Tuesday, October 20, 2020

पिता


 प्रथम स्थान

नमन महाराष्ट्र क़लम की सुगंध मंच

दिनांक - १६/१०/२०२०

दिन - शुक्रवार

विषय - पिता

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छाँव तरुवर के पिता, मंद शीतल हैं पवन।

धीर धरते ज्यों धरा, पिता विस्तृत सा गगन।।


होते ना विचलित पिता, रहते धीर गंभीर।

कठिन समय में भी नहीं, होते कभी अधीर।।


पिता गुरु संतान के, देते हैं जो ज्ञान।

जग में दिलवाते सदा, स्वाभिमान सम्मान।।


दुःख अपने संतान हित, सहते रहकर मौन।

पिता सिवा इस जगत में, ऐसा करता कौन।।


जीवन आंधी में जले, दीपक सा दिन रात।

दुःख के मरुथल में करें, खुशियों की बरसात।।


आजीवन करता रहूं, पूरण अपने कर्म।

पिता मुझे आशीष दें, सदा निभाऊं धर्म।।


पथ-प्रदर्शक हैं पिता, पुण्य के हैं परिणाम।

पिता शिल्पी पुरुष हैं, उनको करें प्रणाम।।


रिपुदमन झा 'पिनाकी'

धनबाद (झारखण्ड)

स्वरचित

🏵️ प्रथम स्थान🏵️

नमन मंच 🙏

विषय-पिता

विधा-कविता

दिनांक-१६/१०/२०२०


जब मायके से विदा होती थी 

मैं हर बार

पिता रखते थे मेरी मुट्ठी में कुछ रुपए

चुपचाप...….

मैं देर तक उन्हें भींचे रहती थी

मुझे पता था

ये सिर्फ कुछ रुपए नहीं थे

ये पिता के हृदय की अकुलाहट थी

कि उनकी बेटी उपेक्षित न रहे...

ये पिता की मासूम संतुष्टि थी

कि उनकी बेटी को कुछ कमी न हो...

ये पिता की निरीह सी परवाह थी

कि नज़रों से दूर बेटी सुरक्षित रहे...


मैं मुट्ठी में भिंचे वो भीगे रुपए

रखती थी पर्स में

बगैर गिने....

मैं उन्हें यथासंभव खर्च नहीं करती

मुझे पता था

वे मेरे लिए सिर्फ कुछ रुपए नहीं

बल्कि मेरी आश्वस्ति थे.....

मेरे पिता के मजबूत साये की आश्वस्ति.....!!✍️✍️


                      प्रतिभा पाण्डेय प्रयागराज उत्तर प्रदेश

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द्वितीय स्थान

कविता-पिता

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अंगुली पकड़ चलना सिखाया,

कभी गोद ले,आकाश दिखाया,

खुद रोया पर बच्चे का हंसाया,

वो जग में बस पिता कहलाया।


मां धरती है, पिता है आसमान,

युगों से रही, पिता से पहचान,

मां का आंचल, पिता का साया,

ईश्वर रूप में ही, बच्चे ने पाया।


मां स्वर्ग सुख , पिता देवलोक,

दोनों के बल ,मिले सुख भोग,

माता रोती है, पिता नहीं सोता,

कैसा अजब है, जगत संजोग।


मां का दर्द तो, हर जन जानते,

पिता का दर्द, नहीं पहचानते,

हम ठीक हैं, सदा ही कहते हैं,

परंतु दुख दर्द, दोनो ही जीते हैं।


राजा जनक भी, पिता कहलाये,

सीता हंसी तो, वो भी मुस्कुराये,

बेटी का दर्द तो पिता को सताये,

विदा होती जब,दर्द में डूब जाये।


पिता के सिर, परिवार का बोझ,

जीये दुख दर्द में, वो तो हर रोज,

जिये मेरा पिता, करूं प्रार्थना रोज,

पिता के बिन, नहीं मिलती मौज।।

************************

स्वयं रचित, नितांत मौलिक रचना

************************

*होशियार सिंह यादव

मोहल्ला-मोदीका, वार्ड नंबर 01

कनीना-123027 जिला महेंद्रगढ़ हरियाणा

फोन 09416348400

🏵️ द्वितीय स्थान 🏵️

नमन मंच

16/10/2020

पिता


पिता हमारे सघन छाया

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पिता हमारे जीवन के हैं वटवृक्ष

मिलती है उनसे हमें सघन छाया

जीवन की तपिश को ठण्ढक देते

कठिन चुनौतियों में ढाल बन जाते

संघर्ष और परेशानी की आंधियों से

लड़ने की तलवार हैं वो

करते हैं हमारे कठिन राहों को सुगम

और हमारे जीवन को करते हैं उज्ज्वल

पिता से ही हमारी माँ की हँसी है और

हम बच्चों के हास विलास हैं

पिता हम बच्चों के लिये एक उम्मीद और आस हैं

बचपन को खुश करता एक खिलौना हैं

बाज़ार का हर खिलौना पिता से ही हमारी है

पिता हमारी जागीर हैं

यह जागीर जिसके पास है

वो दुनिया का सबसे बड़ा अमीर है

पिता परिवार के एक तपस्वी हैं

हमारे जीवन के खेवनहार हैं

धरती पर पिता ईश्वर का प्रतिरूप हैं

इसलिये कर लो पिता की सेवा

और अपनी झोली भर लो पुण्य की मेवा!


स्वरचित

अनिता निधि

जमशेदपुर,झारखंड

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तृतीय स्थान

नमन 

महाराष्ट्र क़लम की सुगंध 

16-10-20 

विषय ...पिता 


पिता होता परिवार का सुखमय पालनहार , 

बिना पिता के प्यार के सूना सब संसार।  

पिता अपने परिवार की छत्रछाया होता है , 

इसकी मेहनत लगन से ही सबका पालन होता है । 


उनका होता परिवार में बरगद सा स्थान , 

अपने बच्चों के लिए आन बान और शान । 

पिता बिना संसार में सबका रूप अनाथ , 

पिता की सेवा सब करो जान उन्हें भगवान । 


जो बच्चे है ना करें उनका आदर मान , 

उन बच्चों के त्याग में ना कोई अपराध 

अपने जीवन का पार्जन देता बेटे को जान , 

वहीं बेटा उनको करवाता वृद्धाश्रम पहचान । 


पत्नी का श्रृंगार है पिता धर्म का मूल , 

परिवारी हितकार है ना करता कभी गरूर । 

सारा जीवन कोल्हू बन करता धन का मान , 

उसी पिता का वृद्ध बन होता घोर अपमान । 


पिता की सेवा सब करो उसमें मान गुरूर , 

देव बनो या ना बनो मानव बनो जरूर। 

जिसके मन प्रज्ञा जगे पिता के प्रति विनीत , 

उसी डाल पर फल लगें मधुर मिले आशीष । 


स्वरचित ....सुधा चतुर्वेदी ' मधुर ' 

                       मुंबई

🏵️ तृतीय स्थान🏵️

मंच को नमन

विषय:पिता

दिनांक:१६-१०-२०

वो है मेरे पिता.......


मेरे हर जर्रे जर्रे में है वो है मेरे पिता!

मेरे खून के हर कतरे व मेरी धडकन में है 

वो है मेरे पिता!!


मेरे ह्रदय मेरे जीवन मेरे मन मस्तिष्क में बिराजमान है 

वो है मेरे पिता!!


मेरी साँस मेरी रग रग में है वो है मेरे पिता!!

मेरे सर्जक मेरी परवरिश मेरी परवाह करने 

वाले परवरदिगार 

वो मेरे पिता!!


मेरा प्रतिबिंब !मेरी परेशानी से परेशान अन्दर से 

अपितू हिम्मत देने वाले 

वो है मेरे पिता!!


मेरी प्रगती के परिक्षक प्रतीक्षा रत रहते थे

वो है मेरे पिता!

मेरी खुशियों में खुश पर मेरी मायूसियों को

खुशियों में तब्दिल करने वाले  

वो मेरे पिता!!

स्वरचित:अशोक दोशी

7331109258

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सराहनीय प्रस्तुति

1️⃣

मंच को नमन

विषय-पिता

16/10/2020े

एक पेड़ गुलमोहर का


लगाया था एक पेड़

लाल गुलमोहर का

घर के आँगन में

अपने ही हाथों से


आपकी याद में पिताजी

 खड़ा है मेरे साथ आज भी

जैसे आप खड़े रहते थे

अपनत्व की छाँह लिए


अपलक निहारते थे आप जिस तरह

निहारती हूँ हरदम मैं लाल गुलमोहर

झड़ते हैं लाल लाल फूल वैसे ही

झड़ते थेआशीर्वचन मुख से आपके


सिखाया आपने वह बताता गुलमोहर

तपती गर्मी में तप निखरता गुलमोहर

मौसम है पतझड़ का,मुश्किलें बड़ी हैं

आशाओं की कोंपलें आज भी हरी हैं।


स्वरचित

आनन्द बाला शर्मा

9709013288

2️⃣

नमन मंच

विषय-पिता


पिता

वो शख्स

सपनो की खातिर

जो तपाता खुद को

बेचता स्वयम को

समय की परिधि से बांध

पाने को छोटी मुस्कान

एक उम्मीद

एक आस,घर की साँस

टिका होता घर

पाकर उसका विश्वास

फौलादी ह्रदय

दफन मर्म

सपनो की जान

घर की पहचान

बच्चो का खिलौना

प्यार का बिछौना

हौसलों की दीवार

साहस ताकत और अभिमान

शान ,आन ,मान

रिश्तो की जान

माँ आंखों की ज्योति

पिता आंखों का तारा

पिता से घर की रौनक

माँ के चेहरे की आभा

संघर्ष शील 

खाली जेब होते हुए

सपनो की उड़ान पूरी करने वाला

पिता से अमीर

इंसान नही देखा

पिता का प्यार

न समझ सका कोई

उससे हारा

इंसान नही देखा


स्वरचित

मीना तिवारी

पुणे महाराष्ट्र


3️⃣

नमश मंच

विषय - पिता


पिता होते परिवार के सूत्रधार

पापा ही होते घर के पालनहार

आपसे हमें बहुत प्यार मिला है

आपसे मिले हमें अच्छे संस्कार

पिता होते विशाल वृक्ष की तरह

जो बच्चों को छाया देते अपार

पिता के साथ रहकर बच्चे खुद को 

सुरक्षित महसूस करते है बार-बार

उंगली पकड़कर चलना सिखाया

जीवन में सही राह आपने दिखाया

हर मुश्किल में परछाई बने आप

जीवन भर अपना फर्ज निभाया

पापा आप ही मेरे मार्गदर्शक बने

मेरे मन में हौसला आपने बढ़ाया

कामयाबी हासिल करके दिखाउंगी

बुलंदियों को छूने का अरमान जगाया

जिंदगी की कसौटी पर खरा उतरूँगी

आपका नाम जग में रौशन करूँगी

ऊंचाइयों के शिखर पहुँचना मुझको

आपने इतना आत्मनिर्भर बनाया

पापा आपसे ही बस मेरा वजूद है

मुझको अपने पापा पर गरूर है।


सुमन अग्रवाल "सागरिका"

           आगरा

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महाराष्ट्र कलम की सुगंध द्वारा आयोजित विषय आधारित लेखन में उत्कृष्ठ सृजन के लिए आपको ढेर सारी बधाई व शुभकामनाएं। महाराष्ट्र कलम की सुगंध परिवार आपके उज्ज्वल भविष्य की मंगल कामना करता है।


अनुराधा चौहान 'सुधी'

सचिव (महाराष्ट्र कलम की सुगंध)

चित्र गूगल से साभार




Friday, October 16, 2020

लहरें

प्रथम स्थान
मंच को नमन
विषय :लहरें 
दिनांक:१५-१०-२०२०

लहरें लहरें होती है मन की हो चाहे जल की
दोनों में विविधता में एकता है !
एक वैचारिक वयाव्य का परिणाम 
और दूसरी का कारण भौतिक नैसर्गिक 
वयाव्य है !!!
समंदर में उठती 
जल लहरों में और मन में उठे वैचारिक  
लहरों में काफी साम्य है !
एक ऊपर उठ उठ कर 
मानों आसमान छूनें के प्रयास में रहती रत 
दिन रात रम्य है!!
ठीक विपरीत स्तर हो तो तबाही से बिठाते तारतम्य है!!! 

क्रमशः दूसरी लहरें भी कम नहीं
भूतल से ब्रह्मांड तक पहुंचने 
का साहस अदभुत और अदम्य है!!

समंदर अनंत है तो मन सोच का जखीरा भी असीम अत्यंन्त सतत है!!!
मन की लहरों का 
साम्य सामान्य जल भराव या तलाब की लहरों 
से भी कर सकते जो अल्पकालीन तरंगी आवेग सहनीय 
सकारात्मक है तो क्षम्य है!
वही नकारात्मक मन लहरें 
नुकसान दायक और अक्षम्य है!! 

स्वरचित:अशोक दोशी
सिकन्दराबाद
७३३११०९२५८
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द्वितीय स्थान
नमन मंच- महाराष्ट्र कलम की सुगंध
तिथि-15/10/2020
विषय-लहरें

जब भी मैं देखती हूँ सागर को
कई भाव उठते हैं मन में
बैठ किनारे रेत पर
देखती रहती हूँ सागर को
कितना अथाह,,,कितना विशाल
दूर-दूर तक फैला उसका विस्तार
दिखता नहीं है कोई ओर छोर 
मचलती लहरें,,,होतीं विचलित 
आती टकराती हैं किनारों से
ना जाने क्या कहती है वो
मिलता जैसे नहीं है कोई जवाब
फिर ये लहरें दूर छिटक जाती हैं
किनारे बैठ मैं देखती इसका नर्तन
है उसमें कितना भीषण गर्जन
शान्त समुन्दर में  है कितना कोलाहल
मानों उद्वेलित हैं उसके भाव
आकर किनारों से क्या कहती हैं ये लहरें?
है कितनी बेचैन,सर टकराती हैं किनारों से
आखिर क्या कहती हैं ये लहरें?

स्वरचित
अनिता निधि
जमशेदपुर,झारखंड
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तृतीय स्थान
नमन 
महाराष्ट्र क़लम के सुगंध 
विषय ....लहरें 
15-10-20 गुरुवार 

सागर की लहरों को देखूँ , 
तो मन विचलित हो जाता है़ । 
लहरें आती हैं मचल मचल , 
पर केवल भिगो वो जाता है। 

जाने के बाद कचरा छोड़े , 
या छोड़े कोई अन्य वस्तु । 
पर हानि कुछ ना वो देता , 
लहरों का खेल दिखाता है। 

मन में मेरी लहरें उठतीं , 
तूफ़ान हृदय में मच जाये । 
सब उथल पुथल मन में होता , 
अन्तर्मन दुःखित हो जाये । 

ये जग बदला मानव बदला , 
सब रीति प्रीत की बदल गयीं । 
स्वारथ पर तुला हुआ मानव , 
संवाद की भाषा बदल गयी । 

लहरें चिन्तन की उठ जायें , 
मन में तूफ़ान सा आता है । 
कोरोना आया क्या इसीलिए , 
ये लहर व्यथा की लाया है। 

स्वरचित सुधा चतुर्वेदी मधुर 
   . मुंबई
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सराहनीय प्रस्तुति
1️⃣
महाराष्ट्र कलम की सुगंध
15 अक्टूबर 2020
विषय-लहरें
विधा-कविता
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लहरें उठे मन में कभी, 
छू लेती हैं मन का छोर,
उथल पुथल मच जाती,
नाच उठता है मन मोर।

लहरें उठे जब समुद्र में,
आएगा कोई भी तूफान,
पेड़ पौधे सब नष्ट होते,
तबाह हो जाते मकान।

लहरें उठे कवि के मन,
ले डालेगा वो बड़ा गीत,
पढ़कर उसका गीत जन,
मन में जागेगी एक प्रीत।

लहरें उठे औरत मन में,
कर सकती बड़ा विनाश,
सब कुछ तबाह हो जाए,
कठिन हो जाता है सांस।
***********************
स्वरचित नितांत मौलिक रचना
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*होशियार सिंह यादव
मोहल्ला-मोदीका, वार्ड नंबर 01
कनीना-123027 जिला महेंद्रगढ़ हरियाणा
 2️⃣
नमन मंच
विषय- लहरें
दिनांक 15-10-2020
विधा-कविता

बड़ी मन मोहिनी होती हैं, 
समन्दरी लहरें|
अथाह जल की उथल पुथल , 
ही होती लहरें|
समुद्र की प्रभुता का हैं, 
 प्रतीक ये लहरें|
असंख्य शेरों की गर्जना, 
लिए गरजती लहरें|
जल, के जलजले का 
उनवान, बनाती लहरें
बड़ी बेलगाम उद्दाम, 
ये होती लहरें|
खारा पन विश्व का पीकर, 
बनती खारी लहरें|
किसी कवि की कल्पना, 
भी होती लहरें|
काव्य की प्रेरणा होती, 
हैं ये लहरें|
चांद को छूने का प्रयास, 
करतीं लहरें|
पूर्णमासी की रात में
दीवानगी दिखाती लहरें|
समन्दरों में तुफान ये, 
उठाती ये लहरें|
सबके मनोरंजन के लिए, 
लहर लहर लहराती लहरें|
सुनामी लाके कहर, 
मचाती लहरें|
घरों को सड़कों आदमी को, 
निगल जाती लहरें|
किसी मछेरे, जहाज,सैलानी की, 
नहीं होती लहरे|
वक्त आने पर ये सबको, 
चबा जाती लहरें|
गये नाविक नाव लिए उनको, 
निगल जाती ये लहरें|
आके सागर से टकरा, 
के बिखर जाती हैं|
और नागिन तरह साहिल, 
को डसती लहरें|
रात दिन आठो पहर, 
आती और जाती लहरें|
देखने में ये हसीन लगती हैं, 
पास आने पे सताती लहरें|
इनके तट पर इतिहास, 
का बसेरा है|
बदलते वक्त का हर, 
सांझ और सवेरा है|
स्वरचित 
सर्वाधिकार सुरक्षित
 विजय श्रीवास्तव 
बस्ती
 दिनांक-15-10-2020
3️⃣
महाराष्ट्र कलम सुगंध
जय-जय श्री राम राम जी
15/10/2020/गुरुवार
*लहरें*
काव्य

लहरें उठती रहती
अथाह समंदर की
अगाध जलराशि में
हमारे मन मानस में
उमंग की हिलोर
कभी उन्मुक्त लहर।
हृदय की हूक से
उपजती
खुशी की लहर
कभी गुस्से की सनक
सभी मानसिकता
से प्रेरित
हमारे मनोविकार अथवा
मानसिक उ‌दिग्न उदगार
ईश्वरीय उपहार
लहरों से सरकार
हमारी संस्कृति संस्कार
सनातन सत्कार
सुन्दर प्रसन्नता की
उपजती लहर।

स्वरचित
इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी अजेय गुना म प्र
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महाराष्ट्र कलम की सुगंध द्वारा आयोजित विषय आधारित लेखन में उत्कृष्ठ सृजन के लिए आपको ढेर सारी बधाई व शुभकामनाएं। महाराष्ट्र कलम की सुगंध परिवार आपके उज्ज्वल भविष्य की मंगल कामना करता है।

अनुराधा चौहान 'सुधी'
सचिव (महाराष्ट्र कलम की सुगंध)

चित्र गूगल से साभार

Thursday, October 15, 2020

शरारत


 प्रथम स्थान

नमन महाराष्ट्र क़लम की सुगंध मंच

दिनांक - १४/१०/२०२०

दिन - बुधवार

विषय - शरारत

विधा - छंदमुक्त

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मेरी छोटी सी गुड़िया

खिलती है खिलखिलाती है

हंसती है मुस्काती है

चहकती है गुनगुनाती है

मचाती है धमा-चौकड़ी दिन भर

नापती है कभी

अपने नन्हे नन्हे कदमों से पूरे आंगन को

लहराती है तितलियों की तरह

आती है पास कभी

कभी छुप जाती है किसी कोने में

दूर से ही मुस्कुराती है।

जब आता है मुझ पर प्यार उसे

झूलती है बाहों में मेरे आकर

चढ़ती है कांधे पर।

सांसें खींच खींच कर

तोतली बोलियों से सुनाती है कहानी

राजकुमार और राजकुमारी की

गढ़ती है कभी किरदार नये नये।

देखकर मम्मी को करते साज सिंगार

सजती है वो भी आईने के सामने

लगाती है पाउडर चेहरे पर

आंखों में काजल और लिपस्टिक होंठों पर

रंगती है पैरों को आलते से

नेलपॉलिश लगाती है नाखूनों में

दुल्हन बनी इठलाती है।

रहूं जो सोया हुआ कभी मैं तो

सजाती है मुझे भी अपनी तरह

पाउडर, लिपस्टिक, काजल से

ख़ुश होती है बहुत मेरा सिंगार करके

मचाती है उधम पूरे घर में

फुदकती है चिरैये सी

करती है शरारत सुबह-शाम

देखूं जो उसे अपलक लाड़ से

बाहों में सिमट जाती है लाज से

मंत्र-मुग्ध हो देखता हूं उसकी शरारतें

और पुलकित हो सराहता हूं अपने भाग्य को।


रिपुदमन झा 'पिनाकी'

धनबाद (झारखण्ड)

स्वरचित

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द्वितीय स्थान

महाराष्ट्र कलम सुगंध

जय-जय श्री राम राम जी

14/10/2020/बुधवार

*शरारत*

स्मृति पटल पर अंकित

बाल्यावस्था की 

वो अगणित शरारतें

बिखर जाती हैं 

कभी मन मानस पर

मीठी तोतली बोली कुछ इठलाती प्यारी सी

झलकियां तुम्हारी

अद्भुत पहेली बदले खेल के तरीके गिल्ली डंडे

सितोलिया कपड़ों की गेंद

पत्थरों से खेलना।

लुकाछिपी पेड़ों के झुरमुट में छिपना।

कहीं बगिया के सुमन तोड़ फल चुराना खाना

कान पर भोंपू बजाकर

सोते को जगाना।

मां के आंचल में छिपकर

झूठे टसुऐ बहाना।

बिलखना शरारत कर

बाल खींचना पानी उड़ेलना 

बरसात में भीगना छतों पर नाचना

याद आती है चलचित्र सी

हमें तुम्हारी वो शरारतें।


स्वरचित

इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी अजेय

गुना म प्र


🏵️द्वितीय स्थान🏵️

नमन मंच

विषय-शरारत

विधा-छंदमुक्त


याद आता तेरा

वो बीता लम्हा

कदमो की आहट

शरारत के नयन

मुस्कराता चेहरा

बुदबुदाते ओठ

अस्पष्ट शब्द

तुतलाती भाषा

मीठी सी भाषा

प्यार की झलक

लुका झिपी का खेल

हारने के डर

दौड़ कर पकड़ना

न पाने का डर

नयनो में चमक

पाने का असर

आंसुओ को पोछ

प्यार का चुम्बन

आँचल में सिमट

माँ का प्यार शब्द...

स्वरचित

मीना तिवारी

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तृतीय स्थान 

महाराष्ट्र क़लम की सुगंध

विषय ....शरारत

14-10-20 बुधवार


ये छोटी प्यारी सी गुड़िया 

अपना एक खेल खेलती है।

मुर्गी को रस्सी संग बांधे ,

परेशान है़ उसको करती है़ ।


टोकरी में उसे छिपायेगी 

बचपन की शरारत होती हैं ।

मुँह पर ऊँगली है वो रखती ,

डरती नहीं हमें डराती है।


 ये जीवन का आनंदमयी 

बचपन एक हिस्सा होता है़ ।

हर व्यक्ति अनुभवी बने ,

ये काल सुनहरा होता है़ ।


बचपन की शरारत चंचल होतीं 

कुछ भय ना शर्म कभी होती।

माँ बाप भी कुछ नहीं कहते हैं ,

ये बच्चों की लीला होतीं ।


इन लीला से ना प्रभु बचे 

जाने कितनी लीला हैं कीं ।

लीलाधर जब ही नाम पड़ा ,

जीवन में शरारत भरी पड़ी ।


स्वरचित   सुधा चतुर्वेदी मधु

     .        मुंबई

🏵️तृतीय स्थान🏵️

नमनमंच संचालक ।

महाराष्ट्र कलम की सुगन्ध।

विषय - शरारत

विधा-सायली छन्द

स्वरचित ।


शरारतें

बदल गयीं 

समय के साथ 

बच्चा बड़ा 

आज।। 


बच्चे 

शरारतों से

मन जीत लेते

विषाद में 

मुस्कुराहट।। 


शरारतें

पति-पत्नी 

जीवन्त कर देतीं

रस भर

सरस।। 


प्रीति शर्मा "पूर्णिमा"

14/10 /2020

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सराहनीय प्रस्तुति

1️⃣

मंच को नमन

विषय:शरारत

दिनांक:१४-१०-२०२०


"शरारत" बहुधा बचपन और जवानी के गठजोड़ का शुभ संकेत 

और यह ही उसकी अमृत बेला है!!


जैसे ही वान प्रस्थ में प्रवेश करता है

आदमी

जवाबदारियों के बोझ बीच तले 

'शरारत" का 

खत्म हो जाता खेला है!! 


फिर पुनः बुढ़ापे में पुनरागमन होता है 

शरारतें और बढ जाती है 

किसी किसी की मस्ती

चढ जाता फिर उसका रंग रेला है!!

 

वैसे भी कहते ही है 

बुढापा बचपन का पुनरागमन होता है 

ज्यों ही खत्म होता जीवन का 

झमेला है! 


हल्की सी मस्ती फिर आदत 

का हिस्सा बन जाता 

समय निकालना कठिन होता जब आदमी अकेला है!!

वैसे यह सुख सम्मपन्नता का धोतक 

और चोला है!! 

मुफलिसी में मस्ती शरारत कहां रहती है 

अकसर

जहां उदासी का डेरा है!!


पर एक बात जानने योग्य है 

शरारत की असिमा अतिरेक बेहूदापन 

के साथ बिभस्ता का संगम हो तो 

फिर यह अशोभनीय और बेस्वाद अरूचिकर और स्वाद में कटू न सही पर कसैला है !!

हर किसी से पाचन नहीं होता 

यह वही कर सकता है जो मन का 

मटमैला है!! 


स्वरचित :अशोक दोशी

७३३११०९२५८

2️⃣

नमन मंच

विषय- शरारत

दिनांक-14-10-2020

मस्ती भरा हुआ ये बचपन का सफर है|

बचपन हर कदम पर शरारत की डगर है|

मुर्गे ने क्यों आज बाग ही नहीं दिया, 

मुर्गे से यूँ पूछना बचपने का असर है|

उंगली के इशारे से चुप रहने को कह रहा, 

आवाज से मुर्गे के भाग जाने का डर है|

शरारत भी जिसकी सबके दिल को जीत ले, 

वो प्यारी दुलारी न्यारी बचपने की उमर है|

यू ही रहे खुशहाल तू है इस देश का भविष्य, 

 तुझपे कुर्बान हम सभी का दिल व जिगर है|

स्वरचित 

सर्वाधिकार सुरक्षित

 विजय श्रीवास्तव बस्ती

 दिनांक14-10-2020

3️⃣

नमन मंच

१४/१०/२०२०

विधा _मुक्तक

विषय_शरारत

मुझे हक है कि तुझे और मुहब्बत कर लें 

ख़ुदा बना के तुझे, दिल में इबादत कर लें 

पत्थरों को भी वफ़ा फूल बना देती है!

पास आ जाओ तो थोड़ी सी शरारत कर लें

स्वरचित_अभिषेक मिश्रा

बहराइच उत्तर प्रदेश

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महाराष्ट्र कलम की सुगंध द्वारा आयोजित विषय आधारित लेखन में उत्कृष्ठ सृजन के लिए आपको ढेर सारी बधाई व शुभकामनाएं। महाराष्ट्र कलम की सुगंध परिवार आपके उज्ज्वल भविष्य की मंगल कामना करता है।


अनुराधा चौहान 'सुधी'

सचिव (महाराष्ट्र कलम की सुगंध)

चित्र गूगल से साभार

Tuesday, October 13, 2020

सड़क


 प्रथम स्थान

नमन मंच
महाराष्ट्र कलम की सुगंध
विषय सड़कें
दिनांक १३/०३/२०

मेरी नई कविता
"सड़कें"

जीवन की यह आपाधापी
हम लोगों से भरती सड़कें
जानें क्यों है भागी जाती?
तनिक कहां है ठहरती सड़कें।

पर्वत पे जो चढ़ती सड़कें
वहां से नीचे उतरती सड़कें
सांप सीढ़ी का खेल दिखाती
तीखे मोड़ों पे कटती सड़कें।

मेरे शहर से गुजरती सड़कें
शहर में उसके निकलती सड़कें
गली में उसकी जाकर देखा
ठंडी आहें भरती सड़कें।

कहीं धूप में जलती सड़कें
सैलाबों में बहती सड़कें
कहीं है माया साहब जी की
सड़कों पे खद्दे,खद्दों में सड़कें।

पेट सभी का भरती सड़कें
हर साल जो बनती सड़कें
कुछ बन जाती बस कागज पर
पार्टी फंड में पड़ती सड़कें।

कहीं कहीं दो मिलती सड़कें
मिल के दूर निकलती सड़कें
चौराहे पर ढूंढा करता
मेरे हिस्से ठहरती सड़कें।

बारिश में पर्वत के ऊपर
देखो बड़ी फिसलती सड़कें
देख भाल के कदम बढ़ाना
पानी से है दरकती सड़कें।

कहीं कहीं पुल भी मिल जाते
नदी नालों से गुजरती सड़कें
इस पार से कुछ उस पार चले हैं
पथिक बदलते ठहरती सड़कें।

मधुकर वनमाली
मुजफ्फरपुर बिहार
स्वरचित एवं मौलिक
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द्वितीय स्थान
नमन मंच
विषय- सड़क
13/10/2020

मिलकर कईं छोटे रास्तों से
बनकर आगे बढ़ जाती
पगडंडियां भी आकर मिलती
छोटे से हर मोड़ पर
आकर के ये मुड़ जाती
जैसे जिंदगी की राह पर
चलने को ये आ जाती
सड़क और राह जीवन की
नजर एक सी आती
दुख और सुख होते जीवन में
सड़कें भी हिचकोले खाती
और कईं जगह है चमचमाती
जैसे दुख जीवन में आते
वैसे गड्ढे सड़कों में होते
कुछ छोटे कुछ बड़े मिल जाते
जैसे कुछ दुख कम कुछ
दर्द ज्यादा दे जाते
सुख जैसे आते जीवन में
जैसे सड़क है चमचमाती
दोनों में है आपाधापी
एक वाहनों से अटी पड़ी है
दूजी मैं है जिम्मेदारी
सड़क जिदंगी है एक सी
मोड़ अचानक दोनों में आते
कुछ दुर्घटनायें घट जाती 
कुछ बच कर निकल है जाती
यही है खेल जिंदगी का भी
सड़क जिंदगी एक सी लगती
©®धीरज कुमार शुक्ला "दर्श"
झालावाड़ ,राजस्थान
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तृतीय स्थान
नमन मंच
विषय-सड़क
विधा-छंदमुक्त


न होती कभी ब्यथित
न ही कभी आहत
न करती कभी विलाप
न ही कोई आलाप
न दिखाती है उन्माद
न रोना न ही मुस्कराना
सङ्ग परिस्थितियों के
करना समझौता
चलती ही रहती अपने सफर में
निरंतर सन्तुलित प्रभाव में
शामिल होती हर किसी के 
सुख दुख में
देती साथ सभी को
समान रूप से
वर्षो से एक ही एहसास के सङ्ग
दौड़ रही है एक ही रास्ते पर
जन्मों जन्मों से
हादसों पर हादसे होते है
कुछ लोग दोषी उसे कहते है
न कोई दर्द न लगाव
जीती है लेकर सन्तुलित जीवन
ओ सड़क तुझे देख
याद आ गया
एक श्लोक
महान पुरुषो पर सुख दुख लाभ हानि पर कोई प्रभाव नही पड़ता
तू भी उनमे से है.......

स्वरचित
मीना तिवारी
🏵️तृतीय स्थान🏵️
नमन मंच 🙏 
महाराष्ट्र क़लम की सुगंध 
विषय ....सड़कें 
13-10--20    
          
गांवो की जिन्दगी की , 
जीवन रेखा होती हैं ऐसी सड़कें । 
एक छोर से दूसरे छोर तक , 
लहराती हैं ये सड़कें .। 
जिन्दगी की राहों की तरह , 
सरल सहज नहीं होतीं ये । 
कहीं टेढ़ी मेढ़ी कंकरीली कटीली , 
कहीं दलदल भरी कहीं पथरीली । 
इस पेट की खातिर यहाँ रहना , 
भी चुनना पड़ता है़ । 
अपनी तो अपनी पशुऑ को, 
भी भुगतना पड़ता है़ । 
इन साँप सी लहराती सड़कों , 
पर लड़खड़ाते जानवर । 
अगर जीना है पेट भरना है़ तो, 
सभी खेलेंगे जान पर। 
ये हीं लम्बी साँप सी सड़कें , 
चौराहे तक ले जातीं हैं । 
जहाँ पर सारी सड़क हैं मिलतीं , 
हमको वहाँ पहुंचाती हैं । 
आज ये अब सूनी गति में हैं , 
देखों कैसी हैं शून्य पड़ी । 
कोरोना का काल भयंकर , 
सड़कें हैं वीरान पड़ी । 
आशा है़ ये दिन जायेंगे 
फिर खुशहाली आयेगी , 
सड़कों पर फिर रौनक होगी । 
मेले सी दिख पायेंगी ...

स्वरचित ....सुधा चतुर्वेदी ' मधुर ' 
                 मुंबई
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सराहनीय प्रस्तुति
1️⃣
नमन् मंच
विषय-सड़क
दिनांक 13-10-2020
विधा-कविता

अच्छे भी गुजरते हैं|
बुरे भी इस पे गुजरते हैं|
ये सड़क है इससे , 
सारे ही गुजरते हैं|

बारातें भी जाती हैं|
अर्थियाँ भी जाती हैं|
जिसे वक्त भेजता है|
वो सब ही गुजरते हैं|

पत्थर का कलेजा भले, 
इस सड़क का होता है|
मगर हर हादसे पे इसके, 
दिल खूब धड़कते हैं|

बरसात के गढ़े इसके, 
हैं बेल बूटे|
जो मौसम के इशारे पे, 
फूलते फलते हैं|

आंधियां भी इसपे चलतीं |
 आपदा विपदा भीआती है|
तुफान के कहर यहीं, 
 इन्सान पे गुजरते हैं|

दीवाने आशिकों का तो, 
ठौर ही सड़क हैं|
प्यार के अफसानों के गुल, 
यहाँ हर लम्हें में खिलते हैं|

ये सांप सी बल खाती, 
टेढ़ी मेढ़ी भले सड़क है|
मंजिल सभी को अपने, 
इसी राह पे मिलतें हैं|

स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
विजय श्रीवास्तव
बस्ती
दिनांक-13-10-2020
2️⃣
महाराष्ट्र कलम की सुगंध
13 अक्टूबर 2020
विषय-सड़क
विधा-कविता
*************************
अजीब होती हैं सड़क,
कहीं सांप जैसी चलती,
कहीं कड़क हो जाती है,
कहीं पहाड़ से निकलती।

सड़क पर चलते वाहन,
ले जाते हैं माल मसाला,
सड़क मन को मोह लेती,
मोड़ जब मिलता निराला।

सड़के दुर्घटना का कारण,
कभी कर देती है भयंकर,
कभी सड़क देख डर लगे,
मन भजता है प्रभु हर हर।

सड़क ऊंची नीची मिलती,
देख देखकर मन हर्षाता है,
कभी तो सड़क मोड़ देख,
मन गीत खुशी के गाता है।

सड़क पर चलते हैं सभी,
गरीब मजदूर या है अमीर,
सड़क वो जीवन की रेखा,
हर लेती जन की सब पीर।
***************************
स्वरचित, नितांत मौलिक
*******************
*होशियार सिंह यादव
मोहल्ला-मोदीका, वार्ड नंबर 01
कनीना-123027 जिला-महेंद्रगढ़ हरियाणा
 व्हाट्सअप एवं फोन 09416348400
3️⃣
महाराष्ट्र कलम की सुगंध 
मंच को नमन करते हुऐ
आप सभी मित्रों को सुबह का नमस्कार 
विषय: सडकें
दिनांक:१३-३-२०२०

पगडंडियां गांव की मुख्य शिरा है 
तो "सडकें "शहर की सांस धमनी
शिराऐं जोड़ती है लोगों 
को लोगों से 
ये सडकें अर्थ व्यवस्था की 
अगन उर्जा और चिमनी !!

ध्वनी से धम धमती धधकती रहती 
रात दिन व्यस्ततम
चाहे सर्दी हो या गर्मी !!

टेड़ी मेड़ी मुड़ी हुई काट कटीली 
घाट घाट घुमक्कड़ 
बिन हवा पानी के भी जागती जीती
भले भौतिक रूप से जड़ 
सामान्य 
पर ये चेतन सब को करती!! 

इसकी वजह से आवागमन 
अन्न पानी पेट्रोल औजार तकनीकी का
वहन करती वजन पारावार 
उफ़ तक यह कभी न करती!!

धरती हमें संसाधन देती और 
यह बेचारी धरती पर धरी धरी
हम सबको सामान सहित आगे पीछे करती!!

चाहे इसके संरक्षक व चाहने वाले
जैसा रखे वैसे रहती
अपनी हालातनुसार प्रतिसाद देती
कहीं कहीं सजी संवरी मुख्य मार्ग पर
कहीं उजाड़ जड़ जुगाड जर्जर
पुरानी वयोवृद्ध खूंसट पथ पर पसरी हुई
पथरीली!

पर पूर्वाग्रह व प्रतिस्पर्धा न रख कर किसी तरह का
सडकें सदैव परिचारिका बन कर सेवा में तत्पर रहती!!
साक्षी रही हाद़सों की कई 
मनचलों की
लापरवाही की वजह 
कभी खुद वजह बनी
उपेक्षा की 
शिकार व मजबूरी वश 
आक्रंदन सुन स्वयं कहराती रही!

हम इन सडकों के ऋणी है 
ऋण चुकाना हमारा धर्म है
थूंकना कचरा डालना न कर 
सभ्यता से अदब़ से इज्जत उसकी हमें करनी!!
कई हो गये बजट हज़म हजूम हाजमे़ 
जठ़र गटर में इसके हिस्से के 
भ्रष्टता की
किसे सुनाऐं कर्म की हमारी कथनी!! 

स्वरचित:अशोक दोशी
सिकन्दराबाद
७३३११०९२५८
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महाराष्ट्र कलम की सुगंध द्वारा आयोजित विषय आधारित लेखन में उत्कृष्ठ सृजन के लिए आपको ढेर सारी बधाई व शुभकामनाएं। महाराष्ट्र कलम की सुगंध परिवार आपके उज्ज्वल भविष्य की मंगल कामना करता है।

अनुराधा चौहान 'सुधी'
सचिव (महाराष्ट्र कलम की सुगंध)

चित्र गूगल से साभार

दर्पण





 प्रथम स्थान

नमन महाराष्ट्र कलम की सुंगध

विषय - दर्पण

चेहरे पर से पर्दा मैने उठाया भी नहीं।

दर्पण में देख कभी शर्माया भी नहीं।।


जीवन में खुशियाँ थी गमों में बदल गई।

खुशी से एक पल भी बिताया भी नहीं।।


जो भी संजोये ख्वाब, सारे बिखर गए।

कभी जी भरके मन मुस्कराया भी नहीं।।


वो दिल में दस्तक देने आते तो है मगर,

मुद्दतें गुजर गई, हमने जताया भी नहीं।।


उनकी बेरुखी से दिल बैचेन सा रहता है।

जो वादे किये थे उसने निभाया भी नहीं।।


तुम खास हो मगर हम ठहरे आम इंसान।

इसीलिए चाय पर हमें बुलाया भी नहीं।।


तेरा इंतजार करती रही दिन-रात सुमन

दीये तले अंधेरा चराग़ जलाया भी नहीं।।

✍ सुमन अग्रवाल "सागरिका"

           आगरा

🏵️प्रथम स्थान🏵️

नमन मंच 

महाराष्ट्र क़लम की सुगंध 

विषय....... दर्पण 

12-10-20- सोमवार 


रूप की हकीकत दर्शाता है

 दर्पण । 

चेहरे के भाव को समझाता है 

दर्पण । 

आपकी न कालिख छिपाता है 

दर्पण । 

दोस्त भी उस जैसा बताता है 

दर्पण । 

आपका स्वभाव परिवार का है

 दर्पण । 

संस्कार आपके है परवरिश का 

दर्पण । 

आपका व्यवहार है संगति का 

दर्पण । 

आपका है कर्मभार मेहनत का 

दर्पण । 

मन की सच्चाई को जिस दिन 

बतायेगा , 

उस दिन ये क्षार क्षार तुमसे हो 

जायेगा । 

दर्पण को लगातार कितना भी घिसो यार , 

वो तो तुम्हारी हकीकत को ना ही 

छिपायेगा । 

तुमको गर अपना चमकाना है 

दर्पण । 

अपनी छवि को गर सुन्दर दिखाना है। 

तो ले लो आदर्शो की पॉलिश को 

हाथ में , 

हमेशा को मधुर बन चमक जाये 

दर्पण । 

स्वरचित सुधा चतुर्वेदी मधुर 

                             मुंबई

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द्वितीय स्थान

महाराष्ट्र की कलम सुगंध

12 अक्टूबर 2020

विषय-दर्पण

विधा-काव्य पद्य

*********************

झूठा जगत, झूठी है शान,

आइना करे, सच पहचान,

दिल से झूठे, नकली ज्ञान,

खाली जेब, समझे धनवान।


करे आइना, जगत पहचान,

सोच ले,जग में, तू मेहमान,

कर ले धर्म, कर्म के काम,

एक दिन होगी,अंतिम शाम।


कितने आये, जग छोड़ गये,

अहित काम उन्हें सदा किये,

अपने स्वार्थ खातिर उन्होंने,

निर्धन जन के मन सता दिये। 


देख ले आज, अभी आइना,

कितने भरे तेरे, मन में खोट,

सता सता जन, खून पी रहा,

पसंद तुम्हें पाप, चाहता नोट। 


यह आइना, ही अब इंसाफ,

दुष्टों को नहीं करेगा यूं माफ,

दुश्मन रहित देश को बनाएंगे,

देश को, अब महान बनाएंगे।।

***************

स्वरचित, नितांत मौलिक

*************

*होशियार सिंह यादव

कनीना-123027 जिला महेंद्रगढ़ हरियाणा

  फोन 09416348400

🏵️द्वितीय स्थान🏵️

नमन मंच 

12/10/20

दर्पण

छन्द मुक्त


दर्पण को आईना दिखाने का प्रयास किया है 

  दर्पण

*********

दर्पण, तू लोगों को 

आईना दिखाता है

बड़ा अभिमान है तुम्हें 

अपने पर ,कि

तू सच दिखाता है।

आज तुम्हे दर्पण,

दर्पण दिखाते हैं!

क्या अस्तित्व तुम्हारा टूट

बिखर नहीं जाएगा 

जब तू उजाले का संग

 नहीं पाएगा 

माना तू माध्यम आत्मदर्शन का

पर आत्मबोध तू कैसे करा पाएगा 

बिंब जो दिखाता है

वह आभासी और पीछे बनाता है 

दायें को बायें

करना तेरी फितरत है 

और फिर तू इतराता है

 कि तू सच बताता है ।

माना तुम हमारे बड़े काम के ,

समतल हो या वक्र लिए 

पर प्रकाश पुंज के बिना 

तेरा कोई अस्तित्व नहीं ।

दर्पण को दर्पण दिखलाना 

मन्तव्य नहीं, 

लक्ष्य है

आत्मशक्ति के प्रकाशपुंज

से गंतव्य तक जाना ।

अनिता सुधीर आख्या

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तृतीय स्थान

नमन मंच

विषय-दर्पण

विधा-कविता

           रुप का श्रृंगार करता|

            सत्य से तिल भर ,न डिगता|

            धनी निर्धन में, 

             समभाव रखता|

          सबको सबका सच दिखाता|

          किसी का कुछ भी ना छुपाता|

        दर्प से डरता न दर्पण सत्य कहता है|

        सबकी सच्चाई को दर्पण दिखाता है|


             बहुत नाजुक है मगर, 

             है अथाह बलशाली|

             सच को सच कहता है |

             हिम्मत का है आली|

       प्यार में ये प्रेमियों का मनुहार करता है|

       सामने आते ही दिल में ये बसा लेता है|

              और अक्श खुद में दिखाता|

              राज सबका खोल देता, 

         आप का मन ही तो दर्पण कहाता है|

शुद्ध चंदन सा अलौकिक, 

प्रकाश की द्युति सा प्रकाशित|

वायु सा निर्मल होता है ये|

सत्य की है ये दिव्य मूरत, 

विधाता की देन दर्पण कहा जाता है|

सत्य का है यान दर्पण कहा जाता है|

        बनों दर्पण सा तो, 

        जग में पूजे जाओगे |

         जहाँ भी जाओगे|

          सम्मान पाओगे|

सभी का प्यार और दुलार पाओगे|

मन में अतुलित खुशी का भण्डार पाओगे|

           लोग पत्थर दिखायेंगे|

           पर हरगिज़ न डरना|

           प्रलोभन देंगे मगर

           हरगिज़ न सुनना|

ऐसे जीवन का सदस्य उद्धार होता है|

दर्पण से चरित्र वालों का गुणगान होता है|


स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित

विजय श्रवास्तव-बस्ती

🏵️ तृतीय स्थान🏵️

मंच को नमन 

विषय :आईना

दिनांक:१२-१०-२०२०

अवतल उत्तल या समतल दर्पण यूं तो झुठ नहीं बोलता  

साफ साफ प्रतिबिंबित कर लेता है 

शख्सियत के लगभग

ऊपरी चेहरे मोहरे को!!


पर मोहरे में छुपे असली शख्स को पहचानना मुश्किल है  

वह नहीं जानता कैसे हटाना 

आच्छादित धुंध और कोहरे  

को!! 


कहने को हम भले कह दें कहावत व कवित्व में 

कि उन्हें दर्पण दिखा दिया 

उन्हें आईना दिखाना है 

कहते है उनको कहने दो!


पर मैं कहता हूं हर शख्शियत के बहुरूप होते है

आईना या दर्पण क्या जाने

उसकी तो सीमा है वह कैसे 

पहचाने भीतर के मन भंवरे को ?


और आप ही बताएं कैसे जाने 

हर क्षेत्र हर मोड नुक्कड 

के बहुरुपियों को !!!


स्वरचित :अशोक दोशी 

सिकन्दराबाद७३३११०९२५८

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सराहनीय प्रस्तुति

1️⃣

विषय-दर्पण

चोका जापानी गीत विधा,

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वक्त के हाथों,

बिखरी है उदासी,

मिट जाएगी,

फिर हँस उठेगें, 

काँटों भरी जिन्दगी,

सूने पल में, 

एकाकी जीवन में,

विरह रात,

आँसू के उपहार,

लिये तुम्हें बुलाये,

पकी निबौरी,

तन मन अपना,

देखे दर्पण

पवन धीरे धीरे

डोलता रहा,

पीड़ा की शाम ढले,

राधा को श्याम मिले।।

स्वरचित चोका कार देवेन्द्र नारायण दासबसनाछ, ग,।।

2️⃣

महाराष्ट्र कलम की सुगंध

जय जय श्री राम राम जी

12/10/2020/शुक्रवार

*दर्पण*

छंदमुक्त


कहते हैं लोग

ये दर्पण झूठ नहीं बोलता।

अपना राज 

स्वयं ही खोलता।

जो भी हो अंतस में

हमको बताता

हमसे कभी

 कुछ भी नहीं छिपाया।

लेकिन हम जानते हुए भी, अनजान रहते

अपनी कमियों को कभी नहीं गिनते।

क्योंकि मलिनता को मनसे शायद

निर्मल नहीं करते।

कलुषित विचार

हृदय पर भारी होते हैं

जिन्हें हम जिंदगी भर

ढोते रहते हैं।

मानते नहीं कभी

आइने की बात

करते खुदा से और

खुद से घात।

अभी लगातार जारी हैं

कोशिशें हमारी

हमें नहीं अपनी मातृभूमि, मातृभाषा यहां तक कि अपनी सनातन संस्कृत प्यारी।

तोड फोड़ रहे वही

सोने सा दर्पण 

जिसमें दिखता था हमें

अपने चेहरे का अक्श

अपने देश का गौरव

अपने महापुरुषों की मर्यादा और आदर्श।

इसका एक ही निष्कर्ष

अपने ही पांव पर मार रहे कुल्हाड़ी

क्या ऐसे होगा उत्कर्ष।


स्वरचित,

इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी अजेय

गुना,म प्र

3️⃣

🙏नमन मंच महाराष्ट्र कलम की सुगंध🌷

विषय-दर्पण

विधा-स्वतंत्र

दि.12/10/20

समीक्षा हेतु

कविताएं अंतर्मन का अहसास होती है।

ये संघर्षरत जीवन का इतिहास होती है।

देश,प्रेम,भक्ति,ओज,मिलन,वियोग व्यथा,

दुख सुख की साक्षी और विश्वास होती है।

धर्म समाज का"दर्पण"राजनीति पे व्यंग्य,

भूली बिसरी रचनाओं में कुछ खास होती है।

भूत भविष्य वर्तमान को एक सूत्र में बाँधे,

बुद्धि ज्ञान अध्ययन का अभ्यास होती है।

बचपन युवा वृद्धावस्था हर पल शिक्षा देती,

भटके पथ पर कविताएँ प्रकाश होती है।

🌷सुशील शर्मा💐

🙏स्वरचित🌹

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महाराष्ट्र कलम की सुगंध द्वारा आयोजित विषय आधारित लेखन में उत्कृष्ठ सृजन के लिए आपको ढेर सारी बधाई व शुभकामनाएं। महाराष्ट्र कलम की सुगंध परिवार आपके उज्ज्वल भविष्य की मंगल कामना करता है।


अनुराधा चौहान 'सुधी'

सचिव (महाराष्ट्र कलम की सुगंध)


चित्र गूगल से साभार





Sunday, October 11, 2020

मुस्कान/मुस्कुराहट


 प्रथम स्थान

महाराष्ट्र कलम की सुगंध

जय-जय श्री राम राम जी

10/10/2020/शनिवार

*मुस्कान/मुस्कराहट*

काव्य

*****

मुस्कान दिखे हर मुखड़े पर,

प्रेम पुष्प खिले मन उपवन का।

मधुर मृदुलता मुस्कान भरी,

जीवन हो हर क्षण बचपन का।


मुस्कान चंद्र सी खिली रहे।

मनमयूर सदा ही नृत्य करें।

मनमोही अपना मुरलीधर,

मनमंदिर मधुरम कृत्य करें।


मुस्कान सांवरे की प्यारी।

हो जाएं इस पर बलिहारी।

आनंदित होता जग सारा,

देखें छवि जब राधेप्यारी।


मकरंद घुले इस जीवन में

मधुमास रहे मुस्काता सा।

नहीं कोई गिले शिकवे हों,

मनमोहन हो दुलराता सा।


माना संघर्षों नाम जिंदगी,

है मनसा धैर्य दिलाता सा।

आशीष हमारे साथ रहें,

प्रभु प्रेमप्रीत दिलासा सा।

******

स्वरचित

इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी अजेय

गुना म प्र

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द्वितीय स्थान

नमन मंच

विषय-मुस्कान


हँसी हो या हो मुस्कान

जनाब

सच मानिए

है छूत की बीमारी

वेवजह हँसता देख

सक्रिय हो जाती

वजह की

न होती कोई बात

एक से फैल

हो जाती अनेक

स्वत विना किसी प्रभाव

नकली हो या असली

हँसी के बीच होते फासले

दिल दिमाग के

छिपी तस्वीरों के संग

सच मानिए

बढ़ाती है रफ्तार

मिटाती है रार

खुशियों का पैगाम

अपनेपन की भावना

दिल की बेहतरीन दवा

हर मर्ज को देती भगा

ये मुस्कराते चेहरे

जिधर से गुजरते

बना देते हर जगह खुशनुमा

ये मीठा मरहम

जख्मो का सुंदर लेप

आइए शुरू करते 

हँसी,खिलखिलाहट,मुस्कराहट

का सुंदर कारोबार

मिटाकर नफरत

बने मुहब्ब्त के साझीदार..

स्वरचित

मीना तिवारी

🏵️ द्वितीय स्थान🏵️

नमनमंच संचालक ।

महाराष्ट्र कलम की सुगन्ध।

विषय - मुस्कान /मुस्कराहट

विधा - गीत

स्वरचित


कितनी प्यारी भोली भाली 

है मुस्कान तुम्हारी ।

फूल हो तुम मेरे उपवन के 

मैं हूं उसकी माली ।।


सलोने मुख पर उज्ज्वल दंती

कितना मुझको भातीं।

खिलखिल करके खिलना तुम्हरा

मैं जाऊं बलिहारी।।

कितनी प्यारी भोली भाली 

है मुस्कान तुम्हारी।

फूल हो तुम मेरे उपवन के 

मैं हूं उसकी माली...।।


चंद्र सलोना मुखड़ा तेरा 

बतियां मन को भातीं।

बनी रहे मुस्कान सदा यूं

एक मां बस ये ही चाहती।।

कितनी प्यारी भोली भाली

है मुस्कान तुम्हारी।

फूल हो तुम मेरे उपवन के 

मैं हूं उसकी माली।।

***

प्रीति शर्मा "पूर्णिमा"

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तृतीय स्थान

नमन- महाराष्ट्र कलम की सुगंध

दिनांक-10/10/2020

विधा- पद्य

विषय- मुस्कान /मुस्कुराहट


चौपालों में मुस्कान वो ठहाके

ठिठुरन सूनी रतिया कैसे काटे।

                     गीला आटा,ओखली और जातें

                     यहां प्रीत नीति के अरमान भाते।।


कोहरे की झीनी चादर ओढ़े

रूप सखी की आँखे ताके।

                         मन निर्मोही मन की है बातें

                          गुत्थम - गुत्था गरीब अभागे।।


भींगी शाम की ठिठोली रातें

हरियाली की लहलहाती पाँते।

                    नीर भरी पनघट की वो घाटे

                     मड़हा में बीते खुशहाली की रातें।।


घर के बर्तन है खनखनाते

जिम्मेदारी तो मुखिया के माथे।

                         मां ,चाची के झगड़े की बातें

                          तड़प नयन में अश्रु बह जाते।।


बैलगाड़ी के हैं अजीब किस्से

दादा दादी खूब सुनाते।

                           बिन घूंघट के गोरी बैठे

                           सवार हो के खूब मजे काटे।।


मौलिक रचना 

सत्य प्रकाश सिंह 

प्रयागराज उत्तर प्रदेश

🏵️ तृतीय स्थान🏵️

विषय - मुस्कान


परेशानी में चेहरे पर मुस्कान नही होती।

कभी-कभी क़िस्मत मेहरबान नही होती।


आपने हमसे दूरियां बना ली इस कदर,

समाज से मिले बगैर पहचान नही होती।


हाथों की लकीरों में लिखा वही तो मिला,

शेख़ी बघारना भी कोई शान नही होती।


नित्य पूजा-प्रार्थना करने मंदिर जाती हूँ मैं,

पत्थर से बनी मूर्तियां बेजान नही होती।


मोहमाया को छोड़ हम ईश्वर में रम गये,

ईश्वर की दृष्टि कभी अनजान नही होती।


बेवजह ही शक करना तू छोड़ दे इंसान,

हर किसी की निगाहें शैतान नही होती।


कागज़ के पन्नों पर हमने ग़म लिख दिये,

हर छोटी बातें दिल की दास्तान नही होती।


जीवन में संघर्ष बहुत रखना कदम सँभाल,

पहनावा दिखावा से कोई शान नही होती।


जिक्र पैसा का चला तो जान लिया “सुमन”

पैसों के बगैर जिंदगी आसान नही होती।


सुमन अग्रवाल "सागरिका"

      आगरा

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सराहनीय प्रस्तुति

1️⃣

नमन मंच  

महाराष्ट्र कलम की सुगंध 🙏🙏

विषय :- काव्य 


विषय :- मुस्कान

परमात्मा की दी हुई सौगात है मुस्कान 

मुस्कराते चेहरों में बसे होते हैं भगवान 

यूं ही बेवजह ना उदास होया करो इंसान 

मुश्किल परिस्थितियों को समझकर इंतीहान

सजाकर होंठो पर मुस्कान 

जीने में ही है शान 

मुस्कान को चेहरे के सौंदर्य में 

चौदहवीं का चांद बनाया करो

दर्द पर फिक्र के मरहम की 

मीठी सी मुस्कान लगाया करो 

यूं ही बेवजह मुस्कराया करो 

माहौल को खुशनुमा बनाया करो 

मुस्कान से घर आंगन और आगुंतकों को हर्षाया करो 

स्वरचित :- ऋतु असूजा

2️⃣

महाराष्ट्र कलम की सुगंध 

         मंच को नमन 

विषय :मुस्कान /मुस्कुराहट

दिनांक:१०-१०-२०२०

अगर "*मुस्कान**मुस्कुराहट*"

या हंसी खुशी होगी मुंह पर 

तो दहलीज़ 

पर भी होगी दस्तक !!!

दहलीज़ 

पर होगी दस्तक 

और किसी के आने की भी होगी आहट !!!

वर्ना होगा जीवन में सर्वदा अभाव और प्रेम की रहेगी 

कमी व छटपटाहट!!

मुंह पडेगी अकाल झुर्रियां और 

पडेगी सलवट !!

मुस्कान मुस्कुराहट स्वस्थ जीवन की परिचायक है 

जीवन पेड पनपाने में मानों

खाद मिट्टी जैसे दोमट!!

केवल धन सम्पदा संपादित 

होने से

नहीं मिलती खुशियां 

प्यार मुहब्बत और दुलार का 

तडका न मिले तो 

क्यों फिर इतनी खट पट? 

वो बुलाये तो ही बोलूं वो मुस्काये 

तो ही मुस्काऊं

यह रखी अगर ठान के मन 

में चाहत

और पकड जिद्द हठ हठाग्रह और पूर्वाग्रह व दुराग्रह 

बढेगी परस्पर कड़वाहट!!!

मुस्कान बिना जीवन अधूरा है 

अकेला भी

बिन इसके फिर बदलते रहना करवट! 

घर गांव समाज में उन्हीं की

शान रहती

हंसता मुस्कुराता सुनियोजित 

व्यवस्थित जीवन जिनका 

वो ही दौडेगा सरपट!!! 

स्वरचित: अशोक दोशी

सिकन्दराबाद

अभी -अभी

७३३११०९२५८

3️⃣

आज विषय मुस्कुराहट है,

सेदोका,

भोर किरण,

झरनों मे खेलती,

बर्फिली पर्वतों मे,

फूलों की घाटी

बहे गीत वासंती,

मुस्काती हरियाली।।

सेदोका,2,

हर जीवन,

तिमिर से आवृत,

तृप्ति नही मिलती,

यह जीवन,

विरह विनोद ही,

मुस्कुराना ही सीखो।।

सेदोका कार देवेन्द्र नारायण दासबसनाछ, ग,।।

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महाराष्ट्र कलम की सुगंध द्वारा आयोजित विषय आधारित लेखन में उत्कृष्ठ सृजन के लिए आपको ढेर सारी बधाई व शुभकामनाएं। महाराष्ट्र कलम की सुगंध परिवार आपके उज्ज्वल भविष्य की मंगल कामना करता है।


अनुराधा चौहान 'सुधी'

सचिव (महाराष्ट्र कलम की सुगंध)


चित्र गूगल से साभार

Saturday, October 10, 2020

चित्र लेखन


प्रथम स्थान

नमनमंच संचालक ।

महाराष्ट्र कलम की सुगन्ध।

विषय - चित्रलेखन ।

विधा - कविता ।

स्वरचित ।


देखिये करिश्मा कुदरत का

जो देती थी कभी रोशनी घर में 

आज बन गयी घरोंदा किसी का। 

व्यर्थ हो गयी जो विकास की दौड़ में 

बन गयी आसरा किसी जरूरतमंद का।।


तिनका तिनका लाई चुगकर

बनाया नर्म बिछौना। 

रहेंगे मेरे बच्चे आराम से

तंग ना हो मेरा छौना।।


व्यर्थ नहीं है कुछ भी जग में

सबका अपना महत्व है।

ये तो नजरिये पर निर्भर है

सीखें सब ये इक संदेश भी है।।

***


प्रीति शर्मा "पूर्णिमा"

09/10/2020

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द्वितीय स्थान

नमन मंच

चित्रलेखन

9/10/20


कभी बनी थी 

रोशन का साज

उजाले की अदभुद साज

चमक उठता था घर द्वार

सांझ की बेला

अम्मा सांझ मनाती

जला लालटेन

हाथ जुड़ाती

रंगरोगन कर 

थी खूब सजाती

अब तो पड़ी हुई

खंडहर के पास

नही किसी को 

इसकी अब आस

चिड़िया रानी बड़ी सयानी

घर की उनको थी तलाश

मन मोहक शांत एकांत

बच्चो मिलेगा सुरक्षित आवास

बना घरौंदा

सेती बच्चो को

चुग कर दाना

बच्चो को चुगाती

माँ बच्चो का प्यारा संसार

जला रहा

चू चू ची का प्रकाश

फिर से

हँसी लालटेन

पाकर घरद्वार


स्वरचित मीना तिवारी

पुणे महाराष्ट्र

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तृतीय स्थान

नमन मंच 

महाराष्ट्र की क़लम के सुगंध 

विषय .....चित्र लेखन 

09-10-20 शुक्रवार 


ये कभी रही थी लालटेन , 

सबको उजियारा देती थी । 

अब निष्क्रिय ये बेकार हुई , 

इसकी अब कद्र न होती थी । 


पर मेरी इस पर दृष्टि पड़ी , 

मेरे कुछ काम ये आ जाये । 

मैंने तिनकों को कर एकत्र , 

कुछ नरम बिछौने बुन डाले । 


मेरे बच्चे अब घोंसले में , 

आराम से पल तो जायेंगे । 

मैं तो नाचीज संतोषी पक्षी हूँ , 

अरमान पूर्ण हों जायेंगे । 


घोंसला हो या नर मकान , 

बस रहिवासी मात्र स्थान रहे । 

  संतोष रखो अपने मन में , 

रहने को अपनी एक छत्त रहे । 


बंगला ना हो तो हुआ भी क्या , 

हम सादा एक बना आशियाँ लें ॥ 

आनन्द से जीवन वहीं कटे , 

जहाँ मानव खुशियों को बांटें । 


स्वरचित सुधा चतुर्वेदी मधुर 

                     मुंबई

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सराहनीय प्रस्तुति

1️⃣

महाराष्ट्र  कलम की सुगंध  को नमन


विषय चित्र लेखन

दिनांक:९-१०-२०२०


मादा चिडिया की सजग स्नेहील ममता ...


होगा लालूजी के लिए लालटेन  चुनावी चिन्ह महज

मेरा तो यह आशियाना और घर दडबा 

दरबार  दर बदर है!!


मेरी अजुंमन देहलीज दरवाजे 

और दीवार ए दर है !!


संजोती सुरक्षा करती हूं प्रेम पूर्वक परवरिश 

इसी घौसले में  बैखौफ़ हौसले से

चकोर नयन से निगेहबानी 

व नजर रख निज घरौंदे की

चहचहाते हुऐ मेरे खून को, चुग्गा खिलाती हूं 

मैं खुशी से चहकते हुऐ !


हाल फिलहाल तो यही मेरा घर है!

पर एक बात है 

यह मेरा पारिवारिक पारम्परिक

पुश्तैनी आवास या निवास नहीं है 

कि हक जमा दें हमेशा के 

लिए 

न ही सरकारी बंगला है 

ऐश आराम और अय्याशी और 

अकसर तमाशे के लिए!!!


हम फिर उड़  जायेंगे साथ 

जब उड़ने लग जायेंगे ये हमारे नन्हें जल्द ही 

अभी तो है अबोध ,

तैयार कर रही हूं पंखों से उडने के लिए!!! 


आश्वस्त  कर तालीम दे रही हूं 

बेफिक्र रहने की 

अपने संसार को उमंगमय बना कर

दिगम्बर संत की तरह विहंगम 

अम्बर में 

विचरने के लिए!!!


स्वरचित:अशोक दोशी

सिकन्दराबाद

अभी -अभी

७३३११०९२५८

2️⃣

नमन मंच-महाराष्ट्र कलम की सुगंध

तिथि09/10/2020

विषय-चित्र लेखन


मेरी चुनमुन चिड़िया

****************


मेरी छोटी चुनमुन चिड़िया ने

बनाया अपना घोंसला लालटेन में

कभी ये लालटेन रहा करता था रोशन

आज पड़ा है घर के कबाड़े में।

याद आता है वो दिन जब हो 

जाती घर में बिजली गुल

बीच में रख कर इसको, हम भाई- बहन पढ़ते-लिखते हिलमिल कर

आज ये नन्हीं चिड़िया चुन-चुन 

कर लाई तिनका और 

इस टूटे लालटेन में 

बसाया है अपना नीड़।

छोटे-छोटे प्यारे उसके बच्चे देखो

कैसे मांग रहे दाना मुँह खोल।

ममत्व से भरा ये सुन्दर दृश्य

अपनत्व से भर दिया मेरा दिल।


स्वरचित

अनिता निधि

जमशेदपुर,झारखंड

3️⃣

महाराष्ट्र की कलम सुगंध

चित्र लेखन

जय जय श्री राम राम जी

9/10/2020/शुक्रवार

*लालटेन में घोंसला*

छंदमुक्त


टूटी-फूटी लालटेन

प्रकाश स्तंभ

हमारी आंखों के लिए उजाला

इस टूटी फूटी वस्तु का

सदुपयोग किया 

अपना नीड़ घरोंदा बनाने

किसी प्यारी चिड़िया

अथवा 

समझदार विहग ने

मां और इसके चूज़े

दोनों खुश हैं

अपने परिवार के साथ में

घरोंदा प्यारा हमें

सुंदर दिख रहा

शिशुओं की चहक

बहुत अच्छा लगा 

समझ बूझ से

सुरक्षित घोंसला बना

अनुपयुक्त चीज के साथ

जैसे ‌जीवन खिला।


स्वरचित

इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी अजेय

गुना म प्र

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महाराष्ट्र कलम की सुगंध द्वारा आयोजित विषय आधारित लेखन में उत्कृष्ठ सृजन के लिए आपको ढेर सारी बधाई व शुभकामनाएं। महाराष्ट्र कलम की सुगंध परिवार आपके उज्ज्वल भविष्य की मंगल कामना करता है।


अनुराधा चौहान 'सुधी'

सचिव (महाराष्ट्र कलम की सुगंध)


चित्र गूगल से साभार


पिता

  प्रथम स्थान नमन महाराष्ट्र क़लम की सुगंध मंच दिनांक - १६/१०/२०२० दिन - शुक्रवार विषय - पिता --------------------------------------------- ...