्वारा आयोजित विषय आधारित लेखन में उत्कृष्ठ सृजन के लिए आपको ढेर सारी बधाई व शुभकामनाएं। महाराष्ट्र कलम की सुगंध परिवार आपके उज्ज्वल भविष्य की मंगल कामना करता है।
अनुराधा चौहान 'सुधी'
सचिव (महाराष्ट्र कलम की सुगंध)
चित्र गूगल से साभार
महाराष्ट्र कलम की सुगंध
जय-जय श्री राम राम जी
30/9/2020/बुधवार
*सुबह/भोर*
काव्य
उठो भोर की वेला आई,
स्वर्णिम हुआ सबेरा।
अरुणाचल में दिखे दिवाकर,
अनुपम हुआ बसेरा।
कलरव सब पंछी करते हैं,
चहक उठी हैं चिड़ियां।
रक्तिम लालिमा लिए सूर्य तो,
आईं सुंदर घड़ियां।
प्रकृति प्रफुल्लित दिखती हमको,
सभी धरा हरयाली।
हलधर चले संग हल ले कर ,
चहुंओर खुशहाली।
उछल कूद करते है शावक,
छौने है मनभावन।
गैया बछड़े दूध पिलाएं,
दूध दुहें मनमोहन।
अपने अपने काम करें जब
नित्य कर्म से निबटें।
करें कलेबा अच्छा खासा,
रोटी बांध कर निकलें।
स्वरचित
इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
गुना म प्र
🏵️प्रथम स्थान🏵️
नमन मंच
दिनांक - ३०/०९/२०२०
दिन - बुधवार
विषय - भोर/सुबह/सबेरा
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अरुणोदय की आभा लेकर निकली सुघड़ धरा पर भोर,
जागा नींद से हर जनजीवन चहल-पहल छाई हर ओर।
हरी भरी हरियाली चूनर ओढ़ के झूम रही धरती -
कलरव करते मधुर पखेरु फुदक रही चीं चीं कर शोर।
मधुर मनोहर सुबह की बेला रंग सुहानी सतरंगी,
कुदरत ने भी छटा बिखेरी मनमोहक और मनरंगी।
कलकल करती नदियां बहती झर झर झरते हैं झरने-
नील गगन में पंख पसारे चले विहग लेकर संगी।
जागा आलस छोड़ सवेरा, काली रात अब बीत गई,
हुई ऊर्जा और स्फूर्ति तन मन में संचरित नई।
जीवनपथ गतिमान हुआ कर्त्तव्य निभाने सभी चले -
दिनचर्या में लगे हैं सारे छोड़ पुरानी थकन कई।
रिपुदमन झा 'पिनाकी'
धनबाद (झारखण्ड)
स्वरचित
🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️
द्वितीय स्थान
नमन मंच
विषय _भोर /सुबह
विधा_ कविता( मेरे ख्याल)
कितने ख्याल आ जाते हैं ;
सुबह सुबह!!
जब लिखने लगता हूं
कुछ गीत कुछ मुक्तक,
कुछ गजलें कुछ नग्मे
लफ्ज़ तुममें डूब जाते है सुबह सुबह!!
कितने ख्याल आ जाते हैं!
सुबह सुबह!!
फिर सोचता हूं
कोशिश करता हूं लिख दूं
मैं वो सारी बातें
जब भोर में छाई हुई रेशमी किरणों
से अठखेली करती चिड़ियों की सुगबुगाहट
ओस की बूंदों में बसा बहारों का इश्क़
ये बहुत कुछ सिखाते है सुबह सुबह!
कितने ख़्याल ...….!
गुलाबी ठंडक में
बालकनी में चाय की प्याली
साथ तुम्हारा धुंधला सा चेहरा
हम जाने कहां खो जाते हैं सुबह सुबह!
कितने ख्याल आ जाते हैं!
सुबह सुबह!!
"कितना कठिन है तुम्हे लफ्जो में पिरोना
प्रेम की व्याख्या करना"
स्वरचित _अभिषेक मिश्रा
बहराइच
उत्तर प्रदेश
🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️
तृतीय स्थान
नमन
महाराष्ट्र क़लम के सुगंध
विषय ...भोर / सुबह
30-09-20 बुधवार
भोर हुआ सूर्योदय काल है,
सृष्टि का आधार जगा ।
भोर में उषा के संग निकला ,
अरुण को रथ सारथि बना ।
खग कुल भी जाग्रत होकर ,
कलरव ध्वनि से संचरित हुए ।
नव - रश्मि नव - लय लेकर ,
नभ चीर को देव हैं प्रकट हुए ।
रक्त लालिमा नभ देकर ,
चुनरी में भोर है सज आयी।
केसरिया रंग के बाने सी,
कुछ इठलायी कुछ मुस्कायी ।
लगता जैसे जन्म हुआ है,
सुबह रूप सूरज ऐसा ।
पर दिन भर वो तपता रहता ,
तेज ग्रीष्म यौवन जैसा ।
भोर सदा संदेशा देती ,
जागृत हो कुछ कर्म करो ।
में प्रतिदिन तुम्हें जगाती हूँ ,
तुम उठो अभी नित कर्म करो ।
स्वरचित सुधा चतुर्वेदी मधुर
. मुंबई
🏵️तृतीय स्थान🏵️
महाराष्ट्र कलम की सुगंध
विषय - भोर/ सवेरा
बाल गीत
भोर हुई अब जागो बच्चों।
निंद्रा,आलस त्यागो बच्चों।
पेड़ पर पंछी चहचहाएं,
सूर्यदेव किरणें फैलाएं।
योग कर नित रोग हटेगा,
स्वस्थ तन-मन ह्रदय रहेगा।
बड़ों का सदा शीश नवाओ,
बुजुर्गों का शुभाशीष पाओ।
ड्रेस पहनकर स्कूल जाना,
गुरुजनों को शीश झुकाना।
मन लगाकर पढ़ना-लिखना,
कभी नही किसी से डरना।
पढ़ाई में अव्वल आना,
माँ-बाप का नाम कमाना।
सत्य राह पर चलो हमेशा,
रखना ईश्वर पर भरोसा।
जीवन में नेक कर्म करें,
मात-पिता तुम पर गर्व करें।
दीन दुखी की सेवा करना,
जीवन में सदा आगे बढ़ना।
हिंदुस्तान है कितना प्यारा,
झण्डा ऊँचा रहे हमारा।
सदा देश का रखना मान,
मेरा भारत देश महान।
सुमन अग्रवाल "सागरिका"
आगरा
🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️
सराहनीय प्रस्तुति
नमन मंच
30/09/2020
विषय-सुबह/भोर
सुहानी सुबह
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समेट तम की काली चादर,
रात्रि विदा हो रही है,
उगा स्वर्णिम सूरज नभ में,
रश्मियाँ धरा को सुनहरी चुनर ओढ़ा रही है।
है चारों तरफ पक्षियों की चहचहाहट,
उपवन में भी फूल विहंस पड़े हैं
रंग बिरंगी तितलियाँ,भौरों का गुंजन है
हवाओं ने भी कानों में धीरे से रस घोला है
देखो पत्तों से टपक रही ओस की बूंदें,
मानो लिपट कोई रात भर रोया है,
रहे न अश्रु कण,उसे देखने उतर रही स्वर्णिम रश्मियाँ हैं।
है प्रियतम सूरज से असीम प्यार,
पर सहन नहीं है उसका ताप
रात भर उसके मिलन को आकुल
देखो पारिजात लेकर अपना रुप और सुगंध
बिछ गई है उसकी राहों में।
यह भोर का उजाला है,,,
जीवन ने ली अंगड़ाई है।
धरा पर बिखरी है चहुँओर हरीतिमा
नदियों की मधुर कलकल की मदमस्त रवानगी है।
पनघट पर तरुणीयों का जमघट है
चूल्हे में आग दहकाती गृहणी का घर संसार है।
चला किसान अपने खेतों की ओर,
अपने स्वेद कण से बुन रहा अपने सपने हजार है।
ये सुहानी भोर है,,,सब के मन में
जीवन की अंगड़ाई है!
स्वरचित
अनिता निधि
जमशेदपुर,झारखंड
🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️
महाराष्ट्र कलम की सुगंध द्वारा आयोजित विषय आधारित लेखन में उत्कृष्ठ सृजन के लिए आपको ढेर सारी बधाई व शुभकामनाएं। महाराष्ट्र कलम की सुगंध परिवार आपके उज्ज्वल भविष्य की मंगल कामना करता है।
अनुराधा चौहान 'सुधी'
सचिव (महाराष्ट्र कलम की सुगंध)
चित्र गूगल से साभार
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