प्रथम स्थान
नमन महाराष्ट्र क़लम की सुगंध मंच
दिनांक - १६/१०/२०२०
दिन - शुक्रवार
विषय - पिता
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छाँव तरुवर के पिता, मंद शीतल हैं पवन।
धीर धरते ज्यों धरा, पिता विस्तृत सा गगन।।
होते ना विचलित पिता, रहते धीर गंभीर।
कठिन समय में भी नहीं, होते कभी अधीर।।
पिता गुरु संतान के, देते हैं जो ज्ञान।
जग में दिलवाते सदा, स्वाभिमान सम्मान।।
दुःख अपने संतान हित, सहते रहकर मौन।
पिता सिवा इस जगत में, ऐसा करता कौन।।
जीवन आंधी में जले, दीपक सा दिन रात।
दुःख के मरुथल में करें, खुशियों की बरसात।।
आजीवन करता रहूं, पूरण अपने कर्म।
पिता मुझे आशीष दें, सदा निभाऊं धर्म।।
पथ-प्रदर्शक हैं पिता, पुण्य के हैं परिणाम।
पिता शिल्पी पुरुष हैं, उनको करें प्रणाम।।
रिपुदमन झा 'पिनाकी'
धनबाद (झारखण्ड)
स्वरचित
🏵️ प्रथम स्थान🏵️
नमन मंच 🙏
विषय-पिता
विधा-कविता
दिनांक-१६/१०/२०२०
जब मायके से विदा होती थी
मैं हर बार
पिता रखते थे मेरी मुट्ठी में कुछ रुपए
चुपचाप...….
मैं देर तक उन्हें भींचे रहती थी
मुझे पता था
ये सिर्फ कुछ रुपए नहीं थे
ये पिता के हृदय की अकुलाहट थी
कि उनकी बेटी उपेक्षित न रहे...
ये पिता की मासूम संतुष्टि थी
कि उनकी बेटी को कुछ कमी न हो...
ये पिता की निरीह सी परवाह थी
कि नज़रों से दूर बेटी सुरक्षित रहे...
मैं मुट्ठी में भिंचे वो भीगे रुपए
रखती थी पर्स में
बगैर गिने....
मैं उन्हें यथासंभव खर्च नहीं करती
मुझे पता था
वे मेरे लिए सिर्फ कुछ रुपए नहीं
बल्कि मेरी आश्वस्ति थे.....
मेरे पिता के मजबूत साये की आश्वस्ति.....!!✍️✍️
प्रतिभा पाण्डेय प्रयागराज उत्तर प्रदेश
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द्वितीय स्थान
कविता-पिता
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अंगुली पकड़ चलना सिखाया,
कभी गोद ले,आकाश दिखाया,
खुद रोया पर बच्चे का हंसाया,
वो जग में बस पिता कहलाया।
मां धरती है, पिता है आसमान,
युगों से रही, पिता से पहचान,
मां का आंचल, पिता का साया,
ईश्वर रूप में ही, बच्चे ने पाया।
मां स्वर्ग सुख , पिता देवलोक,
दोनों के बल ,मिले सुख भोग,
माता रोती है, पिता नहीं सोता,
कैसा अजब है, जगत संजोग।
मां का दर्द तो, हर जन जानते,
पिता का दर्द, नहीं पहचानते,
हम ठीक हैं, सदा ही कहते हैं,
परंतु दुख दर्द, दोनो ही जीते हैं।
राजा जनक भी, पिता कहलाये,
सीता हंसी तो, वो भी मुस्कुराये,
बेटी का दर्द तो पिता को सताये,
विदा होती जब,दर्द में डूब जाये।
पिता के सिर, परिवार का बोझ,
जीये दुख दर्द में, वो तो हर रोज,
जिये मेरा पिता, करूं प्रार्थना रोज,
पिता के बिन, नहीं मिलती मौज।।
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स्वयं रचित, नितांत मौलिक रचना
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*होशियार सिंह यादव
मोहल्ला-मोदीका, वार्ड नंबर 01
कनीना-123027 जिला महेंद्रगढ़ हरियाणा
फोन 09416348400
🏵️ द्वितीय स्थान 🏵️
नमन मंच
16/10/2020
पिता
पिता हमारे सघन छाया
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पिता हमारे जीवन के हैं वटवृक्ष
मिलती है उनसे हमें सघन छाया
जीवन की तपिश को ठण्ढक देते
कठिन चुनौतियों में ढाल बन जाते
संघर्ष और परेशानी की आंधियों से
लड़ने की तलवार हैं वो
करते हैं हमारे कठिन राहों को सुगम
और हमारे जीवन को करते हैं उज्ज्वल
पिता से ही हमारी माँ की हँसी है और
हम बच्चों के हास विलास हैं
पिता हम बच्चों के लिये एक उम्मीद और आस हैं
बचपन को खुश करता एक खिलौना हैं
बाज़ार का हर खिलौना पिता से ही हमारी है
पिता हमारी जागीर हैं
यह जागीर जिसके पास है
वो दुनिया का सबसे बड़ा अमीर है
पिता परिवार के एक तपस्वी हैं
हमारे जीवन के खेवनहार हैं
धरती पर पिता ईश्वर का प्रतिरूप हैं
इसलिये कर लो पिता की सेवा
और अपनी झोली भर लो पुण्य की मेवा!
स्वरचित
अनिता निधि
जमशेदपुर,झारखंड
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तृतीय स्थान
नमन
महाराष्ट्र क़लम की सुगंध
16-10-20
विषय ...पिता
पिता होता परिवार का सुखमय पालनहार ,
बिना पिता के प्यार के सूना सब संसार।
पिता अपने परिवार की छत्रछाया होता है ,
इसकी मेहनत लगन से ही सबका पालन होता है ।
उनका होता परिवार में बरगद सा स्थान ,
अपने बच्चों के लिए आन बान और शान ।
पिता बिना संसार में सबका रूप अनाथ ,
पिता की सेवा सब करो जान उन्हें भगवान ।
जो बच्चे है ना करें उनका आदर मान ,
उन बच्चों के त्याग में ना कोई अपराध
अपने जीवन का पार्जन देता बेटे को जान ,
वहीं बेटा उनको करवाता वृद्धाश्रम पहचान ।
पत्नी का श्रृंगार है पिता धर्म का मूल ,
परिवारी हितकार है ना करता कभी गरूर ।
सारा जीवन कोल्हू बन करता धन का मान ,
उसी पिता का वृद्ध बन होता घोर अपमान ।
पिता की सेवा सब करो उसमें मान गुरूर ,
देव बनो या ना बनो मानव बनो जरूर।
जिसके मन प्रज्ञा जगे पिता के प्रति विनीत ,
उसी डाल पर फल लगें मधुर मिले आशीष ।
स्वरचित ....सुधा चतुर्वेदी ' मधुर '
मुंबई
🏵️ तृतीय स्थान🏵️
मंच को नमन
विषय:पिता
दिनांक:१६-१०-२०
वो है मेरे पिता.......
मेरे हर जर्रे जर्रे में है वो है मेरे पिता!
मेरे खून के हर कतरे व मेरी धडकन में है
वो है मेरे पिता!!
मेरे ह्रदय मेरे जीवन मेरे मन मस्तिष्क में बिराजमान है
वो है मेरे पिता!!
मेरी साँस मेरी रग रग में है वो है मेरे पिता!!
मेरे सर्जक मेरी परवरिश मेरी परवाह करने
वाले परवरदिगार
वो मेरे पिता!!
मेरा प्रतिबिंब !मेरी परेशानी से परेशान अन्दर से
अपितू हिम्मत देने वाले
वो है मेरे पिता!!
मेरी प्रगती के परिक्षक प्रतीक्षा रत रहते थे
वो है मेरे पिता!
मेरी खुशियों में खुश पर मेरी मायूसियों को
खुशियों में तब्दिल करने वाले
वो मेरे पिता!!
स्वरचित:अशोक दोशी
7331109258
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सराहनीय प्रस्तुति
1️⃣
मंच को नमन
विषय-पिता
16/10/2020े
एक पेड़ गुलमोहर का
लगाया था एक पेड़
लाल गुलमोहर का
घर के आँगन में
अपने ही हाथों से
आपकी याद में पिताजी
खड़ा है मेरे साथ आज भी
जैसे आप खड़े रहते थे
अपनत्व की छाँह लिए
अपलक निहारते थे आप जिस तरह
निहारती हूँ हरदम मैं लाल गुलमोहर
झड़ते हैं लाल लाल फूल वैसे ही
झड़ते थेआशीर्वचन मुख से आपके
सिखाया आपने वह बताता गुलमोहर
तपती गर्मी में तप निखरता गुलमोहर
मौसम है पतझड़ का,मुश्किलें बड़ी हैं
आशाओं की कोंपलें आज भी हरी हैं।
स्वरचित
आनन्द बाला शर्मा
9709013288
2️⃣
नमन मंच
विषय-पिता
पिता
वो शख्स
सपनो की खातिर
जो तपाता खुद को
बेचता स्वयम को
समय की परिधि से बांध
पाने को छोटी मुस्कान
एक उम्मीद
एक आस,घर की साँस
टिका होता घर
पाकर उसका विश्वास
फौलादी ह्रदय
दफन मर्म
सपनो की जान
घर की पहचान
बच्चो का खिलौना
प्यार का बिछौना
हौसलों की दीवार
साहस ताकत और अभिमान
शान ,आन ,मान
रिश्तो की जान
माँ आंखों की ज्योति
पिता आंखों का तारा
पिता से घर की रौनक
माँ के चेहरे की आभा
संघर्ष शील
खाली जेब होते हुए
सपनो की उड़ान पूरी करने वाला
पिता से अमीर
इंसान नही देखा
पिता का प्यार
न समझ सका कोई
उससे हारा
इंसान नही देखा
स्वरचित
मीना तिवारी
पुणे महाराष्ट्र
3️⃣
नमश मंच
विषय - पिता
पिता होते परिवार के सूत्रधार
पापा ही होते घर के पालनहार
आपसे हमें बहुत प्यार मिला है
आपसे मिले हमें अच्छे संस्कार
पिता होते विशाल वृक्ष की तरह
जो बच्चों को छाया देते अपार
पिता के साथ रहकर बच्चे खुद को
सुरक्षित महसूस करते है बार-बार
उंगली पकड़कर चलना सिखाया
जीवन में सही राह आपने दिखाया
हर मुश्किल में परछाई बने आप
जीवन भर अपना फर्ज निभाया
पापा आप ही मेरे मार्गदर्शक बने
मेरे मन में हौसला आपने बढ़ाया
कामयाबी हासिल करके दिखाउंगी
बुलंदियों को छूने का अरमान जगाया
जिंदगी की कसौटी पर खरा उतरूँगी
आपका नाम जग में रौशन करूँगी
ऊंचाइयों के शिखर पहुँचना मुझको
आपने इतना आत्मनिर्भर बनाया
पापा आपसे ही बस मेरा वजूद है
मुझको अपने पापा पर गरूर है।
सुमन अग्रवाल "सागरिका"
आगरा
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महाराष्ट्र कलम की सुगंध द्वारा आयोजित विषय आधारित लेखन में उत्कृष्ठ सृजन के लिए आपको ढेर सारी बधाई व शुभकामनाएं। महाराष्ट्र कलम की सुगंध परिवार आपके उज्ज्वल भविष्य की मंगल कामना करता है।
अनुराधा चौहान 'सुधी'
सचिव (महाराष्ट्र कलम की सुगंध)
चित्र गूगल से साभार